आध्यात्मिक ज्ञान
आध्यात्मिक ज्ञान
आध्यात्मिक ज्ञान जैसा कुछ भी नहीं है। हाँ अध्यात्म जरूर है और शास्त्रों का ज्ञान जरूर है। अब आप कहेंगे इन दोनों में फर्क क्या है?
ज्ञान शास्त्रों में छुपा है। उन शास्त्रों को पढ़ने से, मनन करने से, चिंतन करने से, वह ज्ञान आपको मिलता है। यह प्रक्रिया स्वाध्याय से भी हो सकती है, और गुरु शिष्य परंपरा द्वारा भी। तब आप ग्यानी ओरुष बन जाते है। लेकिन केवल शास्त्री कहलायेंगे लेकिन आध्यात्मिक नहीं।
आध्यात्म इस ज्ञान से बढ़कर कुछ है। यह ज्ञान के बिना भी एक अस्तित्व रखता है। आध्यात्म है यह सोचना की आपकी सत्ता क्या है, और आपसे ऊपर किसकी सत्ता है। यह चिंतन है आपके होने का, और आपके न होंने के बाद क्या होता है उसका। यह भी सत्य है कि आपसे पहले भी सृष्टि थी और आपके बाद भी सृष्टि रहेगी। तो इस बीच आप अस्तित्व में कैसे आये, और फिर कहाँ चले गए। आपके इस अस्तित्व सीमा में आपने क्या किया और क्या करना चाहिए था।
यह सब जब इंसान सोचने लगे, और अपने अस्तित्व और उसके कर्तव्यों का सोचने लगे, वही इंसान आध्यात्मिक है। आध्यात्म का एक अर्थ है अद्य + आत्मा अर्थात आज इस आत्मा का विचार, दूसरा अर्थ है आदि + आत्मा अर्थात उस आदि यानी सर्वप्रथम आत्मा का विचार करना जो हम सभी में विद्यमान है। यह ज्ञान से बढ़कर एक चिंतन है। तो आप चुने की ज्ञान मार्ग से अध्यात्म करना है या भक्ति वैराग्य मार्ग से। जो रास्ता ठीक लगे वैसा चुने। कुछ पुस्तके पढ़े, उनका मनन करे। कुछ प्रवचन सुने उनका मनन करे। कुछ स्वाध्याय करे, कुछ स्वयं से बात करे।
आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति हमें तभी संभव हो सकती है जब हम किसी संत महापुरुष की शरण में जाकर ध्यान-योग पद्धति से साधना करते हुए अपना जीवन जीने की राह पर चलते हैं। और सद्गुरु भी ऐसा वैसा व्यक्ति नहीं होना चाहिए वह भी एक ब्रह्म लीन अवस्था को प्राप्त महापुरुष ही हमें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करा सकता है
भगवान प्राप्ति के लिए गीता में स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने कई मार्ग बताये है उनमे से ज्ञान मार्ग एक है जिसे की अध्यात्म कहा गया है. भगवद्प्राप्ति के अन्य मार्ग है, भक्ति से, कर्मयोग से, समर्पण से, त्याग से भि भगवद प्राप्ति सभव है.
I. त्याग से भगवद्प्राप्ति सम्भव है. भगवद्गीता में गृहस्थ में रहते हुए निम्न सात त्याग करने से परमात्मा प्राप्त बताई गयी है :
निषिद्ध कर्मों का त्याग
काम्य कर्मों का त्याग
तृष्णा का त्याग
स्वार्थ हेतु दूसरों की सेवा का त्याग
सम्पूर्ण कर्तव्य कर्मों में आलस्य और फल की इच्छा का त्याग
संसार के पदार्थो में कर्म में आसक्ति का त्याग
अहम् भाव व सूक्ष्म वासना का त्याग
II. रामचरितमानस से शबरी को राम का सन्देश : शबरी से बात करते हुये भगवान राम ने भि कई तरह की भक्ति की बात कहि है. इस्का विवरण अरण्य कांड में ईस तरह है
कह रघुपति सुनु भामणि बाता, मानहु एक भगति कर नाता।
नवधा भगति कहहु तोहि पांहि सावधान सुनु धरु मन माहि, प्रथम भगति संतन कर संगा, दूसरि रति मम कथा प्रसङ्गा. गुरु पद पंकजसेवा तीसरि भगति अमान, चौथी भगति मम गुण गन करई कपट याजी गान.
इसी तरह भगवान ने नौ तरह की भक्ति बताई है. इसमें अंतिम देखें.
नवम सरल सब सन छलहीना, मम भरोष हियँ हरष न दीना. नव महुँ जिन्ह के होई, नारी पुरुष सचराचर कोई.
अतः भगवद प्राप्ति के अनेको तरिके है. हर तरिके में मन चित की शुद्धता, भगवान में समर्पण, सत्य, निष्ठा, दृढ विश्वास का होना और ईर्ष्या, क्रोध, काम, मोह, छल, कपट, प्रपंच से रहित होना जरूरी कहा है.