कृप्या नाम ज़ब श्रवण सुने री मैं आली ।
~~श्री हरि~~
कृप्या नाम ज़ब श्रवण सुने री मैं आली ।
भूलो री भवन हौं तो बावरी भयी री ।।
जिन गोपिकाओँके हृदयमे भगवान्का मेम है, वे, उनका नाम
सुननेसे ही पागल हो जाती है । पता ही नहीं कि स्वयं मैँ कौन हूँ, कहाँ हूँ ! ऐसे ही भगवन्नामसे भी ऐसी दशा हो जाती है । ‘कल्याण’ के भूतपूर्व सम्पादक भाई श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दारक्री नाम-निष्ठा अच्छी थी। कल्याण शुरू नहीं हुआ था, उस समयकी बात है । किसीने कह दिया-‘राम नाम लेनेसे क्या होता है ? ‘ तो उन्होंने कहा-कल्याण हो जाता है ।’ उसने कहा-‘अर्थ समझे बिना क्या है ? ‘राम‘ नाम अंग्रेजीमे मेढा और भेडा़का भी है’ । तब उन्होंने जोशमें आकर कह दिया, ‘राम नामसे कल्याण होता है’ । ऐसे जोशमें आकर कहनेसे उन्हें आठ पहरतक होश नहीं आया । खाना-पीना, टट्टी-पैशाब सब बन्द
इस जातसे उनकी माँजी बडी दुखी हो गयीं कि हनुमानके क्या
हो गया ? ऐसे जो भगवान्का नाम लेता है, उसमें बहुत विलक्षणता आ जाती है ।
जिसकी नाममेँ रुचि होती है, उसे पता लगता है कि नामकी महिमा क्या होती है ? दूसरेको क्या पता नाम क्या चीज है ? हरेक आदमी क्या समझे ? नाममे रुचि ज्यादा होती है जप करनेसे, भजन करनेसे और उसमें तल्लीन होनेसे । सन्त महात्माओंकी वाणीमें जो बातें हैं, वे विलक्षण बातें स्तवं अनुभबमे आने लगती हैं; सन्तोने अलग अलग स्थानोंपर अपना अलग अलग अनुभव लिखा है ।
एक बहन थी । उसने अपने नाम जपकी ऐसी बातें बतायी, जो सन्तोकी वाणीमेँ भी मिलती नहीं । उसने कहा कि नाम जपते जपते सब शरीरमें ठण्डक पहुंचती है । सारे शरीरमेँ ठण्डा ठण्डा झरना बहता है तथा एक प्रकारके मिठास और आनन्दक्री प्राप्ति होती है । मैंने सन्त्तोकी वाणी पढी है, पर ऐसा वर्णन नहीं आता, जैसा उस बहनने अपना अनुभव बताया । ऐसे ऐसे अलौकिक चमत्कार सन्त महात्माओंने थोड़े थोड़े ही लिखे हैं । वे कहातक लिखे ? जो अनुभव होता है, वो वर्णन करनेमेँ आता नहीं । वे खुद ही जानते है ।
सो सुख जानइ मन अरु काना ।
वह कहनेमेँ नहीं आता । आप इसमें लग जायें । भाइयोंसे, बहनोंसे, सबसे मेरी प्रार्थना है कि आप नाम ज़पमें लग जायँ । आप निहाल हो जायेंगे और दुनिया निहाल हो जायगी । सबपर असर पडेगा और आपका तो क्या कहें, जीवन धन्य हो जायगा । “भगवान्नाम’ की
अपार महिमा है ।