नाम और रूपकी तुलना। आध्यात्मिक ज्ञान।

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नाम और रूपकी तुलना ।

पिछली दो चौपाइयोंमें नाम और नामीकी महिमा बतायी गयी और दोनोंको ही श्रेष्ठ , अकथनीय और अनादि बताया । दोनोंमें गहरे उतरनेसे ही पता लगता है । अच्छी समझ होनेसे दोनोंमें हमारी प्रीति हो सकती है । अब आगे गोस्वामीजी महाराज कह रहे हैं

को बड़ छोट कहत अपराधू । 

 सुनि गुन भेदु समुझिहहिं साधू ॥ 


, इन नाम और रूपमें कौन बड़ा है , कौन छोटा है , यह कहना अपराध है । इनके गुणोंका तारतम्य सुनकर साधु पुरुष खुद ही समझ जायेंगे कि वास्तवमें बड़ा कौन है । इसलिये हम इन दोनोंके गुण – भेद बता देंगे , पर छोटा – बड़ा नहीं कहेंगे ! गोस्वामीजी महाराज यहाँ ऐसी बात कहते हैं ; परंतु आगे उनसे कहे बिना रहा नहीं गया ।
निर्गुण – स्वरूपका वर्णन करते समय उपक्रममें ‘ मोरे मत बड़ नामु दुहू तें ‘ मेरी सम्मतिमें नाम इन दोनोंसे बड़ा है – ऐसा कहते हैं और निर्गुणकी बातका उपसंहार करते हुए निर्गुण – स्वरूपके लिये अलगसे कहते हैं कि ‘ निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार ‘ अर्थात् अभी ऊपर प्रकरणमें जिसका वर्णन किया , उस निर्गुणसे नामका प्रभाव बड़ा है । फिर सगुणका वर्णन करते हुए उपक्रममें ‘ कहउँ नामु बड़ राम तें ‘
अब अपने विचारके अनुसार कहता हूँ कि सगुण भगवान् रामसे भी नाम बड़ा है । इसे सिद्ध करनेके लिये पूरी रामायणमें रामजीने क्या – क्या किया और नाम महाराजने क्या – क्या किया , ऐसे वर्णन करके उपसंहारमें फिर निर्गुण और सगुण दोनोंसे नामको बड़ा बताते हैं ।

 ‘ ब्रह्म राम तें नामु बड़ बर दायक बर दानि ‘ इस प्रकार नाम निर्गुण ब्रह्म और सगुण राम , दोनोंसे बड़ा है । ऐसे पहले उपक्रममें दोनोंसे नामको बड़ा बताया और फिर उपसंहारमें भी दोनोंसे नामको बड़ा बताया । बीचमें भी निर्गुणका उपसंहार करते हुए निर्गुणसे बड़ा कहा और सगुणका उपक्रम करते हुए सगुणसे बड़ा कहा । ऐसे बीचमें अलग – अलग एक – एकसे नामको बड़ा बताया । इस प्रकार पूरे प्रकरणमें यही बात चार बार कह दी कि नाम इन दोनोंसे बड़ा यहाँ जो कहा कि ‘ को बड़ छोट कहत अपराधू ‘ इसका अर्थ यह हुआ कि ‘ छोट कहत अपराधू ‘ किसीको किसीसे छोटा बताने में अपराध लगता है , पर बड़ा कहने में अपराध नहीं लगता है । इसलिये गोस्वामीजी महाराजने नामको चार बार बड़ा कहा , पर किसीको छोटा कभी नहीं कहा है । अब आगे गोस्वामीजी कहते हैं

देखिअहिं रुप नाम आधीना ।

  रूप ग्यान नहिं नाम बिहीना ।।


भगवान् अपने नामके अधीन हैं , नामके बिना भगवानके स्वरूपका ज्ञान नहीं हो सकता । भगवान् जब वनमें गये तो लोगोंने पूछा कि ये कौन हैं ? कहाँसे आये हैं ? ऐसे पूछनेपर परिचय देते हैं कि ये रामजी हैं और साथमें ये लक्ष्मणजी हैं । ऐसे उनका नाम बतानेसे ही उनकी पहचान होती है । इसलिये भगवान्से भी भगवान्का नाम बड़ा रूप नाम रूप ग्यान है ।

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