चिंता एक दर्शन की आध्यात्मिक ज्ञान।
~~श्री हरि ~~
*!! चिंता !!*
*एक राजा की पुत्री के मन में वैराग्य की भावनाएं थीं। जब राजकुमारी विवाह योग्य हुई तो राजा को उसके विवाह के लिए योग्य वर नहीं मिल पा रहा था।*
*राजा ने पुत्री की भावनाओं को समझते हुए बहुत सोच-विचार करके उसका विवाह एक गरीब संन्यासी से करवा दिया। राजा ने सोचा कि एक संन्यासी ही राजकुमारी की भावनाओं की कद्र कर सकता है।*
*विवाह के बाद राजकुमारी खुशी-खुशी संन्यासी की कुटिया में रहने आ गई। कुटिया की सफाई करते समय राजकुमारी को एक बर्तन में दो सूखी रोटियां दिखाई दीं। उसने अपने संन्यासी पति से पूछा कि रोटियां यहां क्यों रखी हैं? संन्यासी ने जवाब दिया कि ये रोटियां कल के लिए रखी हैं, अगर कल खाना नहीं मिला तो हम एक-एक रोटी खा लेंगे। संन्यासी का ये जवाब सुनकर राजकुमारी हंस पड़ी। राजकुमारी ने कहा कि मेरे पिता ने मेरा विवाह आपके साथ इसलिए किया था, क्योंकि उन्हें ये लगता है कि आप भी मेरी ही तरह वैरागी हैं, आप तो सिर्फ भक्ति करते हैं और कल की चिंता करते हैं।*
*सच्चा भक्त वही है जो कल की चिंता नहीं करता और भगवान पर पूरा भरोसा करता है। अगले दिन की चिंता तो जानवर भी नहीं करते हैं, हम तो इंसान हैं। अगर भगवान चाहेगा तो हमें खाना मिल जाएगा और नहीं मिलेगा तो रातभर आनंद से प्रार्थना करेंगे।*
*ये बातें सुनकर संन्यासी की आंखें खुल गई। उसे समझ आ गया कि उसकी पत्नी ही असली संन्यासी है। उसने राजकुमारी से कहा कि आप तो राजा की बेटी हैं, राजमहल छोड़कर मेरी छोटी सी कुटिया में आई हैं, जबकि मैं तो पहले से ही एक फकीर हूं, फिर भी मुझे कल की चिंता सता रही थी। सिर्फ कहने से ही कोई संन्यासी नहीं होता, संन्यास को जीवन में उतारना पड़ता है। आपने मुझे वैराग्य का महत्व समझा दिया।*
*शिक्षा:*
*अगर हम भगवान की भक्ति करते हैं तो विश्वास भी होना चाहिए कि भगवान हर समय हमारे साथ है। उसको (भगवान) हमारी चिंता हमसे ज्यादा रहती हैं।*
*कभी आप बहुत परेशान हों, कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा हो तो आप आँखें बंद करके विश्वास के साथ पुकारें, सच मानिये थोड़ी देर में आपकी समस्या का समाधान मिल जायेगा..!!*
एक बौद्ध भिक्षुक भोजन बनाने के लिए जंगल से लकड़ियां चुन रहा था कि तभी उसने बिना पैरों की लोमड़ी को देखते हुए मन ही मन सोचा,’आख़िर इस हालत में ये जिंदा केसे है?’वह इन्हीं विचारों में खोया हुआ था किअचानक चारों तरफ अफरा- तफरी मचने लगी। जंगल का राजा शेर उस तरफ आ रहा था। भिक्षुक भी तेजी दिखाते हुए एक ऊंचेपेड़ पर चढ़ गया,और वहीं से सब कुछ देखने लगा। शेर नेएक हिरण का शिकार किया था और उसे अपने जबड़े में दबा कर लोमड़ी की तरफ बढ़ रहा था। पर उसने लोमड़ी पर हमला नही किया, बल्कि उसे भी खाने के लिए मांस के कुछ टुकडे डाल दिए।’ये तो घोर आश्चर्य है,शेर लोमड़ी को मारने की बजाय उसे भोजन दे रहा है?भिक्षुक बुदबुदाया।उसे अपनी आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था।इसलिए वह अगले दिन फिर वहीं आया और छिपकर शेर का इंतजार करने लगा।आज भी वैसा ही हुआ।शेर ने अपने शिकार का कुछ हिस्सा लोमड़ी के सामने डाल दिया।यह भगवान के होने का प्रमाण है।भिक्षुक ने अपने आप से कहा,’वह जिसे पैदा करता है,उसकी रोटी का भी इंतजाम कर देता है।’आज से मैं भी इस लोमड़ी की तरह ऊपर वाले की दया पर जीऊँगा। ऐसा सोचते हुए वह वीरान जगह पर जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया।पहला दिन बीता,पर कोई वहां नहीं आया।दूसरे दिन भी कुछ लोग उधर से गुजर गए,पर भिक्षुक की तरफ किसी ने ध्यान नहीं दिया।इसी तरह कुछ और दिन बीत गए।भिक्षुक बेहद कमजोर हो गया।तभी एक महात्मा उधर से गुजरे।भिक्षुक ने अपनी सारी कहानी महात्मा को सुनाई और बोला,अब आप ही बताइये कि भगवान इतने निर्दयी कैसे हो सकते है?क्या किसी व्यक्ति को इस हालत में पहुंचाना पाप नहीं है?महात्मा हंसकर बोले,’लेकिन तुम ये क्यों नहीं समझे कि भगवान तुम्हें उस शेर की तरह बनते देखना चाहते थे,लोमड़ी की तरह नहीं।’
😊सदैव प्रसन्न रहिये।
जो प्राप्त है-पर्याप्त है।