महिमा जासु जान गनरांऊ । आध्यात्मिक ज्ञान।
श्री हरि:
भगचान् शंकाने ‘राम’ नामके प्रभावसे काशीमेँ मुक्ति का क्षेत्र खोल दिया और इसी महामन्त्रके जपसे ईंशसे ‘महेश’ हो गये । अब आगे गोस्वामीजी महाराज कहते हैं…
महिमा जासु जान गनरांऊ ।
प्रथम पूजि’अत नाम प्रभाऊ । ।
सम्पूर्ण श्रिलोकीकी प्रदक्षिणा करके जो सबसे पहले आ जाय, वही सबसे पहले पूजनीय हो…देवताओँमेँ ऐसी शर्त होनेसे गणेशजी निराश हो गये, पर नारदजीके कहनेसे गणेशजीने ‘राम’ नाम पृथ्वीपर लिखकर उसकी परिक्रमा कर ली । इस कारण उनकी सबसे पहले परिक्रमा मानी गयी । नामकी ऐसी महिमा जाननेसे गणेशजी सर्वप्रथम पूजनीय हो गये । आगे गोस्वामीजी कहते हैं… ९
जान आदिकबि नाम प्रतापू ।
भयउ सुद्ध करि उल्टा जापू ।।
सबसे पहले श्रीवाल्मी कि जी ने ‘रामायण’ लिखी है, इसलिये वे ‘आदिकवि’ माने जाते हैं । उलटा नाम (मरा मरा) जप करके वाल्मीकिजी एकदम शुद्ध हो गये । उनके विषयमेँ ऐसी बात सुनी है कि वे लुटेरे थे । रास्तेमेँ जो कोई मिलता, उसको लूट लेते और मार भी देते । एक जार संयोगवश देवर्षि उधर आ गये । उनको भी लूटना चाहा तो देवर्षिने कहा-तुम क्यों लूट मार करते हो यह तो बडा माप है ।’
वह बोला…’मैँ अकेला थोडे ही दूँ, घरवाले सभी मेरी कमाई खाते हैँ । सभी पापके भागीदार बनेंगे । ‘ देबर्षिने कहा-‘ भाई, पाप करनेवालेको ही पाप लगता है । सुरवके, पुण्यके, धनके भागी बनने को तो सभी तैयार हो जाते है; परंतु बदलेमें कोईं भी पापका भागी बननेके लिये तैयार नहीं होगा । तू अपने माँ-बाप, स्त्री बच्चेसे पूछ तो आ ।’ वह अपने घर गया । उसके पूछनेपर माँबोली… ‘तेरेको पाल-पोसकर बडा किया, अब भी तूहमेँ पाप ही देगा क्या ? ‘ उसने कहग-‘माँ ! मैं आप लोगोंके लिये ही तो माप करता हूँ ।’ सब घरवाले बोले…’हम तो पापके भागीदार नहीं बनेंगे ।’
तब वह जाका देवर्षिके चरणोंमेँ गिर गया और बोला… ‘महाराज ! मेरे पापका कोई भी भागीदार बननेको तैयार नहीं हैं ।’ देबर्षिने कहा… ‘ भाई ! तुम भजन करो, भगवनका नाम लो’, परंतु भयंकर पापी होनेके कारण मुँहसे प्रयास करनेपर भी ‘राम’ नाम उच्चारण नहीं कर सका । उसने कहा…’यह मरा, मरा, मरा । ऐसा मेरा अभ्यास है, इसलिये ‘मरा’तो मैं कह सकता हूँ । ‘ देबर्षिने कहा कि ‘अच्छा, ऐसा ही तुम कहो ।’ तो ‘मरा-मरा’ करने लगा । इस प्रकार उलटा नाम जपनेसे भी वे सिद्ध हो गये, महात्मा बन गये, आदिकवि बन गये । ‘राम’ नाम महामन्त्र है, उसे ठीक सुलटा जपनेसे तो पुण्य होता ही है,। पर उलटे ज़पसे भी पुण्य होता है ।