‘र’रो पिता,माता’म’मो है दोनों का जीव ।

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                   ~~श्री हरि~~

लोक लाहु परलोक निबाहू‘ -‘राम’ नाम इस लोक और   परलोकमें सब जगह काम देता है । इसलिये गोस्वामीजी कहते हैं-‘मेरे तो माँ अरु बाप दोउ आखर‘ । ‘र’ और ‘म’…-ये मेरे माँ-बाप हैं । संसारमें माता-पिताके समान रक्षा कानेवाला, पालन

करनेवाला, हित करनेवाला दूसरा कोई है ही नहीं । गोस्वामीजी कहते हैं कि हमारे तो दोनों अक्षर माता-पिता हैं, हमारा पालम करनेवाले हैं…

‘र’ रो पिता, माता ‘म’ मो है दोनों का जीव ।
रामदास कर बन्दगी तुरत मिलावे पीव ।।

जो माँ-बापका भक्त होता है, उसपर भगवान् राजी हो ही जाते

हैँ । ‘राम’ नामसे भगवान मिल जायँ, दर्शन दे दें । लोकमें, परलोकमें सब जगह ही वह निर्वाह करनेवाला है । लोकमेँ जो चाहिये, वह देनेवाला चिन्तामणि है और परलोक मे भगवद्दर्शन करानेवाला है । कईं ऐसे आदमी देखे हैं, जो दिनभर माँगते रहते हैं, घूमते-फिरते हैं; परंतु उनका पेट नहीं भरता  ऐसी दशामें वे भी अगर एकान्तमें ‘रामं-‘राम’ काने लग जायें तो प्रत्यक्षमें उनके भी ठाट लग जायगा । अन्न, जल, कपड़े आदि किसी चीजक्री कमी रहेगी नहीं । अब नामजप करते ही नहीं तो उसका क्या किया जाय ? नामजप करके देखा जाय तो भाग्य खुल जाता है, विलक्षण बात हो जाती है । जीते जी भाग्यमें विशेष परिवर्तन भगवन्नामसे होता है, इसमे कोई सन्देहकी बात नहीं है । साधारण आदमी भी नाम-जपमें लग जाता है तो लोगोंपर बिशेष असर पड़त्ता है ।

भजन करे पातालंमें परगट होत अकास ।
दाबी दूबी नहि दवे कस्तूरी की बास।।

 

कस्तूरीको सौगन्ध दिला दे कि तुम सुगन्धि मत फैलाओ तो क्या वह रुक जायगी ? सुगन्धि तो फैल ही जायगी । इस तरहसे कोई चुपचाप भी भजन करे और किसीको पता ही न लगने दे तो भी महाराज यह तो प्रकट हो ही जाता है । उसकी विलक्षणता, अलौकिकता दीखने लगती है । लोगोपर असर पडने लगता है; क्योकि भगवान्का नाम है ही ऐसा विलक्षण । इसलिये लोक और परलोक दोनोंमें लाभ होता है । साधारण घरका बालक साधु होकर भजनमे तत्परतासे लग जाता है तो वह सन्त-महात्मा कहलाने लगता है । बड़े चमत्कार उसके द्वारा हो जाते हैं, जिसको पहले कोई पूछता ही नहीं था । बात क्या है ? यह सब भगवन्नामक्री महिमा है ।

बरनत बरन प्रीति बिलगाती ।
ब्रह्म जीव सम सहज सँघाती ।।  

इन “र’, ‘ आ’ और ‘म’ का वर्णन किया जाय तो ये अलग-अलग दीखते हैं मानो ये तीनों वर्ण कृशानु, भानु और हिमकरके बीज-अक्षर हैं । वृक्षमें बीजसे ही शक्ति आती है ।’ इसी प्रकार अग्नि, सूर्य और चन्द्रमामें जो शक्ति है, वह ‘राम’ नामसे ही आयी है ।

” यदादित्यगतं तेजो जगत् भासयतेऽखिलम् । यच्चन्द्रमसि यच्चान्ग्रौ तत्तेजो विद्धि मामकम् ।। 

गीतामेँ भगवान् कहते हैं कि इनमें जो विशेषता है, वह मेरी ही है । नाम और नामीमें अभेद है । इनके उच्चारण, अर्थ और फलमें भिन्नत्ता दीखती है । वर्णन करनेमैं ये अलग-अलग दीखते हैं । प्रीति भी अलग-अलग दीखती है; परंतु ‘र’ और ‘म’ दोनों ब्रह्म और जीवके समान सहज संघाती हैँ अर्थात् स्वत: सदा एक साथ रहनेवाले साथी हैँ, सदा एकरूप और एकरस रहनेवाले हैं।

ब्रह्म और जीवका अर्थ क्या है ? ‘ममैवाश: (गीता १ ५ । ७) यह ‘जीव परमात्माका साक्षात् अंश है और यह परमात्मा (ब्रह्म) क्रो प्राप्त हो जाता है । ‘इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधम्र्यमागता : ।
मेरी साधम्र्यताको प्राप्त हो जाते हैँ अर्थात् जैसे भगवान् हैं, ऐसे ही भक्त हो जाते हैं । हन दोनोंकी सहधर्मता हो जाती है  तुलसीदासजीने भी कहा है-

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