जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते भाग 4

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    जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते

                             उदारता 

यह अपना है और यह पराया है , यह तुच्छ मन वालों की गणना है । उदार चरित्र वालों के लिए सारी पृथ्वी ही अपना दूसरों के साथ वैसी ही उदारता रखो जैसी ईश्वर ने तुम्हारे साथ रखी है ।

जो भाग्यशाली है वह उदार होता है और उदारता से ही मानव भाग्यशाली होता है ।
समाज में खड़े होकर चंदा देने से पहले अपने भाई या पड़ोसी को सम्बल दीजिये ।

आपकी उदारता का पहला अधिकारी वही है । खाकर नहीं , खिलाकर खुश होइये ।
आटा डिब्बों में रखने के लिए नहीं , उपयोग करने के लिए होता है । सहज भाव से दिया गया एक मुट्ठी चावल , मान प्राप्त करने के लिए दिए गए एक मुट्ठी सोने से ज्यादा श्रेष्ठ हैं ।
व्यक्ति जितना कम लेता है और जितना ज्यादा देता है , उतना ही ज्यादा लोकप्रिय बनता है ।

बंद मुट्ठी की अपेक्षा खुला हाथ अनेक मित्र बना सकता है । किसी की झोपड़ी में आग कोई कमजोर भी लगा सकता है ,
आप किसी उजड़े हुए घर को बसाने की महानता दिखाइये

                      उपकार 

किसी के द्वारा किये गये छोटे से उपकार को भी मत भूलिये और किसी पर भी आपके द्वारा किये बड़े से बड़े उपकार को भी याद मत रखिये ।
उत्तम पुरुष कार्य के पूर्व तथा मध्यम पुरुष कार्य के पश्चात् उपकार करते हैं ।

परन्तु जो कार्य के पश्चात् भी उपकार नहीं करते हैं , उन्हें अधम समझना चाहिए ।

उत्तम आत्मा ‘ देकर ‘ भूल जाती है , जबकि अधम आत्मा ‘ लेकर ‘ भी याद रखने के लिए तैयार नहीं होती ।
जब तक स्वाभाविक चल लक्ष्मी पास में है , तभी तक उपकार का अवसर है ।
चिरस्थायिनी विपत्ति के समय फिर उपकार करने का अवसर कहाँ ?
संसार में दो ही व्यक्ति दुर्लभ हैं – उपकारी और कृतज्ञ । उपकार करके कहना वैर करने के बराबर । उपासना E पानी जोमा अभिनपाट दमा
उपकार करके कहना वैर करने के बराबर है ।

                        उपासना 

सच्ची उपासना वही है , जिससे हमारा मन अधिक शुद्ध , उदार , निर्भय और प्रसन्न बने ।
जिसके हृदय में प्रभु बसते हैं , उस पर प्रभु की करुणा खुलकर बरसती हैं ।

ईश्वर का स्मरण करने से हमारी शान्ति और खुशी का खाता ( ग्राफ ) बढ़ जाता है ।
ब्रह्मवेला में ब्रह्म ( परमात्मा ) का स्मरण करना चाहिये । जो परमात्मा का सुबह – सुबह स्मरण करते हैं , निश्चित उनका सुमरण होता है तथा जो परमात्मा को धन्यवाद देते हैं , उनके जीवन में परम धन्यता प्रकट होती है ।

                       ऐश्वर्य 

पृथ्वी पर ऐश्वर्य पुरुष के पास वैसे ही आता है , जैसे नारियल में मधुर पानी ।
ऐश्वर्य सम्पन्न व्यक्ति के पास सभी लोग प्रयास करके शीघ्र स्वतः पहुँच जाते हैं ।

सभी नदियाँ बड़ी दूर से रत्नोत्पादक समझकर समुद्र के पास स्वतः पहुँच जाती हैं ।

निर्धनता में भी मनुष्यों के लिए आरोग्य , विद्वत्ता , सज्जनों की मैत्री , उत्तम कुल में जन्म और स्वाधीनता यह बहुत बड़ा ऐश्वर्य है ।
जब मनुष्य ऐश्वर्य से वर्धमान होता है तब सैकड़ों बन्धु बान्धव उसके पास आते हैं जैसे कि जब तालाब जल से भर जाता है तब हजारों मेंढक उसमें आ जाते हैं ।
इस संसार में ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले पुरुष को निद्रा , तन्द्रा , भय , कोप , आलस्य और दीर्घसूत्रता इन छ : दोषों को छोड़ना चाहिए ।
आकृति के वैभव के साथ प्रकृति का वैभव जिन्हें प्राप्त होता है वे समाज के लिए वरदान होते हैं ।

                        कर्तव्य

 धन और व्यवसाय में इतने भी व्यस्त मत बनिये कि स्वास्थ्य , परिवार और अपने कर्तव्यों पर ध्यान न दे पाएँ ।

गुणवान व्यक्ति अपने कर्त्तव्य की बात सोचते हैं और गुणहीन अपने अधिकारों को अलापते हैं ।
विश्व का सबसे निकृष्ट व्यक्ति वह है , जो अपना कर्त्तव्य जानते हुए भी उसका पालन नहीं करता है ।
अधिकार का सच्चा स्रोत कर्त्तव्य है । अगर व्यक्ति अपने कर्त्तव्य पूरे करें तो अधिकारों को ढूंढने कहीं दूर नहीं जाना । होगा ।
अपने कर्मचारी के साथ भी इतने धैर्य और शान्ति से पेश आइये कि वे अपने कर्तव्य के लिए सहज प्रेरित रहें ।
कर्त्तव्य के पालन में मन , बुद्धि , धन का उपयोग होना चाहिए , मुँह बन्द होना चाहिए ।

                           कर्म

जैसे बछड़ा हजारों गायों में भी अपनी माँ को पहचान लेता है , उसी तरह पूर्वकृत कर्म भी स्वयं कर्ता को पहचान लेते हैं ।
इस दुनिया में कोई किसी को सुख – दुःख नहीं देता , सभी अपने अपने कर्मों के अनुसार सुख – दुःख भोग रहे हैं ।

मार्ग में जैसे राहगीरों का साथ मिल जाता है , उसी तरह चक्रवत् परिवर्तनशील इस अनित्य संसार में भाई , माता , पिता , पुत्र , प्रियजनों का साथ है ।
जाए , दुःख , पिछले जन्म के ‘ पाप ‘ की घोषणा करता है । पर , सुख अगले जन्म के ‘ दुःख ‘ का आरक्षण करने वाला सिद्ध न हो ।
इसकी विशेष सावधानी रखना । कर्मों का भुगतान तो महान् आत्माओं को भी करना पड़ता है ।
भाग्य , कर्म या प्रकृति से जो कुछ जीवन में प्राप्त हुआ है , हम सबको उसी में समाधान मानना है ।
ताश के पत्तों का वितरण हो चुका है । जो पत्ते हमें मिले हैं , उन्हीं से खेलना है ।
इस संसार के स्वरूप की योजना में कर्म ही मूल कारण है , माता पिता तो निमित्त मात्र जिस प्रकार सेंध लगाते हुए पकड़ा हुआ चोर अपने ही किए हुए कर्मों से दुःख पाता है ,

उसी प्रकार जीव इस लोक और परलोक में अपने किए हुए अशुभ कर्मों से दुःख पाते हैं । क्योंकि फल भोगे बिना किये हुए कर्मों से छुटकारा नहीं होता ।
राम।         राम।            राम।            राम।        राम।

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