बब्रुवाहन कौन था ? आध्यात्मिक ज्ञान।
क्यों किया था बभ्रुवाहन ने अपने ही पिता अर्जुन का वध?
सबसे पहले जवाब दिया गया: बब्रुवाहन कौन था ? उसका अजुर्न के साथ क्या संबंध था ?
महाभारत आश्वमेधिक पर्व के अनुगीता पर्व के अंतर्गत अध्याय 79 में अर्जुन और बभ्रुवाहन का युद्ध एवं अर्जुन की मृत्यु का वर्णन हुआ है
- इस प्रकरण में जिस बभ्रुवाहन का नाम आया है,उसे अपने शब्दों में प्रस्तुत कर रही हूँ कोई त्रुटि हो तो अनदेखा कीजियेगा कथा का आंनद लीजिये।
- पाण्डुपुत्रो के मध्य एक समझौता था कि द्रौपदी जी सब भाइयों के साथ 1 1 वर्ष का समय व्यतीत करती थी उस समय कोई दूसरा पाण्डुपुत्र वहां नही आ सकता था ऐसा होने पर उस पाण्डुपुत्र को एक वर्ष का वनवास जाना पड़ता था. अर्जुन के पश्चात किसी अन्य पाण्डुपुत्र का 1 वर्ष का समय आरंभ हो चुका था अर्जुन बाहर द्रौपदी के प्रासाद से निकल गए और एक ब्राह्मण ने सहायता मांगी परन्तु अर्जुन अपना गांडीव (धनुष का नाम) द्रौपदी के प्रासाद में भूल गए अब वो जैसे आये वहाँ दूसरे भाई उपस्थित थे जिनकी अवधि आरम्भ हो चुकी थी, तो अर्जुन को प्रयश्चित के लिए वनवास जाने का आदेश दिया गया।
- अर्जुन जी की अन्य पत्नियां के द्रौपदी और सुभद्रा जी के साथ अन्य दो पत्नियों के विवरण मिलता है एक नाग कन्या उलूपी जिनके पुत्र अरावन जिन्होंने अपनी बलि महाभारत के युद्ध में दी थी।
- बभ्रुवाहन का परिचय जब अर्जुन अपने वनवास काल में मणिपुर गए थे। चित्रवाहन की पुत्री मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा से उत्पन्न हुआ था, चित्रवाहन की मृत्यु के बाद मणिपुर के राजा बने।
- अश्वमेघ यज्ञ महाभारत के युद्ध मे समस्त कुरु परिवार और अपने बन्धु बांधवों के साथ भीष्म पितामह की मृत्यु होने के कारण युधिष्ठिर अत्यन्त व्यथित थे तब महर्षि वेद व्यास और श्री कृष्ण जी के समझाने पर उन्होंने अश्वमेघ यज्ञ करने का निर्णय लिया,जिससे उनके शोक का निवारण हो सके।
- अब अश्वमेघ यज्ञ के अश्व को छोड़ दिया गया अर्जुन पीछे पीछे थे अधिकतर राजाओं ने अर्जुन के गांडीव की प्रशंसा सुन रखी थी तो सबने अधीनता स्वीकार की कुछ ने विरोध किया उन्हें हरा कर अधीनता स्वीकार करव दी।
- अश्व मणिपुर पहुंच गया वभ्रुवाहन अपने पिता के आने के शुभ समाचार से गदगद हो कर बहुत से ब्राह्मण पुरोहित के साथ बहुमूल्य भेंट ले कर नगर के द्वार पर आ कर स्वागत में प्रतीक्षा करने लगा।
- अर्जुन ने कहा क्या तुम क्षत्रिय नही हो जब मेरे साथ यज्ञ का अश्व है आओ मेरे साथ युध्द करो परन्तु बभ्रुवाहन सिर झुकाए खड़े रहे,इस प्रकार अर्जुन के द्वारा बार बार उत्तेजित हो कर बोलने पर भी जब उन्होंने युद्ध आरम्भ नही किया तो नागकन्या उलूपी वहाँ धरती के भीतर से प्रकट हुई एवं अपना परिचय दिया कि,” मैं तुम्हारी विमाता हूँ पुत्र एक क्षत्रिय ललकार सुन कर शांत नही रह सकता पुत्र युद्ध करो।”
- भयंकर युद्ध हुआ अपने पुत्र का पराक्रम देख अर्जुन अति प्रसन्न हुए, बभ्रुवाहन एक किशोर थे युद्ध करते समय वो युद्ध मे इतना तल्लीन हो गए कि उन्हें ज्ञात नही रहा और उनसे अचानक एक तीक्ष्ण बाण अर्जुन की छाती में लगा और वो अचेत हो कर गिर गए।
- बभ्रुवाहन भी उस समय तक बहुत घायल थे वह भी बेहोश होकर जमीन पर गिर पडे। तभी वहां बभ्रुवाहन की माता चित्रांगदा भी आ गई। अपने पति व पुत्र को घायल अवस्था में धरती पर पड़ा देख उसे बहुत दुख हुआ, वो उलूपी पर दोषारोपण करने लगी कि तुम्हारे कारण मेरे पुत्र एवम हमारे पति की ये दशा है परंतु उलूपी ने कोई उत्तर न दिया।
- चित्रांगदा अपने पति को मृत अवस्था में देखकर रोने लगी। उसी समय बभ्रुवाहन को भी होश आ गया, वह भी शोक करने लगा। अर्जुन की मृत्यु से दुखी होकर चित्रांगदा और बभ्रुवाहन दोनों ही आमरण उपवास पर बैठगए।
- जब नागकन्या उलूपी ने ये देखा तो उसने संजीवन मणि का स्मरण किया। उस मणि के हाथ में आते ही उलूपी ने बभ्रुवाहन से कहा कि यह मणि अपने पिता अर्जुन की छाती पर रख दो। बभ्रुवाहन ने ऐसा ही किया।
- वह मणि छाती पर रखते ही अर्जुन जीवित हो उठे।
- अर्जुन द्वारा पूछने पर उलूपी ने बताया कि यह मेरी ही मोहिनी माया थी। उलूपी ने बताया कि छल पूर्वक भीष्म का वध करने के कारण वसु (एक प्रकार के देवता) को श्राप देना चाहते थे 【आप सभी को ज्ञात होगा माता गंगा ने 7 वसुओं को गंगा में प्रवाहित कर दिया था 8 वे वसु देवव्रत अर्थात भीष्म थे जिन्हें उनके पिता ने माता गंगा के पीछे जा कर प्रवाहित नही करने दिया था।】
- जब यह बात मुझे पता चली तो मैंने यह बात अपने पिता को बताई। उन्होंने वसुओं के पास जाकर ऐसा न करने की प्रार्थना की।
- तब वसुओं ने प्रसन्न होकर कहा कि मणिपुर का राजा बभ्रुवाहन अर्जुन का पुत्र है यदि वह बाणों से अपने पिता का वध कर देगा तो अर्जुन को अपने पाप से छुटकारा मिल जाएगा।
- आपको वसुओं के श्राप से बचाने के लिए ही मैंने यह मोहिनी माया दिखलाई थी। इस प्रकार पूरी बात जान कर अर्जुन, बभ्रुवाहन और चित्रांगदा भी प्रसन्न हो गए।
- इस प्रकार अर्जुन विजय के उपरांत हस्तिनापुर आए। उचित स्थान पर शुभ मुहूर्त में यज्ञ प्रारंभ किया गया। यज्ञ को देखने के लिए दूर-दूर से राजा-महाराजा आए। पांडवों ने सभी का उचित आदर-सत्कार किया।
- बभ्रुवाहन, चित्रांगदा व उलूपी भी यज्ञ में शामिल होने आए।
- यज्ञ संपूर्ण होने पर युधिष्ठिर ने पूरी धरती ब्राह्मणों को ही दान कर दी है। तब महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ब्राह्मणों की ओर से यह धरती मैं पुन: तुम्हे वापस करता हूं। इसके बदले तुम सभी ब्राह्मणों को स्वर्ण दे दो।
- युधिष्ठिर ने ऐसा ही किया। युधिष्ठिर ने सभी ब्राह्मणों को तीन गुणा सोना दान में दिया। इतना दान पाकर ब्राह्मण भी तृप्त हो गए। ब्राह्मणों ने पांडवों को आशीर्वाद दिया।
- इस प्रकार अश्वमेध यज्ञ सकुशल संपन्न हो गया।।
- धन्यवाद