जीवन से जुड़ी प्रेरणा दायक बाते ।
अन्तरावलोकन
पिछले बीस सालों का निरीक्षण कीजिए । हो सकता है आपको अपने जीवन से ही कोई अच्छी प्रेरणा मिल जाए । अपने आपको पहचानना सबसे कठिन काम ।
दूसरों की गलती निकालना सबसे आसान काम । किसी की कमी देखने में रस मत लो । किसी में कमी है तो अपने को हानि नहीं ।
अपने में कमी है तो अपने को हानि है । अपना जीवन औरों की पोल खोलने के लिए समर्पित मत करो । अपने जीवन को अपनी पोल खोलने के लिए समर्पित करो ।
स्वचिंतन आत्म उन्नति की सीढ़ी है , परचिंतन पतन की जड़ दूसरों की दृष्टि में उठना आसान है , स्वयं की दृष्टि में अच्छा बनना मुश्किल से मुश्किल काम है ।
दूसरा हमको नहीं पहचानता , उसका हमें बहुत खेद होता है । परन्तु हम स्वयं अपने आपको नहीं जानते इसकी कोई तकलीफ हमको नहीं होती ।
अध्यात्म
न मालूम किस योनि , किस गति से हम आये हैं और कहाँ जायेंगे कुछ ज्ञात नहीं । पर इतना निश्चित है , यह जगत हमारा घर नहीं , यहाँ हम अजनबी हैं , परदेशी हैं , हमारा घर कहीं और है ।
अन्तर्यामी को पहचानने के लिए अन्तर्मुखी बनो ।
इस भव के बाद हम जहाँ भी होंगे , तब इस भव का हमारे पास क्या होगा ? विचार करें । सब भौतिक रस , रस हैं । स्वानुभूति का रस , परम रस है ।
परम रस के समक्ष सब रस नीरस है । उतार – चढ़ाव से भरे जीवन का नाम व्यावहारिक जीवन है । उतार – चढ़ाव से मुक्त जीवन का नाम आध्यात्मिक जीवन है ।
सुविधा , पूजा , सम्मान , ख्याति और पद के आकर्षण अध्यात्म पथ के काँटे हैं । जिसे आध्यात्मिक प्रगति इष्ट है उसे इन काँटों को बुहारकर चलना चाहिए अन्यथा आध्यात्मिक प्रगति का स्वप्न , स्वप्न ही बना रहेगा ।
हमें बाहर के लुभावने दृश्य आकर्षक लगते हैं , परन्तु इन भौतिक सुखों के पीछे दुःख भागता हुआ हमारे पास आ रहा है । मछली को आटा दिखता है पर आटे के पीछे का कांटा नहीं दिखता , जो जानलेवा होता है ।
तुम्हारी आत्मा राग – द्वेष की जंजीरों से जकड़ी हुई है , इसे मुक्त करना तुम्हारा प्राकृतिक दायित्व है । मन को शान्त करो , वीतराग बनो और अपने प्राकृतिक दायित्व के ऋण से मुक्त बनो ।
अध्यात्म के मार्ग पर जाना है तो मन की बात मत सुनो । मन पर विवेक का चौकीदार रखो जो चोर को रोक ले और साधु को आने दे ।
अनित्यता
शरीर पानी के बुलबुले के समान निःसार है तथा यह जीवन विद्युत के समान चंचल है ।
मरण के समय जन्म से साथ निभाने वाला यह शरीर ही जब साक्षात् पृथक् दिखाई देता है , तब स्पष्ट रूप से भिन्न दिखने वाले घर आदि क्या अपने हो सकते हैं ?
घड़ी आदमी को घड़ी – घड़ी चेताती है कि जिंदगी घड़ी दो घड़ी से ज्यादा नहीं है । काली – गोरी चमड़ी की होगी राख समान ।
पुद्गल के इस पुतले का क्या करना अभिमान । पानी पर खींची हुई लकीर की कोई उम्र नहीं होती , जीवन भी लगभग ऐसा ही है ।
पता नहीं कब कूच करने का नगाड़ा बज जाए । दुष्टों की मित्रता , शत्रुओं का भाग्य और कोमलांगी ललनाओं का यौवन ; ये चिरस्थायी नहीं होते ।
लोग सूर्योदय होने पर भी प्रसन्न होते हैं और सूर्यास्त होने पर भी । पर वे यह नहीं जानते कि प्रतिदिन अपने जीवन का नाश हो रहा है ।
अनुकूलता
अनुकूलता में उच्छृखलता बढ़ती है , आसक्ति बढ़ती है ; पुण्य के उदय में उछलकूद बढ़ती है ।
एकान्त में चिंतन करें कि अनुकूलता व पुण्य का लाभ मिलने पर भी अरे राम मैं तो अभी भी वहाँ के वहाँ हूँ । अभ्यास अनुकूलता में होता है ।
परीक्षा प्रतिकूलता में होती है । पुण्य के योग में ज्यादा इतराना सबसे बड़ी नादानी है ।
अनुभव
अनुभव मनुष्य का सबसे अच्छा अध्यापक होता है । मूर्ख लोग इससे कुछ सीख नहीं पाते । असफलता के अनुभव के बिना सफलता का लुत्फ नहीं उठाया जा सकता ।
अनुभव की पाठशाला में जो पाठ सीखे जाते हैं , वे कहीं और नहीं मिलते । ज्ञान से अनुभव प्राप्त नहीं होता , लेकिन अनुभव से ज्ञान प्राप्त होता है ।
अप्रमाद
जब तक शरीर स्वस्थ एवं नीरोग है , वृद्धावस्था दूर है , इन्द्रियों की शक्ति भरपूर है , तब तक बुद्धिमान आत्म कल्याण के लिए प्रयत्न कर ले , अन्यथा घर में आग लग जाने पर कुआँ खोदने से क्या लाभ ?
कहीं ऐसा न हो कि करने लायक काम किये बिना ही हम विदा हो जायें ।
कहीं ऐसा नहीं हो कि चाँदी की बिक्री कर लोहे की खरीदी करने में जीवन को व्यर्थ गवायें ।
बर्फ का उपयोग गलने से पहले , सूर्य का उपयोग ढलने से पहले , मनुष्य जीवन का उपयोग मरने के पहले कर लेना चाहिये । यदि आँख बंद होने के पहले आँख खुल जाये तो जीवन जीने का मजा आ जाये ।
सावधान ! आपकी थोड़ी – सी असावधानी आपके लिए कई मुसीबतों के पहाड़ खड़े कर सकती है ।
अहंकार
जाति , लाभ , कुल , ऐश्वर्य , बल , रूप , तप और श्रुत इन आठ मनुष्य जिसका अभिमान करता है , भवान्तर में उसी की हीनता प्राप्त करता है ।
जो अभिमान में अत्यन्त उन्मत्त है , अहित में ही हितबुद्धि रखते हैं तथा अपनी मनमानी करते हैं , उनके लिए न परलोक है , न परमात्मा ।
जरा रूप का , आशा धैर्य का , मृत्यु प्राणों का , ईर्ष्या धर्माचरण का , क्रोध लक्ष्मी का , दुर्जन – सेवा शक्ति का , काम लज्जा का नाश करता है किन्तु अभिमान सबका नाश करता है ।
मोक्ष का द्वार अहंकार पर विजय प्राप्त करने से ही खुलता है । अहम् की ग्रंथि टूटने से ही अर्हम् की यात्रा प्रारंभ होती है । अभिमान के दो कटु फल सदा याद रखना , बाहर से वह आपको अप्रिय बनायेगा और भीतर से अपात्र ।
जहाँ अज्ञान है , वहीं अहंकार हो सकता है और जहाँ अहंकार है वहीं अज्ञान हो सकता है । मोह रूपी बादल में यह रूप निश्चय ही बिजली की कौंध के समान है ।
ऐसा विचार करके आश्चर्यपूर्ण सौन्दर्य विलास का अभिमान नहीं करना चाहिए । अहंकार ; विनय , श्रुत और शील इस त्रिवर्ग का घातक है ।
वह मनुष्य के विवेक रूपी नेत्र को बन्द करके उसे अन्धा करता है । तपस्या में प्रवृत्ति सरल है , पर मान का त्याग सरल नहीं है । केवल तपस्या की प्रवृत्ति मोक्ष नहीं दे सकती है । तप के साथ अहंकार – त्याग भी आवश्यक है ।
त्रैलोक्य विजेता रावण ने वानरों से पराजय प्राप्त की । सर्वोत्तम नरेश कुरुराज दुर्योधन ने अपने मस्तक पर पैर का आघात पाया ।
अन्ततः सामान्य लोगों की तरह सबकी साधारण गति होती है । इसलिए ऐसा कौन है जो अहंकार में फूलकर यह सोचे कि मैं बड़ा हूँ ।
अभिमान के साथ कोई भी शुभ कार्य प्रारंभ नहीं करना चाहिए क्योंकि वह अन्ततः निष्फल होता है ।
मनुष्य जितना छोटा होता है , उसका अहंकार उतना ही बड़ा होता है ।
दूसरों की अकल की हँसी करना , अपनी अकल का अहंकार है ।
यौवन , सौन्दर्य तथा ऐश्वर्य इनमें से प्रत्येक मद का कारण है । अहंकार का नाश होने से ज्ञान , ध्यान , भक्ति सबका जन्म होता है ।
निरहंकारिता से सेवा की कीमत बढ़ती है , अहंकार से घटती प्रभुता और अहंकार दोनों साथ साथ चलते हैं ।
शराब के नशे से अहंकार का नशा ज्यादा खराब है । अहंकार मनुष्य के विनाश की नींव है और पराभव का द्वार है ।