भगति सुतिय कल करन बिभूषन। जग हित हेतु बिमल विधु पूषन ।।
~~श्री हरि~~
भगति सुतिय कल करन बिभूषन।
जग हित हेतु बिमल विधु पूषन ।।
‘र’ और ‘म’ …-ये दोनों अक्षर भक्तिरूपिणी जौ श्रेष्ठ स्श्री है’ उसके कानोंमें सुन्दर कर्ण फूल हैं । हाथोंमेँ भूषण होते हैं और पैरौके भो भूषण होते हैं, फिर यहाँ केवल कर्ण भूषण कहनेका क्या तात्पर्य ? कानोंसे ‘राम’ नाम सुननेसे भक्ति उसके हृदयमे आ जाती है । इसलिये ‘राम’ नाम भक्तिके कर्ण भूषण हैं । भक्तिको हृदयमे बुलाना हो तो ‘राम’ नामका ” जप करो । इससे भक्ति दौड़ी चली आयेगी । भीतर
विराजमान हो जायेगी और निहाल कर देगी ।
“जग हित हेतु बिमल बिधु पूषन’ –चन्द्रमा और सूर्य…ये दो
भगवान् की आँखे हैं । दोनों रात-दिन प्रकाश करते हैं । इन दोनोंसे जगत् का हित होता है ।
यदादित्यगतं तेजो जगदभासयतेऽखिलम् ।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्रौ तत्तेजो विद्धि मामकम् । ।
सूर्यके प्रकाशसे एवं गर्मीसे वर्षा होती है और उससे खेती होती है ।
‘तपाम्यहमहं वर्ष निगृहाम्युत्सुजामि च’- सूर्य भगवान् वर्षा
करते हैं । बर्षाके होनेसे धान बढ़ता है, घास बढती है, खेती बढ़ती है । खेतीमें जहरीलापन सुखाकर पकानेमें सूर्य भगवान् हेतु होते हैं और खेतीको पुष्ट करनेमें चन्द्रमा हेतुहोते हैं । खेती करनेवाले कहा करते हैं कि अब चान्दना (शुक्ल) पक्ष आ गया, अब खेती बढेगी; क्योंकि चन्द्रमा अमृतकी बर्षा करते हैं, जिससे फल-फूल लगते हैँ और बढते हैं ।
वायुमण्डलमें जौ जहरीलापन होता है, उसको सूर्यका ताप नष्ट “कर देता है । कभी वर्षा नहीं होती, अकरी आ जाती है तो लोग कहते है…झांझली आ गयी । वह झांझली भी आवश्यक होती है, नहीं तो यदि हरदम वर्षा होती रहे तो वायुमण्डलमें, पौघोंमें ज़हरीलापन पैदा हो जाता है । इस जहरीलेपनको सूर्य नष्ट कर देता है । इसलिये सूर्य पोषण करता है और चन्द्रमा अमृत-बर्षा करता है । गोस्वामीजी दोनों प्रकारकी ऋतुओंका वर्णन आगे करेगे । दोनों पक्षोंमेँ चन्द्रमाका प्रकाश समान ही रहता है, पर एक पक्षमे घटता है और दूसरेमे बढ़ता है-ऐसा लोग मानते है । रोजाना रात और दिनमें चन्द्रमाकी घडि़याँ मिलाकर देखी जायँ तो बराबर होती हैं । इसी प्रकार आजकी आधी रातसे दूसरे दिन आधी रात तक
पहरकी घड़ियोंका १ ५ दिनोंका मिलान कानेसे शुक्लपक्ष और कृष्णपक्षके पंद्रह दिनोंमें प्रकाशकी और अन्धेरेकी घड़ियाँ बराबर आयेंगी । फिर यह शुक्ल और कृष्णपक्ष वया है ? चन्द्रमा शुक्लपक्षमें पोषण करता है, अमृत बरसाता है, जिससे वृक्षोके फल बढते हैं, बहनो-माताओके गर्भ बढते हैँ और उन सबको पोषण मिलता है । चंद्रमा से संपूर्ण बूटियोमे विलक्षण अमृत आता है और सूर्यसे वे पकती है । जैसे सूर्य और चन्द्रमा सम्पूर्ण जगत्का हित करते हैं, वैसे ही भगवान् के नामके जो ‘र’ और ‘म’ दो अक्षर हैं, वे सब तरहसे पोषण करने वाले है ।
‘जग हित हेतु बिमल विधु पूषन’ –यह “राम नाम विमल है चंद्रमा और सूर्यपर राहु और केतुके आनेसे ग्रहण होता है परंतु “राम नाम पर ग्रहण नहीं आता । चन्द्रमा घटता-बढता रहता है पर राम तो बढ़ता ही रहता है । राम कभी फूटत नाहीं’ यह फूटता नहीं, रात-दिन बढ़ता ही रहता है । यह सदा ही शुद्ध है, इसलिये ज़गतके हितके लिये निर्मल चन्द्रमा और सृर्यके समान है ।
भगवान्के नामके दो अक्षर ‘रा’ और ‘म‘ हैं, जिनकी महिमा गोस्वामीजी महाराज कह रहे है । यह महिमा ठीक समझमेँ तब आती है, जब मनुष्य नाम-जप करता है । भगवान्ने कृपा का दी, यह मनुष्य शरीर दे दिया, सत्संग सुननेको मिल गया । अब नाम-जपमें लग जाओ। इस जमानेमे थोड़ा भी ज़प करते हैँ, उनकीबडीभारी महिमा है कलियुगमें सब चीजोके दाम बढ़ गये तो क्या भरावन्नामके दाम नहीं बढे है ? अमी भजनकी महिमा अन्य युर्गोंकी अपेक्षा बहुत ज्यादा बढ़ी है ।
चहुँ जुग चहुँ श्रुति . नाम प्रभाऊ ।
कलि बिसेषि नहि आन उपाऊ ।।