धर्म जोड़ता मन वीणा के टूटे तारों को।

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धर्म जोड़ता मन वीणा के टूटे तारों को।

 दीपावली का समय नजदीक था , एक व्यक्ति अपने घर की सफाई में लगा हुआ था । अचनाक उसकी दृष्टि एक ऐसी वस्तु पर पड़ी , जिसके विषय में वह कुछ खास नहीं जानता था ।
उसे कुल इतना ही पता था कि उसके पिता कहा करते थे कि बेटे यह बड़े काम की चीज है , इसे सम्भाल कर रखना और जब भी उसने अपने पिता से पूछा कि यह किस काम की चीज है तो उसके पिता उससे यही बोलते थे कि मुझको नहीं पता पर मेरे पिता कहा करते थे कि यह बड़े काम की चीज है , इसे सम्भाल कर रखना ।
वर्षों से वह चीज उसके घर में पड़ी हुई थी लेकिन आज उसका मन परम्परा के प्रति बगावत के भाव से भर उठा और उसने सोचा कि पता नहीं क्यों पुराने लागे व्यर्थ में अपना बहुत सारा समय और शक्ति ऐसी चीज के लिये बर्बाद करते हैं जो लंबा चौड़ा स्थान घेरती है ,
 इसका क्या उपयोग ? और इसी मनोभाव से प्रेरित होकर उसने उसे उठाया और कचरे के ढेर में फेंक दिया । थोड़ी देर बाद किसी राहगीर की दृष्टि उस वस्तु पर पड़ी , वह उसके नजदीक पहुंचा और उसे उठाया , उसे उलट – पुलट कर देखा तो वह एक वीणा थी , 
जिसके तार टूटे हुये थे । उसने तार से तार मिलाये और अपनी उंगलियों का स्पंदन जब उसमें दिया तो उसमें से मधुर संगीत प्रस्फुटित हो उठा , वह हर्ष से झूम उठा । बंधुओं संत कहते हैं कि हमारा जीवन भी इसी वीणा की भांति है , पर वीणा का लाभ और वीणा का उपयोग केवल वही कर सकते हैं जो वीणा को पहचानते हैं । जो अपनी जीवन वीणा को पहचान लेते हैं , उनका जीवन
संगीत का रस प्रकट करते हैं या सारी जिंदगी को सिर दर्द की तरह जीने के लिये मजबूर हो जाते हैं । दुनिया में दोनों तरह के लोग हैं । कुछ लोग हैं जो जीवन का वास्तविक लाभ उठाते हैं रस लेते हैं , अपने जीवन को आनंद की यात्रा बना डालते हैं और बहुत से ऐसे लोग भी हैं जो जीवन जीते हैं ,
बस जिये चले जाते हैं , उनकी जिन्दगी में उपलब्धि जैसा कुछ भी घटित नहीं होता , वे अपने जीवन के सार तत्व को प्राप्त नहीं कर सकते ।
सन्त कहते हैं कि देह की इस वीणा में जब साधना का तार जोड़ोगे तो उसके भीतर से जो उबरेगा , वही तुम्हारे जीवन के आनंद का संगीत होगा , वही तुम्हारे जीवन की मधुरता का आधार बनेगा । 
जीवन में मधुरता तब तक नहीं आ सकती जब तक हम अपनी जिन्दगी के तार को ठीक नहीं करते । आज वीणा तो सबके पास है लेकिन तार टूटे हुये हैं , जरूरत केवल उस तार को जोड़ने की है ।
 धर्म और कुछ नहीं करता , धर्म हमें उस टूटे हुये तार को जोड़ने के लिये उत्प्रेरित करता है और जिसके तार जुड़ जाते हैं , उसका जीवन झंकार से भर उठता है । उसके भीतर एक आनंद का झंकार उत्पन्न होता है , एक अनहदनाद प्रकट होता है , एक अद्भुत संगीत प्रकट होता है , जो उसके जीवन की रसोमयी सहृदयता से जोड़ देता है और उसका जीवन सर्वत्र मधुरता से भर जाता है ।
                           श्री 108 प्रमाणसागर जी महराज

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