ध्रुव सगलानि जपेउ हरि नाऊँ ।
~~श्री हरि~~
संसारका आकर्षण रखनेवाले ‘आर्त’ और ‘अर्थार्थी’ भी भगवान्के ही भक्त होते हैं । परंतु धनके लिये भगवान् का नाम लेनेसे या कोई दुख दूर करनेके लिये भगवान् का नाम लेनेसे उसे ‘अर्थार्थी’ या ‘आर्त’ भक्त नहीं कहा जाता । ‘अर्थाथीं’ और ‘आर्त’ भक्त तो वे कहलाते हैं, जो धनके लिये केवल भगवान्के ऊपर ही भरोसा रखते है । धन प्राप्त करेगे तो केवल भगवान्से ही, दूसरे किसीसे नहीं-ऐसा उनका दृढ निक्षय होता है ।
जैसे, ध्रुवजी महाराजको नारदजीने कहा कि ‘तुम बापस घर पर चलो । हम राजासे कहकर तुम्हारा और तुम्हारी माँका प्रबन्ध करवा देंगे । तुम्हें राज्य भी दिलवा देंगे ।’ ध्रुवने जब इस बातको स्वीकार नहीं किया तो, उसे डराया कि देख ! जंगलमेँ बाघ, चीते, सर्प आदि बड़े-बड़े भयंकर ज़न्तु हैं, वे तुझे खा जायेंगे, पर न तो वह डरा और न धनके लोभमें ही आया । ध्रुवजी तो नाम-ज़पमेँ लग ही गये, यद्यपि ध्रुवजीकी आरम्भमे शुद्ध भावना नहीं थी । उस समय उनके मनमे राज्यका लोभ था । इस विषयमेँ श्रीगोस्वामीजी महाराज कहते है…
ध्रुव सगलानि जपेउ हरि नाऊँ ।
पायउ अचल अनूपम ठाऊँ ।।
पायउ अचल अनूपम ठाऊँ ।।
ध्रुवजीने ‘ग्लानिसे (विमाताके वचनोंसे दुखी होकर सकामभावसे) ‘हरि’ नामका जप किया । विमाताने पिताकी गोदसै उतारकर धक्का देकर निकाल दिया कि ‘जा तू इस गोदमें बैठने लायक नहीं है । तू उस अभागिनकी क्रोखसे जन्मा है, इसलिये राजाकी गोदने बैठनेका अधिकारी नहीं है ।’ ध्रुव इस बातसे बडा दुखी दुआ । ध्रुव नेमाँसे पूछा तो उसने भी कहा-‘तेरी छोटी माने जो बात कही है, वह सच्ची है । तूने और मैंने…दोनोंने ही भजन नहीं किया । तभी तो यह दशा हुईं है । नहीं तो हमारी ऐसी दशा क्यों होती ! ‘ ऐसा सुनकर वे भगवान्से ही राज्य लेनेकी इच्छाक्रो लेकर भजनमेँ लग गये ।
नारदजीकें “ प्रलोभन और भय दिखानेपर भी वे पीछे नहीं हटे, भजन
करनेके लिये जंगलमें चल दिये; क्योंकि वे ध्रुव अर्थातपक्के थे । ऐसे
भक्तोंको ‘ अर्थाथीं’ कहा जाता है ।
आजकल भी लोग भगवान्से धन चाहते हैं, पर वे केवल
भगवानके भक्त नहीं हैं । साथ-साथ वे भक्त बनते हैँ-झूठ, कपट
और बेईमानीके । वे कहते है… हे बेईमानी देवता. हे झूठ देवता । हे कपट देवता. है ब्लैक देवता ! तुम हमें निहाल करो । आपकी कृपासे ही हम जीयेगे, और जीनेका कोई साधन है नहीं । वे भी एक तरहसे अर्थाथीं भक्त है, पर हैं वे पापोंके भक्त भगवान के नहीं हैं । जो भगवान्का भक्त होगा, वह पाप क्यों करेगा क्या पाप जितनी भी ताकत भगवान्में नहीं है !