महाभारत: में हिडिम्ब का वध और बकासुर का वध ।

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महाभारत: में हिडिम्ब का वध और बकासुर का वध की रोचक कहानी।

                 हिडिम्ब का वध

अपनी मां , पत्नी और भाइयों को इस तरह जमीन पर सोए देखकर भीम को यह सोचकर अत्यंत क्रोध आया कि कुटिल दुर्योधन के षडयंत्र के कारण मेरे प्रिय जनों को इतनी तकलीफ उठानी पड़ रही है ।

उन्होंने दुर्योधन को उसके इस नीच और अन्यायपूर्ण कार्य के लिए समुचित दंड देने के अपने संकल्प को दुहराया । फिर उन्होने आस – पास की टोह ली । उन्हें लगा कि इस क्षेत्र में कोई बस्ती है । अत : यहां निश्चित होकर सोना ठीक नहीं । उन्होंने सोने का विचार छोड़ दिया ।

वह चौकस होकर रखवाली करने लगे । इस जगह के समीप राक्षसों की बस्ती थी । वहां हिडिम्ब नाम का एक राक्षस रहता था । बरगद के पेड़ के नीचे कुछ हलचल होने का आभास होने पर वह उस ओर आगे बढ़ा । उसने देखा कि बरगद के पेड़ के नीचे कुछ लोग सोए हुए हैं ।

उसने अपनी बहन हिडिम्बा से कहा , ” पेड़ के नीचे कुछ लोग सोए हुए हैं । पता नहीं वे लोग कौन हैं और किस इरादे से आए हैं । जागने पर ये लोग हमें परेशान कर सकते हैं । इस तरह के लोगों ने हम वनवासियों को हमेशा कष्ट दिया है । बेहतर होगा कि तुम उन्हें मारकर इस खतरे को समाप्त कर दो ।

” भाई के आदेश पर हिडिम्बा बरगद के समीप पहुंची । उसने देखा कुछ लोग सो रहे हैं । एक बलिष्ठ तेजस्वी युवक वहां पहरा दे रहा है । हिडिम्बा भीम के सुदर्शन व्यक्तित्व को देख उस पर मोहित हो गई । उसकी इच्छा भीम को अपना पति बनाने की हुई । उसने जड़ी बूटियों और फूलों की सहायता से अपना रूप आकर्षक बनाया और धीरे – धीरे चलकर वह भीमसेन के पास पहुंची ।

सिर झुकाकर शर्माते हुए उसने पूछा , ” युवक , तुम कौन हो ? ये सोए हुए लोग कौन हैं ? यह क्षेत्र मेरे भाई हिँडिम्ब के अधिकार में है । उसने मुझे तुम्हें मारने के लिए भेजा है । लेकिन मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं । मैं तुम्हें अपने भाई के क्रोध से बचा लूंगी । चलो , हम दोनों आनंद मनाने के लिए दूर चले जाएं ।

” भीमसेन ने उत्तर दिया , “ सुन्दरी , मां और भाइयों को निर्जन वन में असहाय छोड़कर मैं तुम्हारे साथ कैसे चल सकता हूं ? तुम्हारा ऐसा कहना और सोचना अनुचित है । जहां तक तुम्हारे भाई का सवाल है मैं उससे डरता नहीं हूं । ” यह देख कि हिडिम्बा काफी समय बीतने के बाद भी नहीं लौटी , हिडिम्ब बरगद के पेड़ की ओर आया ।

उसे आता देख हिडिम्बा बुरी तरह डर गई । उसने भीम से कहा मेरा भाई अत्यंत क्रोधित होकर आ रहा है । अब बचने का एक मात्र तरीका यह है कि मेरी बात मान लो । तुम भीम ने कहा , ” सुंदरी डरो मत देखो , मैं इस राक्षस को कैसे ठिकाने लगाता हिडिम्ब पास आकर स्थिति को समझ गया । उसे बहुत गुस्सा आ गया ।

उसने हिडिम्बा से कहा , ” दुष्टा तू इस आदमी पर मोहित होकर मेरे आदेशों को भूल गई । अब मैं तुम दोनों को ठिकाने लगाता हूं । ” यह कहकर वह तेजी से हिडिम्बा की ओर बढ़ा । यह देख भीम ने कहा , “ अरे पापी , क्यों अनावश्यक शोर करके मेरी माता और भाइयों की नींद खराब कर रहा है ?

अपनी निरअपराध बहन को मारने का अपराध क्यों कर रहा है ? अगर तुझमें कुछ बल है तो मेरे साथ दो हाथ कर । ” भीम की बात सुनकर हिडिम्ब का क्रोध बढ़ गया और वह अपनी बहन को छोड़ तेजी से भीम की ओर झपटा ।

उसने कहा , ” ठीक है तुझे ठिकाने लगाकर मैं हिडिम्बा को दंड दूंगा । भीम सामने से आते हुए राक्षस को पकड़कर कुछ दूर ले गए ताकि सोने वालों की नींद न टूटे । फिर दोनों एक – दूसरे पर टूट पड़े । राक्षस को भीम का बल देखकर कुछ आश्चर्य हुआ । अतः वह गरजने लगा । 

 

इससे सोए हुए पांडव उठ गए । उन्होंने देखा एक सुंदर वनवासी युवती खड़ी है । कुन्ती ने पूछा , ‘ सुंदरी तुम कौन हो और यहां क्यों आई हो ? हिडिम्बा ने कहा , “ देवी यह घना जंगल मेरे भाई के अधिकार मे है । उसने मुझे तुम्हें और तुम्हारे पुत्रों को मारने के लिए भेजा था ।

 

 मैं तुम्हारे मनोहारी पुत्र पर मोहित हो गई । मैंने तुम्हारे पुत्र से मुझसे विवाह करके तुम सबकी रक्षा करने को कहा लेकिन उन्होंने मेरी बात नहीं मानी । इस समय तुम्हारा पुत्र और मेरा भाई भयंकर लड़ाई में व्यस्त हैं । ” यह सुनकर चारों पांडव फौरन भीम के पास पहुंचे । अर्जुन ने भीम में थकावट कुछ चिन्ह देखकर उसकी मदद करने का प्रस्ताव किया । 

 

लेकिन भीम ने कहा मैं इसके लिए अकेला ही काफी हूं । इसके बाद भीम ने हिडिम्ब को ऊपर उठाकर चारों तरफ घुमाया और फिर जमीन पर पटक दिया जिससे उसके प्राण जाते रहे । इसके बाद पांडव वहां से चलने लगे । हिडिम्बा भी साथ चलने लगी । भीम ने उसके साथ चलने पर आपत्ति की ।

इस पर हिडिम्बा ने कुंती की शरण ली और कहा , ” मां आप मुझ दासी पर कृपा करें । आप भीमसेन से मुझसे विवाह करने को कहें । मैं कुछ समय तक उनके साथ घूमकर फिर उन्हें आपके पास ले आऊंगी । ” इस पर युधिष्ठिर ने सहमति जताई और कहा , “ दिन भर तुम भीमसेन के साथ घूमो फिरो लेकिन रात में उन्हें हमारे पास ले आना ।

” युधिष्ठिर की आज्ञा पाकर भीमसेन ने हिडिम्बा से विवाह किया । कुछ समय बाद हिडिम्बा ने एक पुत्र घटोत्कच को जन्म दिया । महाभारत युद्ध में घटोत्कच ने अत्यंत वीरता का प्रदर्शन किया । पुत्र पैदा होने के बाद हिडिम्बा अपने परिवार में लौट गई ।

पांडव मत्स्य , मिर्गत , पांचाल , कीचक आदि राज्यों के वनों को पार करते हुए आगे बढ़ते गए । रास्ते में उन्हें भगवान व्यास मिले । कुंती ने उन्हें अपनी व्यथा कथा सुनाई । व्यास ने उन्हें इन शब्दों में ढाढ़स बंधाया । मत हो । जो कुछ हो रहा उससे तुम्हारा कोई अहित नहीं होगा । नज़दीक ही एकचक्रा नगरी है । वहां किसी तरह के रोग आदि का भय नहीं है । तुम लोग कुछ समय तक वहां छिप कर रहो ।

उन्होंने कुंती को सांत्वना दी कि तुम्हारे पुत्र पृथ्वी को जीतकर सभी राजाओं पर शासन करेंगे । ” इसके बाद व्यासजी और पांडव एक साथ एकचक्रा नगरी गए । वहां उन्होंने पांडवों को एक ब्राह्मण के घर ठहरा दिया ।

               बकासुर का वध 

एकचक्रा नगरी में पांडव एक ब्राह्मण परिवार के साथ रहते थे । वे अपनी गुजर – बसर भिक्षा मांग कर करते थे । उन्हें जो भी भिक्षा मिलती , उसे वह अपनी मां को लाकर देते थे । कुंती उस भिक्षा से जो भोजन बनाती थी , उसके दो भाग करती थी ।

एक भाग भीम के लिए और दूसरा अपने और अन्य चार भाइयों के लिए । भीम अत्यन्त बलशाली और लम्बा चौड़ा था । उसका आहार भी अधिक था । भीम को वृकोदर भी कहा जाता था । वृकोदर का अर्थ होता है भेड़िये के समान पेटवाला ।

भेड़िये को हमेशा भूख लगी रहती है । उसका पेट कभी नहीं भरता । भीम का आहार भी काफी था । अत : पर्याप्त भोजन न मिलने के कारण वह दुबला होने लगा । इससे माता कुंती बहुत चिन्तित रहती थी । एक दिन और भाई तो भिक्षा मांगने चले गए , लेकिन भीम अपनी माता के पास रुक गए ।

अचानक उन्हें उस ओर से जहां ब्राह्मण परिवार रहता था चीखने और रोने की आवाजें सुनाई दीं । लगता था परिवार पर कोई बड़ी विपत्ति टूट पड़ी है । कुंती पता लगाने के लिए ब्राह्मण परिवार के कक्ष में गईं । ब्राह्मण और उसकी पत्नी फूट – फूट कर रो रहे थे । बड़ी कठिनाई से पता चला कि उस नगर के बाहरी हिस्से में एक गुफा में एक राक्षस रहता है ।

उसने तेरह वर्ष पहले इस नगर के राजा को मार कर नगर पर अधिकार किया था । वह पहले शहर निवासियों को अंधाधुंध मार कर आतंक फैलाता था । जब राक्षस का उपद्रव असह्य हो गया तो नगर निवासियों ने उसके साथ यह समझौता किया कि वह नगर में आकर लोगों को अपना शिकार नहीं बनाएगा ।

नगर निवासी सप्ताह में एक बार उसके लिए दो बैलों से जुती एक बैलगाड़ी में पर्याप्त खाद्य सामग्री , दही , चावल , मांस , शराब अन्य सुस्वादु भोजन और एक आदमी भेजेंगे । इसके लिए नगर में बारी लगाई जाती है । आज ब्राह्मण परिवार की बारी थी , परिवार में पति – पत्नी और एक लड़की और एक लड़का है ।

ब्राह्मण अपनी पत्नी से इस नगर को छोड़कर अन्यत्र जाने को कहता था । लेकिन पत्नी पूर्वजों की धरती छोड़ कर जाना नहीं चाहती थी । अब परिवार का हर सदस्य , छोटे लड़के सहित , राक्षस के पास जाने को तैयार था । ब्राह्मण स्वयं भी जाने को तैयार था , लेकिन उसकी पत्नी इसके लिए तैयार नहीं थी ।

ब्राह्मणी स्वयं जाना चाहती थी , लेकिन ब्राह्मण पत्नी को भेजने को तैयार न था । लड़की स्वयं जाने को तैयार थी लेकिन पति – पत्नी इसके लिए तैयार न थे । परिवार के सभी सदस्यों को रोता देख कर छोटा लड़का बोला , “ पिताजी रोओ मत , मां रोओ मत , दीदी रोओ मत ” फिर उसने ईंधन की एक लकड़ी उठाई और कहा , ” मैं इस लकड़ी से राक्षस को मार दूंगा ।

” लड़के की इस मासूमियत को देख दुख के समय में भी परिवार के सभी सदस्यों के चेहरे पर मुसकराहट आ गई और उन्होंने बालक को गले लगा लिया । उसी समय कुंती ने वहां पहुंच कर ब्राह्मण परिवार से पूछा कि क्या वह उनकी कोई सहायता कर सकती है ? ब्राह्मण ने कहा कि हमारा दुख दूर करना आपकी शक्ति के बाहर है ।

राक्षस बकासुर बहुत शक्तिशाली है । पहले भी अनेक लोगों ने राक्षस को मारने का प्रयत्न किया लेकिन राक्षस उन सब पर हावी हुआ और उसने उन्हें यमलोक पहुंचा दिया । जब हमारा राजा अपनी सेना के साथ राक्षस का मुकाबला नहीं कर सका तो आप क्या कर सकती हैं ।

उस नगर के निवासियों को जहां का राजा कमजोर है , विवाह कर संतान पैदा नहीं करनी चाहिए । केवल मजबूत और न्यायप्रिय राज्य में सुखी पारिवारिक जीवन , संस्कृति का पोषण और विकास संभव है । मेरे पास इतना धन नहीं है कि मैं विकल्प खरीद सकूं ।

परिवार के किसी सदस्य को उसके पास भेज कर हम सुख शान्ति से नहीं रह सकते । अत : मैंने निश्चय किया है कि हम सपरिवार उसके पास जाएंगे । वह हम सब को खाकर अपना पेट भर ले । अब केवल ईश्वर हमारी सहायता कर सकता है ।

हमें ओर कोई आशा नहीं है । कुंती ने भीम से जाकर इस विषय में बातचीत की । फिर लौट कर उसने ब्राह्मण से कहा , ‘ ‘ आप निराश न हों । भगवान सबका भला करते हैं । मेरे पांच पुत्र हैं । उनमें से एक राक्षस का भोजन ले जाएगा ।

” कुंती की बात सुनकर ब्राह्मण आश्चर्य में पड़ गया । फिर उसने सिर हिलाकर कुंती के प्रस्ताव को नकार दिया । उसने कहा कि ऐसा नहीं हो सकता । कुंती ने ब्राह्मण को समझाया कि वह डरे नहीं । मेरा लड़का महाबली है वह राक्षस को मार कर नगर का दुख दूर कर देगा । उसने पहले भी कई राक्षसों का अन्त किया है ।

लेकिन इस बात को गोपनीय रखना । कुंती को इस बात की चिन्ता थी कि अगर बात फैली तो दुर्योधन के आदमी इस घटना में पांडवों का हाथ देखेंगे और उन्हें हमारा पता लग जाएगा । भीम को यह प्रस्ताव सुनकर बेहद खुशी हुई ।

भिक्षा लेकर जब शेष पांडव लौटे युधिष्ठिर ने भीम का चमकता दमकता चेहरा देखा तो वह समझ गए कि वह किसी जोखिम भरे कार्य को करने की तैयारी में है । उन्होंने एकांत में कुंती से इस बारे में पूछा । उन्हें भीम का राक्षस के पास भेजा जाना अच्छा नहीं लगा । उन्होंने कहा , ” क्या यह फैसला जल्दबाजी और बिना सोचे समझे नहीं लिया गया है ?

हमारी सभी आशाएं भीम पर निर्भर करती है । हम उसके जीवन को खतरे में कैसे डाल सकते हैं ? लगता है कष्ट और पीड़ा ने आपकी विचार शक्ति नष्ट कर दी है । ” कुंती ने उत्तर दिया , ” हम इस परिवार के साथ काफी समय से रह रहे हैं । धर्म का तकाजा है कि हम उनके उपकार का ऋण चुकाएं ।

फिर मैं भीम की शक्ति को जानती हूं और मुझे उसके बारे में कोई भय नहीं है । याद करो कि वह हम सब को किस तरह वारणावत से लाया था ? उसने कैसे हिडिम्ब राक्षस को मारा था ? ” दूसरे दिन प्रातःकाल नगर निवासी ब्राह्मण के घर दो बैलों से जुती बैलगाड़ी में तरह – तरह के खाद्य पदार्थ मांस , दही , सुस्वादु व्यंजन और शराब लेकर आए । भीम गाड़ी में सवार होकर राक्षस की गुफा को रवाना बैलगाड़ी गाजे बाजे के साथ आगे बढ़ी । उसके साथ अनेक नगर निवासी भी थे ।

गुफा के नज़दीक पहुंचने पर भीम को गाड़ी में छोड़ नगर निवासी सुरक्षित स्थान पर चले गए । गुफा के समीप नर कंकालों , हड्डियों , बालों , जमे खून के धब्बों , कीड़े मकोड़ों और चींटियों का ढेर लगा था । वहां पर लोगों के हाथ पांव के टुकड़े भी पड़े थे ।

आकाश में चीलें और गिद्ध मंडरा रहे थे । भीम ने गाड़ी रोकी और वह राक्षस को आवाज लगाकर उसके लिए रखा भोजन स्वयं खाने लगा । उसने सोचा कि राक्षस के साथ लड़ाई में भोजन बर्बाद हो जाएगा । इससे अच्छा है कि मैं पहले ही इसे पेट में डाल लूं । राक्षस जो देर में भोजन आने से नाराज था भीम को भोजन करते देख और गुस्से में आ गया ।

वह कर्कश आवाज करता हुआ भीम की ओर बढ़ा । भीम उसकी आवाज से विचलित नहीं हुआ और शान्ति से भोजन करता रहा । भीम के समीप पहुंच राक्षस ने उसकी पीठ पर घूसों से प्रहार करना शुरू किया  । जब इसका कोई असर नहीं हुआ तो राक्षस ने एक पेड़ उखाड़ कर भीम पर फैंका । 

 

भीम ने बाएं हाथ से उस पेड़ को परे कर दिया और दाहिने हाथ से भोजन करता रहा । भोजन समाप्त करने के बाद भीम ने दही के पात्र गटके और फिर कुल्ला करके वह राक्षस का सामना करने को उठा । दोनों में भीषण लड़ाई हुई ।

 

 भीम ने बार – बार राक्षस को एक खिलौने की तरह उठा कर पटका । अन्त में जब राक्षस थक गया भीम ने उसे जमीन पर गिराकर उसकी पीठ पर अपना घुटना जमाया और उसकी हड्डियां तोड़कर उसका अन्त कर दिया । राक्षस की भयंकर चीख के साथ उसके जीवन का अन्त हो गया । भीम ने उसकी लाश नगर के दरवाजे के समीप लाकर पटक दी । घर लौट कर भीम ने स्नान किया और अपनी मां को राक्षस के अन्त का विवरण सुनाया ।