आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे अच्छा वातावरण।
आध्यात्मिक विकास के लिए सबसे अच्छा वातावरण ।
शुभ के चिंतन , मनन , अभ्यास से मन की अशुभ वृत्तियाँ , बुरे संस्कार भी क्षीण हो जाते हैं और एक दिन मन शुद्ध , निर्मल बन जाता है । मन में शुद्ध भावनाओं को प्रोत्साहन दीजिए।
शुभ विचारों के चिंतन में मन को लगाए रखिए इस पर भी यदि वह उच्छृखलता बरते , तो उस पर ध्यान न दीजिए।आपने जो निश्चय किया है , जो लक्ष्य और कार्यक्रम बनाया है , उसी की धुन निरंतर अपने मन को सुनाते रहें ।
आप देखेंगे : कि एक दिन आपका मन अपनी समस्त उच्छृखलता , उदंडता , चंचलता को छोड़कर आपका दास बन जाएगा ।
मन की साधना के लिए उपयुक्त वातावरण , अनुकूल परिस्थितियों का होना भी आवश्यक है । जिस तरह चीनी के भंडार में रखकर सामान्य मनुष्य से चीनी खाने की आदत छुड़ाई नहीं जा सकती ,
उसी प्रकार मन की चंचलता को बढ़ाने वाले वातावरण में रहकर उसको साधना प्रायः कठिन ही होता है । इसलिए जहाँ तक बने साधना के अनुकूल शांत , निर्विन परिस्थितियों में रहकर मन को एकाग्र करने की साधना की जाए , तो अपेक्षाकृत जल्दी सफलता मिलेगी ।
अपने दैनिक जीवनक्रम में भी जहाँ तक बने स्थिरता , धैर्य और शांति के साथ काम करना चाहिए । चंचलता , भाग – दौड़ , अस्त – व्यस्तता , आवेश और उद्वेग को तो जीवन में किसी भी शर्त पर स्थान नहीं होना चाहिए । इनसे मन की शक्ति नष्ट होती है । हम जो भी कुछ करें , वह : व्यवस्थित शांत चित्त होकर करें ।
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याद रखने वाले कुछ बाते।
याद रखो – दुनियाके लोग तुम्हें अच्छा मानते हैं , तुम्हारा बड़ा यश हो गया है , तुम्हारी जहाँ – तहाँ पूजा अभ्यर्थना होती है , इसीसे कभी यह मत मान बैठो कि तुम वास्तवमें अच्छे हो गये हो । अच्छे तो तुम तब होओगे , जब तुम्हारा मन निर्मल हो जायगा । मनमेंसे कुविचार और कुभावोंका सर्वथा अभाव हो जायगा । सद्विचार तथा सद्भावोंसे मन भर जायगा ।
याद रखो – सद्विचारों और सद्भावोंको भी यदि भगवान्का आश्रय न देकर स्वतन्त्र रखना चाहोगे तो उनमें से एक अहंकाररूप बड़ा भारी दोष उत्पन्न होगा , जो समस्त सद्विचारों और सद्भावोंका नाश कर डालेगा ।
आत्मनिरीक्षण करो , अपने जीवनके बीते हुए तथा वर्तमान कार्योंकी ओर देखो ; तुम यदि अच्छी तरह देखोगे तो तुम्हें स्पष्ट दिखायी देगा कि तुम जो अपनेको – दूसरोंके कहनेपर ही बहुत अच्छा मान रहे थे , वह तुम्हारी भूल थी । तुम्हारे अन्दर इतनी बुराई , इतनी गन्दगी भरी हुई है कि उसको देखकर दूसरे सभीका जीवन तुम्हें अच्छा प्रतीत होने लगेगा ।
तुम्हारे अन्दर एक नम्रता आयेगी और तब तुम परम पावन भगवान्की ओर देखोगे – उनके चरणोंमें लुटकर आर्तभावसे कातर स्वरसे उन्हें पुकारोगे ।
याद रखो – तुममें कितने ही दुर्विचार , दुर्गुण और दुराचार क्यों न हों , भगवान् उनको नहीं देखेंगे । भगवान् देखेंगे तुम्हारे वर्तमान हृदयको , भगवान् सुनेंगे तुम्हारी करुण पुकारको ।
याद रखो – भगवान्पर , एकमात्र भगवान्पर भरोसा आते ही , भगवान्की अकारण कृपा , उनके अहैतुक स्नेह , उनके सुहृद् – स्वभावपर विश्वास करते ही तुम्हारे दुर्विचार , दुर्गुण और दुराचार वैसे ही नष्ट हो जायेंगे , जैसे सूर्यके उदय होते ही अमावास्याकी रात्रिका घोर अन्धकार कट जाता है ।
A Negative mind will be never give you a positive Life
– Buddha