चहुँ जुग चहूँ श्रुति नाम प्रभाऊ । कलि तिसेपि नहि आन उपाऊ । । नाम्रामकारि बहुधा निज सर्वशक्ति स्तत्रार्पिता नियमित: स्मरणे न काल: । ।
~~श्री हरि~~
विधि क्या है ? तो ब्रह्माजीने उत्तर दिया-‘नास्ति विधि: ‘ कोई कैसा ही हो । पापी हो या पुण्यात्मा वह नाम जपता हुआ सायुज्य, सालोक्य आदि मुक्तियोको प्राप्त कर लेता है । इसलिये नाम लिये जाओ बस । कलियुगी जीवोंके लिये कितनी सुगम बात बता दी ! अगर विधियाँ बता देते तो मुश्किल हो जाती । नाम-जपमे निषेध कुछ है ही नहीं
। ‘सुमिरत सुलभ सुखद सब काहू‘ सबके लिये सुलभ है । ‘सुलभं भगवन्नाम वागस्ति वशवर्तिनी’ । भगवान्का नाम सुलभ है, इसपर
कोई प्रतिबन्थ नहीं लगाया है । वर्तमान सरकारने भी कोई प्रतिबन्ध
नहीं लगाया है, आगे खतरा हो सकता है, परंतु अभी कोई प्रतिबन्ध नही है । खुला नाम लो भले ही, कोई मना नही है
राम दडी़ चौडे पडी, सब कोई खेलो आय ।
दावा नाहीं सन्तदास, जीते सौ ले जाय ।।
किसीका दावा नहीं है । सब कोई भगवान्का नाम ले सकते है ; जैसे बापकी जगहपर बेटेका हक लगता है, वैसे भगवन्नामपर हमारा पूरां-का-पूरा हक लगता है; क्योकि यह हमारे बापका नाम है । ऐस अपनेको अधिकार मिला हुआ है । कितनी मौज़की बात है, कितने आनन्दकी बात है यह ! मनुष्य शरीर मिल गया और फिर इसमे भगवान्का नाम मिल गया ।
हाथ काम मुख रांम है, हिरदे साँची प्रीत ।
दरिया गृहस्थी साध की, चाही उत्तम रीत ।।
हाथोंसे अपना काम करते हुए मुँहसे ‘राम’ नाम जप करते रहें । बहनें-माताएँ घरका काम करें । भाई लोग खेतोंमें या दूकानोंमे काम करे । वे जहाँ हों, वहाँ ही रहकर काम काते रहे । हृदयमे भगवान्से स्नेह बना रहे । हमेँ भगवान्की तरफ हो चलना है । मनुष्य-शरीर मिला है इसलिये उद्धार करना है । हृदयमे सच्चा प्रेम भगवान्से हो, सांसारिक पदार्थों से भोगोंसे न हो . संतोंने कहा है…