पाप पयोनिधि जन मन मीना’ आध्यात्मिक ज्ञान।

Spread the love

~~श्री हरि~~

पाप पयोनिधि जन मन मीना’

-पहले हमारे समझमे यह बात नहीं आयी थी । पापमेँ मनुष्यका इतना मन कैसे लग जाता है ? क्या बात है ? परंतु आजकल देखते हैं तो कई जगह यह बात सुननेमें आती है कि बिना पाप-अन्याय किये, झूठ-कपट किये हम जी नहीं सको  जीवनका आधार पापको मान लिया । ऐसे जो पापोमेँ रचे-पचे हैं, उनसे कहा जाय कि ‘तुम नाम-जप करो’ तो बड़ा कठिन हो जायगा । पापीके मुखसे भगवान्का नाम नहीं आता । पाप अधिक होनेके कारण ऐसी

दशा हो जाती है । इस बिषयमेँ मेरे मनमे एक बात आती है । आंप ‘माई-बहन ध्यान दे हम तो हिम्मत करके राम राम करेंगे ही ऐसा पक्का निश्चय करके नाम जपमें लग जाओ तो पाप ठहरेगा नहीं यह दोनों साथ में नहीं रह सकते पाप भाग जाएगा भगवान के नाम का आश्रय लेकर यह निश्चय करो कि उसका पाप नष्ट हो जाता है जो दृढ़ होकर भजन करता है तो हम भी दृढ़व्रत होकर भजन करेंगे दृढ़तासे हम भजन मैं थी लग जाएंगे तो फिर पाप ठहरेगा नहीं अशुद्धि टिकेगी  नहीं जैसे सूर्योदय होने पर अमावस्या की बड़ी काली रात भी ठहर नहीं सकती ऐसे ही आप लोग कृपा करके रात दिन राम नाम में लग जाओ तो सब पाप नष्ट हो जाएंगे
एक संत थे उनसे किसी ने पूछा महाराज आप कहते हैं कि पाप मत करो पाप तो हमसे छूटता नहीं परंतु हमारे से पाप छूट जाए ऐसा कोई उपाय बताओ पाप छोड़ने की हमारी हिम्मत नहीं है होती संत ने कहा तुम रात दिन राम राम जप में ही लग जाओ पाप पयोनिधि जन मन मीना-ऐसे पापी लोगोको भी यह उपाय सन्तने बताया । हमने तो परम्परांसे सुना । उनसे इतना ही कहा गया कि तुम राम-राम करो ।  मैँने  सोचा कि देखो, सन्तोकी कितनी गहरी सूझ है, जो सीधा उपाय बता दिया कि राम-राममेँ लग जाओ । राम-राममेँ लगनेसे क्या होगा कि ‘राम नाम भीतरमेँ बैठ जायगा ! अभी तो बाहरसे होता है। .
प्रथम राम रसना सिवर, द्वितीय  कण्ठ लगाय ।
तृतीय ह्रदय ध्यान धर, चौथे नाभ मिलाय ।।
अध मध उत्तम प्रिय धर ठानु, चौथे अतिउत्तम अस्थात्रु । 
ये चहुँ बिन देखे आसरमा, राम भगति को पावे मरमा ।। 
 ऐसे जब “राम नाम भीतर उतरेगा तो भीतर जानेपर वह सब काम कर लेगा । शुद्धि पवित्रता निर्मलता, भगवान्की भक्ति…-जो आनी चाहिये सब आ जायेगी । इसलिये गोस्वामीजी महाराजमे बडी विचित्रता बात लिखी…”नाम जीहँ जपि जागहि जोगी । ‘ और कुछ नहीं तो जीभसे ही ज़पो । ‘तज्जपस्तदर्थभावनम्’ -… भगवान्के नामका जप करे और भीतर-ही-भीतर ध्यान होता रहे…उसका तो फिर कहना ही क्या है ! जीभमात्रसे नाम जपनेसे योगी जाग जाता है । जो नामका जप करते हैं, जीभ-मात्रसे ही, वे भी ब्रह्माजीके प्रपञ्चसे वियुक्त होकर विरक्त सन्त हो जाते हैं । जीभमात्रसे जप करना है भी सुगम । बहुतसे लोग कह देते हैँ-‘तुम नाम जपते हो तो मन लगता है कि नहीं लगता है ? अगर मन नहीं लगता है तो कुछ नहीं, तुम्हारे कुछ फायदा नहीं…ऐसा कहनेवाले वे भाई भोले हैं, वे भूलमें हैं, इस बातको जानते ही नहीं; क्योकि उन्होंने कभी नाम-जप करके देखा ही नहीं । पहले मन लगेगा, पीछे जप करेंगे-ऐसा कभी हुआ है ? और होगा कभी ? ऐसी सम्भावना है क्या ? पहले मन लग जाय और पीछे ‘राम-राम’ करेंगे-ऐसा नहीं होता । नाम जपते-जपते ही नाम-महाराजकी कृपासे मन लग जाता है

हरिसे लागा रहो भाई । तेरे बिगडी बात बन जाईं, रांमजीसे लागा रहो भाई । ‘ इसलिये नाम-महाराजकी शरण लेनी चाहिये । जीभसे ही ‘राम-राम-राम’ शुरू कर दो, मनकी परवाह मत करो । ‘परवाह मत करो’ -इसका अर्थ यह नहीं है कि मन मत लगाओ । इसका अर्थ यह है कि हमारा मन नहीं लगा, इससे घबराओ मत कि हमारा जप नहीं हुआ । यह बात नहीं है । जप तो हो ही गया, अपने तो जपते जाओं ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *