बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ।

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          ~~श्री हरि~~

 
 

बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास ।
राय नाम बर बरन जुग सावन भादव मास ।।

पहले ‘राम’ नामके अवयवोंका वर्णन हुआ फिर ‘महामन्त्र’ का वर्णन हुआ । अब दो अक्षरोंका वर्णन होता है । ‘र’ और ‘म’–ये दो अक्षर हैं । जो भगवान्के प्यारे भक्त हैं, वे सालि (बढिया चावल) की खेती हैं और वर्षाऋतु श्रीरघुनाथजी महाराजकी भक्ति है । वर्षा ऋतुमे ही वर्षा खूब हुआ करती है । चावलोंकी खेती, बाजरा आदि अनाजोंकी खेतीसे भिन्न होती है । राजस्थानमें खेतमे यदि पानी पडा़ रहे तो घास सूख जाय, पर चावलके खेतमेँ हरदम पानी भरा ही रहता है । जिससे खेतोंमेँ मछलियां’ पैदा हो जाती हैं । सालिके चावल बढिया होते हैं । चावल जितने बढिया होते हैं, उतना ही पानी ज्यादा माँगते हैं । उनको पानी हरदम चाहिये ।

‘रा’ और ‘म’ -ये दो श्रेष्ठ वर्ण हैं । ऐसे ही श्रावण और भाद्रपद इन दो मासोंकी वर्षा-ऋतु कही जाती है । श्रेष्ठ भक्तके यहाँ ‘राम’ नामरूपी वर्षाकी झडी लगी रहती है । आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं…

आखर मधुरं मनोहर  दोऊ ।
बरन बिलोचन जन जिय जोऊ । । 

ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैं । ‘मधुर’ कहनेका मतलब है कि रसनामेँ रस मिलता है । ‘मनोहर’ कहनेका तात्पर्य है कि मनको अपनी ओर खींच लेता है । जिन्होंने ‘राम’ नामका जप किया है, उनको इसका पता लगता है, और आदमी नहीं जान सकते । विलक्षण बात है कि ‘राम-राम’ करते-करते मुखमेँ मिठास पैदा होता है । जैसे, बढि़या दूध हो और उसमे मिश्री पीसकर मिला दी जाय तो वह कैसा मीठा होता है उससे भी ज्यादा मिठास इसमे आने लगता है । ‘राम’ नाममें लग जाते हैं तो फिर इसमें अद्भुत रस आने लगता है । ऐसे ये दोनों अक्षर मधुर और मनोहर हैँ ।’बरन बिलोचन जन जिय जोऊ’ ।

दोनों अक्षर वर्णमालाकी दो आँखें हैं । शरीरमें दो आँखे सबसे श्रेष्ठ मानी गयी हैं । आँखके बिना जैसे आदमी अन्धा होता है, ऐसे ‘राम’ नामके बिना वर्णमाला भी अन्धी है । नाम जपते हुए बहुत विलक्षण अनुभव होने लगता है छ: कमलोंमे एक नाभिकमल है, उसकी पंखुडियोंमें भगवान्के नाम हैं, वे भी दीखने लग जाते है । आँखोंसे जैसे सब बाहरी ज्ञान होता है, ऐसे नाम-जपसे बड़े-बड़े शास्श्रोंक्रा ज्ञान हो जाता है । जिन सन्तोने पढायी नहीं की, शास्त्र नहीं पढे, वेद नहीं पढे’ उनकी वाणीमें भी वेदो की  ऋचाएँ आती हैं । वेदोमेँ जैसा लिखा है, वैसी बातें उनकी साखियोंमें, ॰ वाणियोमेँ आती हैं । वेदोंका ज्ञान उनको कैसे हो गया ? ‘राम’ नाम महाराजसे । ‘राम’ नाम महाराज सब अक्षरोंकी आँख है । आँखोंसे दीखने लग जाता है, और विचित्र बातें दीखने लग जाती हैं।  श्रीरामदासजी और श्रीलालदासजी महाराज दोनोंकी मित्रता थी । उन दोनोंकी मित्रताकी कईं बातें मैंने सुनी थी । एक बार एक माई भोजन लेकर जा रही थी तो उन दोनोंने आपसमे बात कही कि वह जो माई भोजन ला रही है, उसमें राबडी़ है, अमुक साग है, और ऐसी-ऐसी चीजे हैं । और उलटा कटोरा भी साथमें है । फिर जब देखा तो वैसी ही बात मिली । इस प्रकार लौकिक दृष्टिसे भी विशेषता आ जाती है । एकान्तमें भजन करते हुए उन्हें ऐसा अनुभव होता है कि अमुक जगह अमुक बात हो रही है । इन बातोंको सन्त लोग प्रकट नहीं करते थे । ऋद्धि-सिद्धि आ जाती और कभी कुछ बात प्रकट हो जाती तो वे कहते कि चुप रहो, हल्ला मत करो, लोगोंको बताओ मत । अन्धेरेमें रातमेँ दीखने लग जाय-ऐसे चमत्कार होते हैं, यह तो मामूली चमत्कार है । विशेष बात यह है कि नामजपसे तत्त्वज्ञान हो जाता है । जो परमात्माका स्वरूप है, स्वयंका स्वरूप है, इन सबका अनुभव हो जाता है । यह मामूली बात है क्या ? लौकिक चमत्कार  दीख जाना कोई बडी बात नहीं है ।

‘राम’ नाममे अपार अनन्त शक्ति भरी हुई हैं । इसलिये गोस्वामीजी महाराज कहते हैं…”बरन बिलोचन जनं जिय जोऊ…’ भक्तोंके हदयको जाननेके लिये ये नेत्र है ।

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