राम नाम की महिमा आध्यात्मिक ज्ञान
~~श्री हरि~~
‘राम’ नामकी वन्दनाका प्रकरण चल रही है। इसमें ‘राम’ नामकी महिमाका वर्णन भी आया है। इसकी महिमा सुननेसे ‘राम’ नाम में रुचि हो सकती है, पर यह माहात्म्य तो ‘राम’ नाम जपने से मिलता है। नाम-महिमा कहने और सुननेसे उसमें दिलचस्पी होती है और नाम जप करनेसे अनुभव होता है, इसलिए बडी उपयोगी बात है। इसकी असली वास्तविकता जपने से ही समझ मे आयेगी, पूरा पता उससे ही लगेगा। जैसे, भूखे आदमीको भोजनकी बात बतायी जाय तो उसकी रुचि विशेष हो जाती है। पर बिना भूख के भोजनमे उतना रस नहीं आता है। जोरसे भूख लगती है, तब पता लगता है कि भोजन कितना बढिया है! वह रुचता है, जँचता भी है और पच भी जाता है। उस भोजन का रस बनता है, उसमें शक्ति आती है। ऐसे ही रुचि पूर्वक नामका जप करनेसे ही नामका माहात्म्य समझमेँ आता है, इसलिए ज्यों-क्यों अधिक नाम जपते हैं, त्यों-ही-त्यों उसका विशेष लाभ होता है।
जैसे, धन कमानेवालोके पास धन ज्यादा अधिक बढ़ जाता है तो उनके धनका लोभ भी बढता जाता है। परंतु अंतमे वह पतन करता है, क्योंकि नाशवान वस्तु है। मानो साधारण अदमीके धनका अभाव थोडा होता है। घनी अदमीके अभाव ज्यादा होता है। साधारण आदमी सैकडोंका, धनी के हजारोका, अधिक धनीके लाखोंका और
उससे भी बडे धनीके करोडों का घाटा होताहै। वैसेही भजन करनेवालोके भी भजनकी जरूरत होती है। जो इसकी महिमा जानते हैँ, उन्हें बहुत बड़े अभावका अनुभव होता है कि हमारे भजन बहुत कम हुआ। लेकिन जो लोग भजन नहीं करते हैंँ, उन्हें पता ही नहीं, वे इसके माहात्म्यवको जानते ही नहीं। परंतु वे ज्यों-ही अपनेमे कमी समझते हैं, त्यो-ही भज़नका माहात्म्य समझमे आता है। ऐसे माहात्म्य को समझनेवालोके लिये लिखा है कि नामके उच्चारणमाश्रसे कल्याण हो जाय।
‘भगवन्नाम कौमुदी’ नामक एक ग्रंथ है। उसमे बड़े शास्रार्थ दृष्टिसे विवेचना की गयी है। नामका उच्चारण करनेवाले नामके पात्र माने गथे है। जैसे गजेन्द्रने आर्त के भगवान्का नाम लिया तो भगवान् प्रत्यक्ष प्रकट हो गये। आर्त होकर जो नाम लिया जाता है, उसका बहुत जल्दी महत्त्व दीखता हैं । ऐसे ही भावपूर्ण नाम लिया जाता है, उसका विलक्षण ही असर होता है ।
राम !