अगुन सगुन बीच नाम सुसाखी। ।

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                      अगुन सगुन बीच नाम सुसाखी।
                       उभय प्रबोधक चतुर द्रुभाषी । ।

यह ‘राम’ नाम सगुण और निर्गुण  जनानेवाला है । इसलिये सगुण उपासक भी ‘राम’ नाम जपते है और निर्गुण  उपासक भी ‘राम’ नाम जपते हैं । सगुण साकार के उपासक हौं, चाहे निर्गुण निराकारके उपासक हो । ‘राम’ नामका जप सब को  करना चाहिये। यह दोनोंकी प्राप्ति करा देत्ता है।
‘राम’ नाम अमृतके समान है; जैसे, बढिया भोजनमेँ घी और दूध मिला दो तो वह भोजन बहुत बढिया बन जाता है । ऐसे ही ‘राम’ नामको दूसरे साधनोंके साथ करो, चाहे केवल ‘राम’ नामका जप करो, यह हमे निहाल का देगा ।
‘राम’ नामके समान तो केवल ‘राम’ नाम ही है । यह सब सधनोंसे श्रेष्ठ है । नामके दस अपराघोंमेँ बताया गया है…’धर्मान्तरे साम्यम्‘  नामके साथ किसीको उपमा दी जायगी तो वह नामापराध हो जायगा । मानो नाम अनुपम है । इसमें उपमा नहीं लग सवस्ती । इसलिये ‘नाम’को किसीके बराबर नहीं कह सकते ।
भगवान श्रीराम शबरीके आश्रमपर पधारे और शबरी को कहने  लगे
नवधा भगति कहउँ तोहि पाहीं ।
सावधान सुनु धरु मन माहीं । ।

-‘मैं तुझे अब अपनी नव‘धा भक्ति कहता हूँ । तू सावधान होकर सुन और मनमे धारण कर । ‘ नवधा भक्ति कहकर अन्तमेँ कहते हैं…
सकल प्रकार भगति दृढ तोरे । ।  तेरेमे सब प्रकारकी  भक्ति दृढ़ है 1′ शबरीको  भक्तिके प्रकारोंका पता ही नहीं; परंतु नवधा भक्ति उसके भीतर आ गयी । किस प्रभावसे ? ‘राम’ नामके प्रभावसे ! ऐसी उसकी लगन लगी कि ‘राम’ नाम जपते हुए रामजीके आंनेकी प्रतीक्षा निरन्तर करती ही रही । इस कारण ऋषि-मुनियोंको  छोडकर शबरीके आश्रमपर भगबान् खुद पधारते हैं ।
गुन निधान सो‘यह’नाम गुणोंका खजाना है मानो ‘राम’ माम लेने से कोई गुण बाकी नहीं रहता । बिना जाने ही उसमें सदगुण, सदाचार अपने-आप आ जाते हैं । ‘राम नाम जपनेचाले जितने सन्त महात्मा हुए हैँ । आप विचार करके देखो.  उनमें कितनी ऋद्धि-सिद्धि कितनी अलौकिक विलक्षणता आ गयी थी ! ‘राम’ माम जपमेँ अलीकिकता है, तब न उनमें आयी ? नहीं तो कहॉसे आती ? इसलिये यह ‘राम’ नाम गुणोंका खजाना है । यह सत्त्व, रज और तमसे रहित है और गुणोंके सहित भी है एवं व्यापक भी है । यहाँ इस प्रकार ‘राम’ नाम में ‘र’ , ‘ आ’ और ‘म’ इन तीन अक्षरोंकी महिमाका वर्णन हुआ और तीनोंकी महिमा कहकर उनकी विलक्षणता बतलायी । यहॉतक ‘राम’ नामके अवयवोंका एक प्रकरण हुआ । अब गोस्वामीजी ‘राम’ नामकी महिमा कहना प्रारम्भ करते हैँ…

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