जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 6

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जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते

                                 गलती

 यदि आप समझते हैं कि आपमें कोई त्रुटि नहीं है तो यह आपमें एक और त्रुटि है । 
 
असफलता सही मायनों में कुछ गलतियाँ दोहराने का नतीजा होती है । 
गलती वह है , जो हो जाने के बाद पता चलती है । हम प्रायः दूसरों के गुणों की अपेक्षा उनकी गलतियों से अधिक सीख लेते हैं । 
 सौ गलतियाँ करने के बाद भी जीवन को सुधारा जा सकता है , 
 
परन्तु एकाध गलती का भी बचाव करते रहने के बाद जीवन को बिगड़ने से रोकना अत्यंत कठिन हो जाता है ।  
अपनी गलतियों से सीख लेना अच्छी बात है , पर हमारी जिंदगी इतनी लम्बी भी नहीं है कि हर गलती खुद करके ही सीख सकें । 
गलती के बचाव की अपेक्षा गलती के स्वीकार में बहुत कम समय लगता है । 
मनुष्य को यह स्वीकारने में शर्माना नहीं चाहिये कि वह गलती पर है । .

                            गुरु

 गुरु वह नहीं होता , जो अपना नाम रटाए । 
 
गुरु वह होता है जो अध्यात्म की राह दिखाए और अपना नाम भुलाए ।
 गुरु वह नहीं होता , जो निरन्तर अध्यात्म की प्रेरणा देता हो । गुरु वह होता है , जिसके जीवन से निरन्तर अध्यात्म की प्रेरणा प्रस्फुटित होती हो ।
 
 गुरु वह नहीं होता जो तनाव में रहता हो । 
 
गुरु वह होता है , जो तनाव मुक्त रहता है और तनाव मुक्ति की राह दिखाता है ।
 सिकन्दर से एक व्यक्ति ने पूछा , आप गुरु को माता – पिता से अधिक महत्त्व क्यों देते हो ?
 
 सिकन्दर ने कहा , माता – पिता तो ऊपर से नीचे लाते हैं , लेकिन गुरु नीचे से ऊपर ले जाता है । .
 

                             घृणा 

घृणा दो दिलों की दीवार है । प्रेम और सद्व्यवहार से घृणा की दीवार ढह जाती है
घृणा जीवन की नदी के विषैले कचरे से ज्यादा कुछ नहीं । 
दूसरों से नफरत करने वाले एक दिन खुद नफरत के पात्र बन जाते हैं ।  

                               चरित्र 

मनुष्य की रुचि उसके चरित्र की प्रस्तावना होती है । दर्पण में आप अपना चेहरा देख सकते हैं , चरित्र नहीं ।
 शिक्षित व्यक्ति अगर चरित्रहीन हो तब भी क्या उसे विद्वान् कहेंगे ? कभी नहीं । 
 
जिस राष्ट्र में चरित्रशीलता नहीं है , उसमें कोई योजना काम नहीं कर सकती ।
                             चार बात
 
 प्रियवाणी से युक्त दान , अभिमान से रहित ज्ञान , सहनशीलता युक्त शूरता और दान से युक्त धन – ये चार कल्याण लोक में दुष्प्राप्य हैं । 
 
संसार में चार सिरदर्द हैं – अनाज्ञाकारी भृत्य , धूर्त मित्र , निर्दय स्वामी और विनय रहित भार्या । ( नीति द्विषष्टिका ) त्यागहीन व्यक्ति की कीर्ति कहाँ ? 
सत्यहीन की पूजा कहाँ ? न्याय से हीन को लक्ष्मी कहाँ ? और ध्यान से हीन व्यक्ति को सिद्धि कहाँ ? 
क्रोध करने से जीव नरक गति में जाता है । मान से नीच गति प्राप्त होती है । 
माया से शुभ गति का नाश होता है और लोभ से इस लोक और परलोक का भय प्राप्त होता है । 
सुपात्र को दी हुई विद्या , सुपात्र को दी हुई कला , सुपात्र के साथ की हुई मित्रता तथा सुपात्र को दिया हुआ धन शोभादायक है । 
परिधान में शालीनता , गति में गरिमा , झुकी हुईं नजरें , मधुर व मन्द ध्वनि वाली परिमित वाणी ; ये लक्षण कुलीनता के द्योतक है ।
 काँच का कटोरा , आँखों का पानी , मोती और मन ये एक बार टूटने पर पहले जैसी स्थिति में नहीं आते । अतः पहले ही सावधानी रखनी चाहिए । 

                                चिन्ता

 
 चिन्ता सफलता की भयंकर शत्रु है । चिन्ता नहीं , चिन्तन करो । 
 
 व्यथा नहीं , व्यवस्था करो । चिंताग्रस्त व्यक्ति मृत्यु से पहले कई बार मरता है । 
 
जो चिन्ता से लड़ना नहीं जानते उन्हें अकाल मृत्यु का ग्रास बनना पड़ता है । 
हर समय इतने व्यस्त रहिये कि चिंता करने की फुर्सत ही न मिले । 
चिन्ता मत पालिए , जिसने जन्म दिया है , उसने माँ के आँचल में दूध भी भरा है । 
चिंता और उत्तेजना की आग का त्याग कीजिए । आखिर किसी जलती डाल पर शान्ति की चिड़िया नहीं बैठा करती । 
चिन्ता छोड़ो और काम करो बस , यही सबसे लाभदायक मार्ग है । 
जो बात गई , उस पर पछताओ मत , जो आने वाली है , उसकी चिन्ता मत करो ,
 बस काम करो । जितना समय चिंता करने में नष्ट करेंगे , उससे कम समय में उसका हल ढूंढ सकते हैं ।
 
  हमारे शरीर की मशीन इतनी कुशलतापूर्वक बनाई गई है कि यह छोटी – मोटी बातें सह लेती है । 
  
लेकिन इस मशीन को सौ साल तक बेरोकटोक चलते रहने के लिए आवश्यक है कि इन पुर्जो पर चिंताओं की जंग न लगने दें । 
चिंता ने आज तक कभी किसी कमी को पूरा नहीं किया ।  
गम की चिड़ियों को आप अपने सिर पर उड़ने से नहीं रोक सकते ,
 लेकिन अपने बालों में उन्हें घोंसला बनाने से तो रोक ही सकते हैं ।

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