महावीर का चौथा बंदर ।आध्यात्मिक ज्ञान।
महावीर का चौथा बंदर ।
हमारी संस्कृति में हमें बताया गया कि अपने मन को यदि हमने थोड़ा साध लिया तो अपने जीवन में सब चीजें सहजता से प्राप्त होती हैं और यदि हमने उसे नहीं साधा तो हमारा जीवन यूँ ही व्यर्थ नष्ट भ्रष्ट हो जाता है इसलिये उस मन को साधने की बात है मनोवृत्ति के साधने की बात है ।
गांधी जी ने कहा था बुरा मत देखो , बुरा मत बोलो और बुरा मत सुनो । उन्होंने तीन बन्दर की बात की । हमेशा वो तीन बंदन रखते थे ।
एक मुंह पर हाथ रखे , एक कान पर उंगली रखे , एक आँखों पर हथेली रखे । ये गांधी जी का सिद्धांत था । जीवन को अच्छा बनाने के लिये ये जरूरी है हम बुरा ने बोलें , बुरा न सुनें , बुरा न देखें , लेकिन भगवान महावीर से जब हम बात करें तो भगवान महावीर कहते हैं कि तीन की जरूरत नहीं है एक ही पर्याप्त है हमें चौथे बंदर को तैयार करने की जरूरत है जिसके माथे पर ऐसा हाथ हो और वो कहे भाई बुरा मत सोचो ।
जो नहीं सोचेगा , वो बुरा सुनेगा भी नहीं , बुरा देखेगा भी नहीं और बुरा बोलेगा भी नहीं , बस बुरा मत सोचो । अपनी सोच के स्तर को सुधारो ।
बुरा विचारों का संक्रमण ।
प्रश्न है सोच को कैसे सुधारें ? आज लोग जिस युग में जी हैं वहां सोच को सुधारने के निमित्त कम हैं बिगाड़ने के निमित्त ज्यादा हैं ।
विचार विचारों को प्रेरित करते हैं और प्रभावित करते हैं । दुनिया में अन्य जीवों का विनिमय होता है तो उस विनियम से उनमें जो वृद्धि होती है वो लिमिटेड होती है लेकिन विचारों।
के विनियम का प्रभाव बहुत गहरा होता है देखिये मैं बताता हूँ कोई दो व्यक्ति उठकर खड़े हों जिनके जेब में सिक्के हों । दोनों जन यहाँ आ जाइये आप अपनी जेब से एक सिक्का निकालिये और आप भी अपने जेब से एक सिक्का निकालिये और आप दोनों एक दूसरे को अपना – अपना सिक्का दे दीजिये अदला – बदली कर लीजिये आप के हाथ में कितने सिक्के हैं ?
एक ही है जितना लिया उतना ही दिया लेकिन मैं पूछता हूँ आपने अपना एक विचार इनको दिया होता और इनसे एक विचार लिया होता तो आपके पास कितने विचार होते ? समझ में आ गया ये विचारों के विनिमय का प्रभाव है ।
विचार बहुत जल्दी एक दूसरे को प्रभावित करते हैं । विचारों का विनिमय अपनी गति से चलता दुनिया की अन्य चीजों के विनिमय में उतना ही बैलेंस बना रहता है लेकिन विचारों का विनिमय बहुत तेज गति से चलता है इसलिये यदि हमें अच्छे विचार चाहिये तो हमें अच्छे परिवेश को चुनना होगा ।
विचार बहुत संक्रामक होते हैं । आज पर्यावरण के प्रदूषण की बात की जाती है । मैं कहता हूँ बाहर का पर्यावरण जितना बिगड़ा उससे ज्यादा हमारे मन का पर्यावरण बिगड़ा है । बहुत खतरनाक है ये मन ।
प्रदूषण से ही बाहर का प्रदूषण पैदा हुआ है इस विचार को ठीक करने के लिये हमें ये चाहिये कि हम अपने परिवेश को ठीक करें विचार बड़े संक्रामक होते हैं वैसे ही संक्रामक होते हैं जैसे ताली । एक आदमी ताली बजा दे सभा में , सब तालियां बजाने लगेंगे विचारों की भी यही स्थिति है ।