जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते भाग 3
जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते।
आलोचना
अनुचित आलोचना परोक्ष रूप से आपकी प्रशंसा ही है , स्मरण रखिए , कुत्सित फूल पर भ्रमर कभी नहीं बैठते ।
नासमझ लोगों द्वारा की गई तारीफ के मुकाबले समझदार की आलोचना अच्छी होती है । आलोचना के बाद प्रोत्साहन बारिश के बाद सूरज चमकने की तरह है ।
योग्यताएँ आलोचनाओं के तुषार से कुम्हला जाती हैं ।
आवश्यकताएँ
आवश्यकताओं को इतना मत बढ़ाइए कि वे द्रौपदी का चीर बन जाएँ ।
लोग सिर्फ अपनी जरूरतों के बारे में सोचते हैं , अपनी क्षमताओं के बारे में नहीं ।
दुनिया में मनुष्यों की जरूरत पूरी करने के लिए खूब संसाधन हैं , लेकिन उनकी लालसा पूरी करने के लिए नहीं
आश्चर्य
प्रतिदिन लोग यमलोक में जा रहे हैं । फिर भी शेष बचे लोग अमरता चाहते हैं , इससे बढ़कर और क्या आश्चर्य हो सकता है ।
भला इससे बढ़कर आश्चर्य की बात और क्या होगी कि हम भौतिक वस्तुओं को अपना समझकर उनके लिए तो चिन्ता करते हैं , पर आत्म – धन की चिन्ता नहीं करते ।
मनुष्य बादाम खाता हो और उसके बावजूद उसके चेहरे पर चमक न आती हो तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होता ।
भिखारी करोड़पति बन जाए और उसके बावजूद उसके रहन सहन में कोई फर्क न दिखाई दे तो इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं होता ।
परन्तु वर्षों से जीवन में धर्माराधनाएँ चलने के बावजूद किसी व्यक्ति के स्वभाव या व्यवहार में जब कोई सम्यक् परिवर्तन दिखाई नहीं देता , तब सचमुच ही बड़ा आश्चर्य होता है ।
आश्चर्य है कि जिनके साथ हमने क्रीड़ा की , प्रेमपूर्वक वार्तालाप किया और जिनकी खुले दिल से प्रशंसा की , उन्हें जलकर खाक होते देखकर भी हम निर्भय बैठे हैं ।
शराबी के हाथ में गाड़ी नहीं सौंपी जाती । छोटे बच्चे के हाथ में छुरी नहीं दी जाती ।
जुआरी को व्यापार की जिम्मेदारी नहीं सौंपी जाती । व्यभिचारी को अनजान नारी नहीं सौंपी जाती ।
लफंगे नौकर को तिजोरी की चाबियाँ नहीं सौंपी जातीं ।
आवारा बेटे को व्यापार की कमान नहीं सौंपी जाती ।
व्यसनी के हाथ में बेटी का हाथ नहीं दिया जाता । ये सब बातें समझने वाली | जनता जब ‘ सत्ता ‘ किसी के हाथ में सौंपने के लिए तैयार हो जाती है , तब बड़ा आश्चर्य होता है ।
रामायण का युद्ध शुरू होने के पहले विभीषण रावण के पास गया था । महाभारत का युद्ध शुरू होने से पहले कृष्ण दुर्योधन के पास गए थे ।
परन्तु रावण ने विभीषण की सलाह नहीं मानी , दुर्योधन ने कृष्ण की सलाह अस्वीकार कर दी और युद्धों का सर्जन हो गया ।
किसी भी प्रकार का पाप करने के पहले अंतःकरण हमारे पास आता ही है , परन्तु हम जब उसकी उपेक्षा ही करते रहते हैं , तब बड़ा आश्चर्य होता है ।
स्वामी होने के बावजूद मनुष्य दान देने के मामले में जब कृपणता दिखाता है तब सचमुच बड़ा अचरज होता है ।
बुढ़ापा बाघ की तरह गुर्राता हुआ सामने खड़ा है । शत्रु की तरह रोग शरीर पर नित्य प्रहार करते हैं । छिद्रयुक्त घट की तरह आयु का नित्य क्षय हो रहा है । लेकिन आश्चर्य है फिर भी लोग अहित आचरण में लगे रहते हैं ।
आशा
जिसके पास उम्मीद है , वह लाख बार हारकर भी नहीं हारता ।
उम्मीदों का सहारा मत छोड़िए , जीने का वही सबसे बड़ा सहारा है ।
हर संस्था , हर व्यक्ति तथा हर नौकरी के युग , कालखण्ड या दौर होते हैं । हम डटे रहें , नई सुबह जरूर आयेगी ।
आशा को अपनी सहेली बनाइये और उत्साह को अपना मित्र ; इन्हें साथ लीजिए और मंजिल तय कीजिए ।
स्वभावतः शरीर जीर्ण होने पर सभी कुछ जीर्ण हो जाता है , पर | जराग्रस्त होने पर भी जीवन की आशा और धन की आशा मंद नहीं होती है ।
आस्था
सम्यक् श्रद्धा परम दुर्लभ है । आस्था की शक्ति से चमत्कार होते हैं ।
जैसे ही श्रद्धाभाव का उदय होता है , वैसे ही तर्क शान्त पड़ जाते हैं ।
फियेट कार नहीं , मारुति कार नहीं , एम्बेसेडर कार नहीं , भाई मेरे पास तो नवकार है ।
आज्ञा
प्रभु आज्ञा में चलने वालों को , प्रकृति भी परेशान नहीं करती ।
पैसे की खातिर यदि हम अपने क्रोध पर काबू रख सकते हैं तो क्या परमात्मा की आज्ञा की खातिर अपने क्रोध पर काबू नहीं रख सकते ?
हम श्रम करते हैं पाप कार्य में , परन्तु सत्कार्य में ताकत नहीं लगाते ।
प्रभु की आज्ञा के अनुसार हमारी एक भी इन्द्रिय एक घण्टा भी काम करती है क्या ?
ईमानदारी
यदि व्यापार को स्थायी और टिकाऊ बनाना है तो ईमानदारी और सच्चाई का व्यवहार करना ही पड़ेगा ।
ईमानदारी और सच्चाई के व्यवहार से व्यवसाय की सुंदरता बढ़ेगी ।
यदि मैं अपने सभी कार्यों में ईमानदार हूँ तो मुझे डर का अनुभव कभी नहीं होगा ।
ईमानदार व्यक्ति कभी किसी अनजान व्यक्ति की नजरों से भयभीत नहीं होता ।
आप एक ईमानदार इंसान बन जाइये , दुनिया से एक बेईमान कम हो जायेगा ।
ईर्ष्या
ईर्ष्या का पाप न हमें स्वयं गुणवान बनने देता है और न ही गुणवानों के गुण देखने देता है ।
ईर्ष्यावश हम दूसरों को गिराना चाहते हैं , परन्तु ऐसा करके हम स्वयं ही गिर जाते हैं ।
व्यक्ति अपने खुद के दुःख से इतना दुःखी नहीं होता , जितना दूसरों के सुख से दुःखी होता है ।
उत्साह / उमंग
हताश न होकर उत्साहित रहना ही सुख समृद्धि का मूल कारण है ।
उत्साह ही सुख का मूल है । उत्साह ही प्राणीयों को सर्वदा सभी कार्यों में प्रवृत्त कराता है और वही उन कार्यों में सफलता प्रदान कराता है ।
उत्साही ही बलवान होता है । उत्साह से बढ़कर दूसरा कोई बल नहीं है ।
उत्साही पुरूष के लिए संसार में कोई वस्तु दुर्लभ नहीं है ।
दुर्दान्त शत्रु भी उत्साही व्यक्तियों के वश में हो जाते हैं ।
उत्साही मनुष्य जगत में अत्यन्त दुष्कर कार्य में भी कभी दुःखी नहीं होते हैं ।
उमंग से निर्बल व्यक्ति भी शक्तिशाली हो जाता है । उमंग की लहरों में निराशाएँ बिल्कुल नष्ट हो जाती हैं ।
हर मंजिल के रास्ते होते हैं और हर रास्ते पर मुश्किलें । मन में अगर उमंग है तो विश्वास रखिये जीत आपकी है । महत्त्वाकांक्षा काम की ऊब मिटा देती है ।
उमंग उसका बोझ हल्का कर देती है । उत्साह उसमें मिठास पैदा कर देता है ।
सफलता के लिए इच्छा शक्ति चाहिए और इच्छा शक्ति के लिए उत्साह । उत्साह से किया गया हर कार्य सफलता के शिखर की ओर ले जाता है ।
जिस व्यक्ति के मन में आनंद और उत्साह नहीं है , वह एक जीवित मुर्दे के समान है ।