जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते। भाग 5

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जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते

                          कर्मठता 

कर्मठ जीवन में बड़ा सुख है । निठल्लापन आदमी को बीमारियों का निमन्त्रण देता है । 
कर्मठ लोगों के कंधों तक जिम्मेदारियाँ खुद चलकर आ जाती मूर्ख वह है जो परिश्रम नहीं करता । 
दुःखी वह है जो निठल्ला बैठता है । मुझे बताओ संसार का कौनसा कर्मठ व्यक्ति दुःखी कर्मठ मनुष्य भाग्य को भी बदलने की शक्ति रखता है । 
कर्मठ मनुष्य थक सकता है , लेकिन निराश नहीं हो सकता ।
          

                             कामासक्ति 

काम भोग क्षण मात्र सुख के देने वाले हैं , किन्तु लम्बे समय तक दुःख देने वाले हैं । जिसमें स्वल्प सुख और बहुत दुःख हो वे सुखदायी कैसे कहे जा सकते हैं ।
 काम – भोग शल्यरूप और विष रूप हैं । काम भोगों की अभिलाषा करने वाले मानव काम – भोग का सेवन न करते हुए भी केवल संकल्प मात्र से ही दुर्गति प्राप्त करते हैं ।  
 
जैसे अग्नि तृण समूह को जलाकर भस्म कर देती है , वैसे ही प्रज्वलित काम विकार कुल शील , तप , विद्या , विनय आदि गुणों को क्षण भर में नष्ट कर देते हैं । 
शास्त्रों द्वारा दिया गया विवेक विद्वानों के मन को तभी तक प्रभावित करता है , जब तक किसी सुन्दरी के नेत्र बाणों का वे शिकार नहीं बनते ।
 वे ही पुरुष जगत् में पूज्य और महाधैर्यशाली हैं , जो यौवनावस्था में दुर्जय काम – शत्रु का नाश करते हैं । 
 
जो मनुष्य काम के वशीभूत होकर सम्यक्त्व से भ्रष्ट हो जाते हैं , वे महादुःख प्राप्त करते हुए संसार रूपी समुद्र में भ्रमण करते हैं । 
काम तथा क्रोध मद्य से भी अधिक हानिकारक है , क्योंकि ये सभी मादक पदार्थों से बढ़कर हैं । 
जो प्राप्त होने से पूर्व ही सन्ताप करते हैं , प्राप्त होने पर अतृप्ति पैदा करते हैं और अन्त में जिनका परित्याग करना अत्यन्त कठिन है , ऐसे काम भोगों का कौन बुद्धिमान सेवन करेगा ? 
 जो धर्म व अर्थ का त्याग कर काम का सेवन करता है , वह वृक्ष की अंतिम शाखा पर सोये हुए व्यक्ति के समान है । गिरने । पर ही उसकी आँख खुलती है । 
 
कामरूपी अग्नि में ज्यों – ज्यों भोग रूपी घी डाला जाता है , त्यों – त्यों वह अत्यन्त उग्र तीव्र होती है और सन्ताप उत्पन्न करती है । 
कामासक्त व्यक्ति को देश , काल , अर्थ और धर्म का ज्ञान नहीं रहता है । जिस तरह किंपाक वृक्ष के फलों का परिणाम सुन्दर नहीं होता , इसी प्रकार भोगे हुए भोगों का परिणाम भी सुन्दर नहीं होता । 

                             कार्य 

काम के लिए पूरी तैयारी से ऑफिस में जाओ । अधूरी क्षमता व अधूरामन , ऐसे बिजली – घर जैसा होता है , जिसके आधे जेनरेटर यूज़ हो गये हों ।
 घर की चिन्ताओं का बोझ ऑफिस में मत ले जाओ । अपना काम देखो । अपना निर्णय स्वयं करो । बराबर दिनचर्या बनाकर काम करो ।
 
 तुम्हारा कायाकल्प हो जायेगा । बिना इसके आप बेकार हैं । दिन के उजाले में भी ऐसा काम मत करना कि रात के अंधेरे में नींद नहीं आए और रात के अंधेरे में भी ऐसा काम मत करना कि दिन के उजाले में भी मुँह छिपाना पड़े । 
 
वचन चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न हो , परन्तु दुनिया हमें हमारे कर्मों से ही पहचानती है । बड़े काम की तलाश करते रहने की बजाय छोटा काम ही सही , शुरू कर दीजिए ।  
किसी महान् कार्य को करने के प्रसंग में शत्रुओं से भी संधि कर लेना चाहिये । अपना कार्य इस तरह कीजिए कि वे आपकी पहचान बन जाए । 
बेरोजगार घूमने से तो अच्छा है , वह छोटा काम भी कर लिया जाये जो आपको रोजी – रोटी का साधन दे ।
 हो सके तो अपना मनपसंद काम कीजिए , नहीं तो जो कर रहे हैं उसे ही मनपसंद बना लीजिए । 
 
अगर आप महान् और प्रशंसनीय कार्य कर सकते हैं , तो फिर वैसा करने से वंचित क्यों रहते हैं । इससे पहले कि कल आप पर काम का अतिरिक्त बोझ पड़े , 
आप उसे आज ही करना शुरू कर दीजिए । एक समय में एक ही काम कीजिए , ताकि वह पूरी एकाग्रता से सम्पन्न हो सके ।
 शब्दों की अपेक्षा काम ज्यादा बोलता है । 
 
हरेक अच्छा कार्य पहले असंभव लगता है । 
 
जो अच्छा कार्य आज कर सकते हैं उसे कल पर न छोड़ें । जो बुरा कार्य कल पर छोड़ सकते हैं उसे आज न करें । 
अच्छा काम खराब मूहूर्त में कभी नहीं करते हो ना ? बुरा काम अच्छे मूहूर्त में भी कदापि मत करना । 
अगर काम करने वाले को अपने काम से कोई प्यार नहीं है तो न तो किस्मत चमकेगी और न कोई अच्छा नतीजा निकलेगा ।
 उसका जीवन दुःख से भर जायेगा । मन की प्रसन्नता , कार्य की लगन , कर्त्तव्य की निपुणता , साधन ये कार्य सिद्धि के लक्षण है । 
 
जिससे लोक और परलोक दोनों बिगड़ें ऐसे कर्म करते हुए एक कल्प तक जीने की अपेक्षा शुद्ध कर्म करते हुए एक मुहूर्त भर जीना श्रेयस्कर है । 
न रूप गौरव का कारण होता है और न ही कुल । व्यक्ति का कर्म ही उसकी शोभा बढ़ाता है । 
बुरे काम में यश मिलाने की अपेक्षा अच्छे काम में अपयश अच्छा है ।
 बिल्डिंग बनाने का काम पन्द्रह कर्मादान के अन्दर आता है । जितने काम शुरू हों या जिस कार्य का अनुबंध किया हो , उसके अतिरिक्त नया कार्य शुरू न करना ही हितकर है ।  
 

                            कीजिये  

 
यदि आप बीमार हैं तो आराम कीजिए और यदि स्वस्थ हैं तो आराम को हराम समझिये । 
 बुढ़ापे की स्वस्थता के लिए व्यायाम कीजिए , सुरक्षा के लिए धन की बचत कीजिए और मधुरता के लिए पोते – पोतियों से प्यार कीजिए । 
 
दिन में वह काम करो जिससे रात्रि सुख से व्यतीत हो , आठ महिने में वह काम करो , जिससे वर्षा ऋतु सुख पूर्वक निकल जाये । 
आयु के पहले भाग में वह काम करो जिससे बुढ़ापे में सुख हो और जीवन भर वह काम करो जिससे अगले जनम में सुख हो ।
 बहुत से लोग सोचते और बोलते बहुत हैं किन्तु जब करने का समय आता है तो पीछे हट जाते हैं ।
वह करो जिससे जीवन में फिर करना कुछ शेष न रहे । करने के बाद भी करना बाकी रहा तो करना निरर्थक हुआ । 
करने के बाद करना नहीं बचा तो करना सार्थक हुआ । 
अगर बचपन में पढ़ाई नहीं की तो जवानी में पछताना पड़ेगा 
। जवानी में कमाई नहीं की तो बुढ़ापे में पछताना पड़ेगा । बुढ़ापे में धर्म / पुण्य नहीं किया तो जन्म – जन्म पछताना पड़ेगा । 

                          कुशलता

 
 बहुत से काम खराब ढंग से करने के बजाय थोड़े काम अच्छे ढंग से करना बेहतर है । 
 
अक्रम से , अनुचित रीति से प्रारंभ किया काम सफल नहीं होता । शरीर की परवाह न करने वाले , सोच समझकर कार्य करने वाले दक्ष व्यक्ति के लिए कोई कार्य दुष्कर नहीं । 
प्रवीणता और आत्मविश्वास अविजित सेनाएँ हैं । बढ़िया काम करने का अहसास खुद में एक पुरस्कार है । 

                                क्रोध 

 । क्रोध प्रीति का नाश करता है । क्षमा से क्रोध को जीतना चाहिये
 क्रोध जब काफी समय तक बना रहता है तो वह वैर का रूप धारण कर लेता है । 
 
क्षणभर का गुस्सा व्यक्ति का पूरा भविष्य बिगाड़ सकता है । जब हम क्रोध की अग्नि में जलते हैं , तो इसका धुआँ हमारी ही आँखों में जाता है । 
 माचिस की तीली का सिर होता है , पर दिमाग नहीं , इसलिए वह थोड़े से घर्षण से जल उठती है । हमारे पास सिर भी है और दिमाग भी , फिर हम छोटी – सी बात पर उत्तेजित क्यों हो जाते हैं ? 
 
क्रोध का हमें तभी पता चलता है , जब हम कर चुके होते हैं । 
विकार जागते ही व्याकुलता जागती है । जब क्रोध आता है तो अपने साथ दुःख ही लेकर आता है । 
क्रोध , आग , घाव और कर्ज जीवन को जला व गला देते हैं , इन्हें कभी भी कम करके मत आंकिये ।
 चढ़ते पानी में तैरना नहीं , बढ़ते गुस्से में बोलना नहीं । क्रोध से होता खून का पानी , क्रोध है दुर्बलता की निशानी । क्रोध परमाणु अस्त्र की तरह है , इसका इस्तेमाल मत कीजिए । क्रोध की ज्वाला समझदारी को झुलसा देती है ।
क्रोध से होता खून का पानी , क्रोध है दुर्बलता की निशानी । क्रोध परमाणु अस्त्र की तरह है , इसका इस्तेमाल मत कीजिए ।
क्रोध की ज्वाला समझदारी को झुलसा देती है । हथियार स्वयं खतरनाक नहीं होते , मानव के अन्दर छिपा क्रोध उन्हें घातक बना देता है । 
एक मिनट का गुस्सा भी आपकी स्मरण शक्ति के दसवें हिस्से को नष्ट कर सकता है । 
चार बार भोजन करने से आप जितनी ऊर्जा प्राप्त करते हैं , एक बार क्रोध करने से वह नष्ट हो जाती हैं । 
जो बात आपने गुस्से और तैश में आकर कही है , काश वही आप प्रेम और शान्ति से प्रकट कर देते तो इस तरह पछताना न पड़ता । 
सात दिन के लिए अपने चिड़चिड़ेपन का त्याग कीजिए और देखिए कि आपका आदर पहले से कितना बढ़ा है । 
 क्रोध को जीतने में मौन जितना सहायक होता है , उतनी और कोई शक्ति नहीं ।
 
 जो व्यक्ति अपने क्रोध पर काबू कर सकता है , वही जीवन को सुखी बना सकता है । 
 
क्रोधी के पास कोई आने के लिए तैयार नहीं होता । वह मनुष्य वास्तव में आदर्श है , जो क्रोधावस्था में भी गलत बात मुँह से नहीं निकालता । 
क्रोध का निमित्त साधारण होता है जबकि परिणाम असाधारण होता है । 
क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है । 

                               गरीबी 

 
आप जीवन में कितने भी ऊँचे क्यों न उठ जाएँ पर अपनी गरीबी / कठिनाई के दिन कभी मत भूलिए । 
शर्म की अमीरी से इज्जत की गरीबी अच्छी है । 
गरीबी कष्टदायक है , परन्तु कर्ज भयजनक है । 
गलती यदि आप समझते हैं कि आपमें कोई त्रुटि नहीं है तो यह आपमें एक और त्रुटि है ।
 असफलता सही मायनों में कुछ गलतियाँ दोहराने का नतीजा होती है । 
 गलती वह है , जो हो जाने के बाद पता चलती है । 
 
हम प्रायः दूसरों के गुणों की अपेक्षा उनकी गलतियों से अधिक सीख लेते हैं ।

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