एक राम भक्त सेठ की अनोखी कहानी।
~~श्री हरि~~
एक सेठकी बात सुनी । वह सेठ बहुत धनी था । यह सुबह जल्दी उठकर नदीमेँ स्नान करके घर आकर नित्य-नियम करता था । ऐसे वह रोजाना नहाने नदीपर आता था । एक बार एक अच्छे संत विचरते हुए वहाँ घाटपर आ गये । उन्होंने कहा “सेठ ! रांम-राम ! ‘ वह बोला नहीँ तो फिर बोले”सेठ !राम-राम ! ‘ ऐसे दो-तीन बार बोलनेपर भी सेठ ‘राम-राम’ नहीं बोला । सेठने समझा कि कोई मँगता है । . इसलिये कहने लगा… ‘हट ! हट ! चल, हट यहासे ।’ संतने देखा कि अभिमान बहुत बढ़ गया है, भगवान्का नाम भी नहीं लेता । मैं तो ५ भगवान्का नाम लेता हूँ और यह हट कहता है ।
इन धनी आदमियोंके वहम रहता है कि हमारेसे कोई कुछ माँग लेगा, कुछ ले लेगा । इसलिये धनी लोग सबसे डरते रहते है वे गरीबसे, साधुसे, ब्राह्मणसे, राज्यसे, चोरोंसे, डाकुओँसे डरते है । अपने बेटा…पोता ज्यादा हो जायेंगे तो धनका बँटबारा हो जायगा-ऐसे भी डर लगता है उन्हें ।
संतने सोचा कि इसे ठीक करना है । तो वे वैसे ही सेठ बन गये और सेठ बनकर घरपर चले गये । दरवानने कहा कि ‘आज आप जल्दी कैसे आ गये ? ‘ तो उन्होंने कहा किं ‘एक बहुरूपिया मेरा रूप धरके वहाँ आ गया था, मैंने समझा कि वह घरपर जाकर कोई गड़बडी नहीं कर दे । इसलिये मैँ जल्दी आ गया । तुम सावधानी रखना, वह आ जाय तो उसे भीतर मत आने देना । ‘ ‘ सेठ घरपर जैसा नित्य-नियम करता था, वैसे ही वे सेठ बने हुए संत भजन-पाठ करने लग गये । अब वह सेठ सदाकी तरह घोती
और लोटा लिये आया तो दरवानने रोक दिया । ‘कहाँ जाते हो ? हटो यहाँसे ! ‘ सेठ बोला…’तूने भाँग पी ली है क्या ? नशा आ गया है क्या . क्या बात है ? तू नौकर है मेरा, और मालिक बनता है ।’ दरवानंने कहा…”हट यहाँसे, नहीं जाने दूँगा भीतर ।’ सेठने छोरोंको आवाज दी…”आज इसको क्या हो गया ? ‘ तो उन्होंने ‘कहा-‘बाहर जाओ, भीतर मत आना ।’ बेटे भी ऐसे ही कहने लगे । जिसको पूछे, वे ही धक्का दें । सेठने देखा कि क्या तमाशा हुआ भाई ? मुझे दरवाजे के भीतर भी नहीं जाने देते हैं । बेचारा इधर-उधर घूमने लगा ।
अब क्या करे ? उसकी कहीँ चली नहीं तो उसने राज्यमें जाकर रिपोर्ट दी कि इस तरह आफ़त आ गयी । वे सेठ राज्यके बड़े मान्य आदमी थे । राजाने उनको जब इस हालतमेँ देखा तो कहा ‘आज क्या बात है ? लोटा, धोती लिये कैसे आये हो ? ‘ तो वह बोला… ‘कैसे-कैसे क्या, महाराज ! मेरे घरमेँ कोई बहुरुपिया बनकर घुस गया और मुझे निकाल दिया बाहर ।’ राजाने कहा…’चार घोडोंकी बन्धीमे आया करते थे, आज़ आपकी यह दशा ! ’ राजाने अपने आदमियोंसे पूछा…’कौन है वह ? जाकर मालूम करो ।’ घरपर खबर गयी तो घरवालोमे कहा कि ‘ अच्छा ! वह राज्यमेँ पहुंच गया ! बिलकुल नकली आदमी है वह । हमारे सेठ तो भीतर विराजमान हैं । राजाको जाकर कहा कि वह तो घरमेँ अच्छी तरहसे विराजमान है । राजाने कहर-‘सेठक्रो कहो कि राजा बुलाते हैं ।’ अब सेठ चार घोडोंकी बग्घी लगाकर ठाट-बाटसे जैसे जाते थे, वैसे ही पहुंचे और बोले…’ अन्नदाता ! क्यों याद फरमाया, क्या बात है ? ‘
राजाजी बड़े चकराये कि दोनों एक-से दीख रहे हैँ । पता कैसे लगे ? मंत्रियोंसे पूछा तो वे बोले…”साहब असली सेठका कुछ पता नहीं लगता ।’ तब राजाने पूछा, ‘ आप दोनोंमें असली और नकली कौन है ? ‘तों कहा…”परीक्षा कर लो ।’ जो सन्त सेठ बने हुए थे उन्होंने ।
कहा…’बही लाओ । बहीमे जो लिखा हुआ है, वह हम बता देंगे ।’ बही मँगायी गयी । जो सेठ बने हुए संत थे, उन्होंने बिना देखे ही कह दिया कि अमुक-अमुक वर्षमेँ अमुक मकानमे इतना खर्चा लगा, इतना घी लंगा, अमुकके ब्याहमें इतना खर्चा हुआ । वह हिसाब अमुक बहीमें, अमुक जगह लिखा हुआ है ।’ वह सबका-सब मिल गया । सेठ बेचारा देखता ही रह गया । उसको इतना याद नहीं था । इससे यह सिद्ध हो गया कि वह सेठ नकली है । तो कहा कि-‘इसे दण्ड दो । ‘ पर संतके कहनेसे छोड दिया ।
दूसरे दिन फिर वह धोती और लोटा लेकर गया । वहाँ वहीँ संत बैठे थे । उस सेठको देखकर संतने कहा…”राम-राम ! ‘ तब उसकी आँख खुली कि यह सब इन संतका चमत्कार है । संतने कहा-‘तुम भगवान्का नाम लिया करो हरेकका तिरस्कार, अपमान मत किया करो । जाओ, अब तुम अपने घर जाओ ।’ वह सेठ सदाकी तरह चुपचाप अपने घर आ गये ।
अभिमान में आकर लोग तिरस्कार कर देते हैं । धनका अभिमान बहुत खराब होता है । धनी आदमीके प्राय: भक्ति लगती नहीं । धनी आदमी भक्त होते ही नहीं, ऐसी बात भी नहीं है । राजा अम्बरीष भक्त हुए है । और भी बहुतसे धनी आदमी भगन्नान्के भक्त हुए हैं; परंतु धनका अभिमान उनके नहीं था । उन्हें धनकी परवाह नहीं थी ।
भगवान् अभिमानको अच्छा नहीं समझते ‘अभिमानद्वेषित्वाद् दैन्यप्रियत्वाच्च‘ । नारदजी जैसे भक्तक्रो भी अभिमान आ गया ।’जिता काम अहमिति मन माहीं । ‘ अभिमानकी अधिकता आ गयी कि मैँने कामपर विजय कर ली तो क्या दशा हुईं उनकी ? भगवान् अपने भक्तका अभिमान रहने ही नहीं देते ।