अगर भगवान हर जगह है आध्यात्मिक ज्ञान।

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अगर भगवान हर जगह है तो मंदिर बनाने की क्या जरूरत है?

पृष्ठभूमि

  • वायु समस्त स्थान पर है परन्तु गर्मी का अनुभव होने पर पंखे के नीचे या कूलर के सामने क्यों खड़े होते है? और टायर पंचर होने पर उसमे वायु क्यों भरी जाती थीं?(आजकल मुख्यतः ट्यूब वाले टायर नही आते हैं पूर्व में आते थे)
  • जल भी सभी स्थानों पर उपस्थित है वायु में आद्रता के रूप में भी कुछ मात्रा में जल है तो प्यास लगने पर मुँह के द्वारा जल क्यों पीना है??? शरीर के रोमछिद्रों से पी लीजिये।
  • ज्ञान तो संसार मे निकल कर भी बालक को मिल जाएगा तो विधालय क्यू भेजा जाए??? संसार मे निकाल देते है, बालक स्वयं ज्ञानी बन जायेगा।
  • समस्त खेत मे अन्न के रूप में भोजन है उस अन्न को घर ले कर आना और पकाने की क्या आवश्यकता है???

अब आते है आपके प्रश्न के उत्तर पर

  • मंदिर एक माध्यम होता है, भगवान तक हमारी भावनाएं पहुँचाने का,जो दृष्टिगोचर होता है वह सत्य है और नहीं होता वह मात्र कल्पना ,
  • अर्थात दृष्टिगत होने वाली वस्तु के विषय में समझना सरल हो जाता है और न दृष्टिगत होने वाली वस्तु के विषय में समझना थोडा कठिन हो जाता है।
  • मन्दिर जाने से दृढ़ विश्वास और आस्था जैसे सकारत्मक भावों का संचार होता है, जिसके कारण प्रतिदिन आने वाली छोटी मोटी समस्या तो यूं ही हमारी भावनाओ के द्वारा समाप्त हो जाती हैं।
  • बड़ी समस्याओँ के लिए ईश्वर हमारे संग है ऐसा अनुभव होता है मन की दुविधा शांत हो जाती है।
  • इससे यह सिद्ध होता है कि हमे दैवीय शक्तियों के प्रति विश्वास है, अतः दैवीय शक्तियां भी आप के विश्वास को पूर्ण करती हैं, आप देवी-देवताओं की ओर देखेंगे तो वे भी आपकी ओर देखेंगे।
  • मन की शांति के लिए एक आध्यात्मिक वातावरण मन्दिर में उपलब्ध होता है इसमे देव प्रतिमा , धूपबत्ती, दीपक, घण्टे , शंख और अन्य सहयोगी तथ्य इस की पूर्ति करते हैं।
  • जाने अनजाने अपराध हो जाने पर हम देव स्थान पर जा कर सत्य निष्ठा से प्रयाश्चित कर सकते हैं।
  • मन्दिर में जलने वाली धूप दीप से नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है , शंख घन्टो आदि की ध्वनि से मानसिक शांति का अनुभव होता है।
  • मन्दिर में उत्तर की ओर या पूर्व की ओर पूजा अर्चना की जाती है सामूहिक रूप से ये ऊर्जा एक शक्तिपुंज का रूप ले लेती है जो देव विग्रह में समाई रहती है जो शक्ति हमे पुनः प्राप्त होती हैं।
  • सांसारिक क्रिया कलापों में उलझे मनुष्य समान्यतः भक्ति भाव से विमुख रहते हैं, उन्हें भक्ति के लिए एक ऐसे वातावरण की आवश्यकता पड़ती है, जहाँ हम मनोवैज्ञानिक स्तर पर भगवान से बंधन अनुभव कर सकें।

अंततः

  • मंदिर जाने से आपके नकारात्मक विचार नष्ट हो जाते है , जब हम मंदिर से बाहर निकलते है तो हम सकारात्मक उर्जा से भरे होते है।
  • इसका कारण है कि मंदिर में एक बड़ी संख्या में भक्त आते है , यहां आने के पश्चात उनका दृष्टिकोण सकारात्मक हो जाता है , और उससे मन्दिर के प्रांगण भी सकारात्मक उर्जा से परिपूर्ण हो जाता हैं।
  • हमारा ईश्वर के प्रति विश्वास और भावनाएं मंदिर में जाने के कारण और प्रबल हो जाती है |
  • भगवान की प्रतिमा, उनकी छवि भक्त के अंतर्मन को स्पर्श करती हैं और हमारी श्रद्धा और प्रबल हो जाती है।
  • इसके विपरीत किसी सार्वजनिक स्थल में बैठकर ईश्वर का स्मरण करना, उनसे प्रार्थना करना संभव अवश्य है किंतु मन्दिर में जा कर ही हमारा विश्वास और हमारी भावनाए उचित रूप से स्पष्ट होती हैं।
  • आप ने मन्दिर के विषय मे पूछा है यही प्रश्न मस्जिद या चर्च के विषय मे कीजिये तो आप की सहिष्णुता का ज्ञान परिचय सभी को होगा।
  • धन्यवाद

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