सुमिरत सुलभ सुरवद सब काहू।

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~~श्री हरि~~
 
सुमिरत सुलभ सुरवद  सब  काहू।
लोक लाहु परलोक निबाहू । ।
सुमिरन करनेमेँ ‘राम‘ नाम कठिन नहीं है । ‘रा’ और ‘म’ -…-ये दोनों अक्षर उच्चारण कामेमेँ सुगम हैं; क्योकि ये अक्षर अल्पप्राण हैँ । जिनमें प्राण कम खर्च होते हैं, वे अक्षर अल्पप्राण कहे जाते हैं । ‘र’ का उच्चारण जितना सुगमतासे कर सकते हैं, उतना ‘ह’ का नहीं कर सकते, क्योंकि ‘ह’ महाप्राण है । जैसे ख, फ, छ, ठ, थ, -…प्रत्येक वर्गका दूसरा और चौथा अक्षर महाप्राण है । पहला, तीसरा और पाँचवाँ अक्षर अल्पप्राण है । ‘क’ बहुत समयतक कह सकते हैं, पर ‘ख’ इतने समय तक नहीँ कह स्रक्रत्ते । बहुत जल्दी खतम हो जायेगे प्राण; क्योंकि महाप्राण है वह । पाँचवाँ अक्षर ( ‘ब, म, ङ, ण, न’ ) …अल्पप्राण है और ‘यणश्चाल्पप्राणा८ ‘ य, र, ल, व भी अल्पप्राण हैं । अल्पप्राणचाला अक्षर उच्चारण करनेमेँ सुगम होता है और उसका उच्चारण भी ज्यादा देर हो सकता है । महाप्राणचाले अक्षरमेँ बहुत जल्दी प्राण खतम हो जाते हैं । अत: अल्पप्राणचाले अक्षरोंके समान दूसरे नाम उतनी देरत्तक नहीं ले सकते । इस कारण ‘राम’ नाम अल्पप्राण होनेसे उच्चारण करनेमें सुगम है ।
वाल्मीकिजीको अल्पप्राणचाला नाम भी क्यों नहीं आया ? कारण … क्या था ? ध्यान दें ! ‘राम’ नाम उच्चारण कामेमेँ सुगम है; परंतु जिसके पाप अधिक हैं, उस पुरुषद्वारा नाम-उच्चारण कठिन हो जाता है । एक कहावत है… _ .
मजाल क्या है जीव की, जो रांम-नाम लेवे .। 
पाप देवे थाप की, जो मुण्डो फोर देवे ।। 
जिनका अल्प पुण्य होता है, वे ‘राम’ नाम ले नहीँ सकते ।
श्रीमद्भगवद्गीतामेँ भी आया है…

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