श्रीचैतन्य-महाप्रभु और उनके शिष्य की कहानी
~~श्री हरि~~
श्रीचैतन्य-महाप्रभुके कई शिष्य हुए हैं । उनमें एक हरिदासजी महाराज भी थे । वे थे तो मुसलमान, पर चैतन्य महाप्रभुके संगसे भगबन्नाममे लग गये । सनातन धर्मको स्वीकार कर लिया । उस समय बड़े-बड़े नवाब राज्य करते थे, उनको बडा बुरा लगा । भी शिकायत की कि यह काफिर हो गया । इसने हिन्दूधर्मको स्वीकार कर लिया । उन लोर्गोंने सोचा-‘इसका कोई-न-कोई कसूर हो फिर अच्छी तरहसे इसको दण्ड देंगे ।’
एक वेश्याको तैयार किया और उससे कहा-‘यह भजन करता है, इसको यदि तू विचलित कर देगी तो बहुत इनाम दिया जायगा । वेश्याने कहा…’पुरुष जातिको विचलित कर देना तो मेरे बाये हाथ का खेल है ।’ ऐसे कहकर वह वहाँ चली गयी जहाँ हरिदासजी एकान्तमें
बैठे नाम-जप कर रहे थे । वह पासमेँ जाकर बैठ गयी और बोली-‘महाराज मुझे आपसे बात करनी है । ‘ हरिदासजी बोले…’मुझे अभी फुरसत नहीं है । ‘ ऐसा कहकर भजनमें लग गये । ऐसे उन्होंने उसे मौका दिया ही नहीँ । तीन दिन हो गये, वे खा-पी लेते और फिर ‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।। ‘ मन्त्र-जपमेँ लंग जाते । ऐसे वेश्याको बैठे तीन दिन हो गये, पर महाराजका उधर रव्याल ही नहीं है, नाममें ही रस ले रहे हैं । अब उस वेश्याको भी मन बदला कि तू कितनी निकृष्ट और पतित है । यह बेचारा सच्चे हृदयसे भगवान्मेँ लगा हुआ है इसको विचलित कर नरकोंकी ओर तू ले जाना चाहती है, तेरी दशा क्या होगी ? इतना भगवन्नाम सुना, ऐसे विशुद्ध संतका संग हुआ, दर्शन हुए । अब तो
‘ वह रो पडी एकदम ही ‘महाराज ! मेरी क्या दशा होगी, आप बताओ ? ‘
जब महाराजने ऐसा सुना तो बोले ‘हाँ हाँ । बोल अब फुरसत है मुझे । क्या पूछती हो ? ‘ वह कहने लगी…”मेरा कल्याण कैसे होगा ? मेरी ऐसी खोटी बुद्धि है, जो आप भजनमेँ लगे हुएको भी नरकमे ले जानेका विचार कर रही थी । मैं आपको पथभ्रष्ट करनेके लिये आयी । नवाबने मुझे कहा कि तू उनको विचलित कर दे, तेरेको इनाम देंगे । मेरी दशा क्या होगी ? ‘ तो उन्होंने कहा ‘तुम नाम-जप करो, भगवान्का नाम लो । ‘
फिर बोली…’ अब तो मेरा मन भजन करनेका ही कस्ता है, भविष्यमे़ कोई पाप नहीं करूँगी, कभी नहीं करूँगी ।’ हरिदासजीने उसे माला और मन्त्र दे दिया । ‘ अच्छा यह ले माला ! बैठ जा यहॉ और का हरि भजन ।’ उसे वहाँ बैठा दिया और वह-हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे । हरे राम हरै राम राम राम हरे हरे ।।” इस मन्त्रका
जप करने लगी । हरिदासजीने सोचा…’यहां’ मेरे रहनेसे नवाबको दुख होता है तो छोडो इस स्थानको और दूसरी जगह चलो ।‘ एकान्तमें दो-तीन दिनतक बेश्या बैठी रही, फिर भी हरिदासजीका मन नहीं चला-इसमें कारण क्या था ‘? ‘राम’ नामका जो रस है, वह भीतरमें आ गया । अब बाकी क्या रहा 1 सज्जनों 1 संसारके रससे सर्वथा विमुख होकर जब भगवन्नाम-जपमें प्रेमपूर्वक लग जाओगे, तब यह भजनका रस स्वत: आने लगेगा । इसलिये “राम” नाम रात-दिन लो, कितनी सीधी बात है !
नाम लेले का मजा जिसकी जुबाँ पर आ गया ।
दो जीवन्मुक्त हो गया चारों पदार्थ पा गया ।।
किसी व्यापारमें मुनाफा कब होता है ? -जब वह बहुत सस्तेपे खरीदा जाय, फिर उसका भाव बहुत मँहगा हो जाय, तब उसमें नफा होता है । मान लो, दो…तीन रुपये मनमे अनाज आपके पास लिया दुआ है और भाव चालीस, पैंतालीस रुपये मनका हो गया । लोग कहते हैं, अनाजका बाजार बड़। बिगड गया, पर आपसे पूछा जाय तो आप क्या कहेंगे 2 आप कहेगे कि मौज हो गयी । आपके लिये बाजार खराब नहीं हुआ । ऐसे ही ‘राम’ नाम लेनेमें सत्ययुगमेँ जितना समय लगता था, उतना ही समय अब कलियुगमें लगता है । पूजी उतनी ही खर्च होगी और भाव होगा कलियुगके बाजारके अनुसार । कितना सस्ता मिलता
है और कितना मुनाफा होता है इसमें कलियुगमें नामकी महिमा विशेष है ।