चंद्र का पुत्र आध्यात्मिक ज्ञान।

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 चंद्र का पुत्र।

 कोई मनुष्य जब मरता है तो यदि उसने , अपने सत्कर्मों से पुण्य कमाया हुआ है तो आसमान के भी ऊपर बसे देवताओं के स्वर्ग में जगह पा सकता है । मनुष्य इसे स्वर्ग कहते ही इसके निवासी देव इसे अमरावती नगरी के रूप में जानते हैं । यहां दुख – दर्द का अहसास ही नहीं है । इसमें सारे सपने और सभी इच्छाएं पूरे हो जाती हैं । इस आनंद को बनाए रखने के लिए देवों को निरंतर समय – समय पर पातालवासी अपने सनातन शनुओं यानी असुरों को पराजित करना पड़ता है । उनकी विजय , यज्ञ से प्राप्त शक्ति पर निर्भर है । बृहस्पति ग्रह के स्वामी देवताओं के गुरु वृहस्पति ही देवताओं के लिए यज्ञ किया करते है । यज्ञ की सफलता के लिए वृहस्पति की पत्नी तारा का उनके साथ यज्ञ में शामिल होना आवश्यक है ।
तारा दरअसल तारों की देवी है । एक दिन अवानक बृहस्पति के बगत से उठकर तारा , चंद्रमा के साथ भाग गई तारा दरअसल हमेशा विप्लेषण में डूबे रहने वाले बृहस्पति से ऊब गई थी क्योंकि उनकी दिलचस्पी तारा से अधिक यज्ञ में ही रहती थी । अपने पर लट्ट वंद्रमा से वह भी प्यार करने लगी थी । बृहस्पति ने देवराज इंद्र से कहा , ‘ यदि यज्ञ की सफलता वाहते हो तो मेरी पत्नी को वापस लाकर दो । ‘ देवों में इस बात पर मतभेद था कि अपने पति को कर्मकांड में डूबे रहने वाला उपकरण मानने वाली तारा को जबरदस्ती उनके पति के पास वापस लाया जाए अथवा उनके प्रेमी के पास ही रहने दिया जाए जिसने उसे फिर जीवंत कर दिया था लंबी – चौड़ी बहस के बाद अंततः व्यावहारिकता की विजय हुई ।
देवों के लिए तारा की शुशी के मुकाबले यज्ञ कहीं अधिक महत्वपूर्ण था ; यज्ञ की शरि के बिना देव धरती पर ऊजाता और वर्षा दोनों की ही बौछार नहीं कर पाएंगे । राज्ञ के बिना धरती पर सूखा और अंधकार छा जाएगा । नहीं , तारा को बृहस्पति के पास लौटना पड़ेगा । इंद्र का यही अंतिम निर्णय था । तारा अनमने मन से लौट आई । उसके वापस आते समय यह स्पष्ट था कि वो गर्भवती थी । चंद्रमा और बृहस्पति दोनों ने ही पिता होने का दावा किया । तारा खामोश रही , वो अपने को गर्भवती करने वाले पुरुष का नाम नहीं बताने की जिद पर अड़ी रही ।
 तभी गर्भस्थ शिजु की यह चिल्लाहट सुनकर सब चकित रह गए , ‘ मां मुझे तो ये बता दो कि में किस बीज का फल हूं ? मुझे यह जानने का अधिकार है । ‘ वहां जमा सभी लोग अजन्मे बच्चे की सच जानने की इच्छा से अत्यंत प्रभावित हुए । उन्होंने भविष्यवाणी कर दी कि यह बच्चा बुद्धि का देवता होगा । बुद्धि अर्थात मस्तिष्क का वह भाग जो सच और झूठ के बीच भेद करने का विवेक देकर सही को चुनने की क्षमता प्रदान करता है । उसका नाम बुध रखा गया । बच्चे के जिद करने पर अपनी आंखें झुकाए तारा ने कहा , ‘ तुम चंद्रमा के बीज से उत्पन्न हुए हो । ‘
इतना सुनते ही बृहस्पति आपे से बाहर हो गए और क्रोधित होकर उन्होंने शाप दे दिया , ‘ मेरी बेवफा पत्नी के प्यार की निशानी यह बच्चा अस्थिरलिंगी हो जाए , न पुरुष रहे और न ही स्त्री । ‘ इस क्रूर शाप से देवता भी भयभीत हो गए । इंद्र ने राजा होने के नाते मध्यस्थता का प्रयास किया , ‘ बृहस्पति जिस बच्चे को तुमने इतनी निर्दयता से शापित किया है वह अब से चंद्रमा के बजाए तुम्हारे पुत्र के रूप में जाना जाएगा । इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि खेत में बीज किसने डाला ; महत्वपूर्ण यह है कि खेत का मालिक कौन है । तारा के विधिवत विवाहित पति के रूप में तुम्ही मालिक हो । उसके सभी बच्चों के पिता , भले ही वे विवाह के उपरांत पैदा हुए हों अथवा उससे पूर्व में , तुम्हारे द्वारा अथवा किसी अन्य द्वारा भी । ‘
इस प्रकार यह मामला निपट गया । तारा ने बुध ग्रह के स्वामी बुध को पैदा किया जिसका आकार बदलता रहता है जो न पुरुष हैं और न ही स्त्री । जैविक रूप में वह भावाधान चंद्रमा का अंश था लेकिन इंद्र के आदेश के अनुसार उसका लालन – पालन तर्कशीत बृहस्पति के घर में ही हुआ । उसी दिन से स्वर्ग और भूमि पर भी प्राकृतिक गोवर के मुकाबले विधि का वर्वस्व स्थापित हो गया ; पितृत्व , विवाह से परिभाषित होने तमा । उसी कारण जनमेजय के प्रपितामह अर्जुन को पांडु पुत्र माना गया हालांकि पांडु बच्चे पैदा करने में सक्षम ही नहीं थे ।

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