स्वामी विवेकानंद के सुविचार |

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स्वामी विवेकानंद के सुविचार | 
Swami Vivekananda Thoughts In Hindi

 1 ) कुछ मत मांगो , बदले में कुछ मत चाहो | तुम्हे जो देना है , दे दो , वह तुम्हारे पास लौटकर आएगा – पर अभी उसकी बात मत सोचो । वह वर्धित होकर – सह्स्त्रगुना वर्धित होकर वापस आएगा – पर ध्यान उधर न जाना चाहिए | तुम में केवल देने की शक्ति है | दे दो , बस बात वहीं पर समाप्त हो जाती है |
 2 ) भारत को कम से कम अपने सहस्त्र तरुण मनुष्यों की बलि की आवश्कता है , पर ध्यान रहे – ‘ मनुष्यों की बलि ( दान ) ‘ पशुओं ‘ की नहीं |
3 ) मुक्ति उसी के लिए है , जो दुसरों के लिए सब कुछ त्याग देता है और दुसरे , जो दिन – रात ‘ मेरी मुक्ति , मेरी मुक्ति ‘ कहकर माथापच्ची करते रहते हैं , वे वर्तमान और भविष्य में होने वाले अपने सच्चे कल्याण सम्भावना को
नष्ट कर यत्र – तत्र भटकते फिरते हैं | मैंने स्वयं अपनी आंखों ऐसा अनेक बार देखा है |
4 ) महान बनो त्याग बिना कोई भी महान कार्य सिध्द नहीं हो सकता | इस जगत की सृष्टि के लिए स्वयं उन विराट पुरुष भगवान को भी अपनी बलि देनी पड़ी आओ , अपने एश – आराम , नाम – यश , एश्वर्य , यहां तक कि अपने जीवन को भी निछावर कर , मानव – श्रृंखला का एक सेतु निर्माण कर डालो , ताकि उस पर से होकर लाखों जीव अत्माएं इस भवसागर को पार कर लें |
5 ) विकास ही जीवन है और संकोच ही मृत्यु | प्रेम ही विकास है और स्वार्थपरता ही संकोच | अतएव प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है | जो प्रेम करता है , वह जीता है , जो स्वार्थी है , वह मरता है | अतएव प्रेम के लिए ही प्रेम करो , क्योंकि प्रेम ही जीवन का एकमात्र नियम है।
6 ) एक समय आता है , जब मनुष्य अनुभव करता है कि थोड़ी – सी मनुष्य की सेवा करना लाखों जप – ध्यान से कहीं बढ़कर है | – स्वामी विवेकानंद
 7 ) वेदान्त परमात्मा के सर्वव्यापक होने से भी आगे की बात समझाता है । वेदान्त के अनुसार , यह समूची सृष्टि परमात्मा का ही विभिन्न नाम रूपों में प्रकट होना है | तभी तो सच्चा वेदांती सृष्टि के जड़ – चेतन से आत्मवत् प्रेम करता है |
8 ) यदि हम अपनी प्रार्थना में कहें कि भगवान ही हम सबके पिता हैं और अपने दैनिक जीवन में प्रत्येक मनुष्य को अपना भाई न समझें , तो फिर उसकी सार्थकता ही क्या ?
9 ) प्राचीन धर्मों ने कहा , ” वह नास्तिक है , जो भगवान् में विश्वास नहीं करता | ” नया धर्म कहता है , ” नास्तिक वह है जो स्वयं पर विश्वास नहीं करता । “
10 ) अहा ! यदि केवल तुम जन लेते कि तुम कौन
हो ! तुम आत्मा हो , तुम ईश्वर हो । यदि कोई अधार्मिक बात है , तो वह है तुमको मनुष्य कहना |
11 ) वेदांत का आचरण सहज रूप से समस्त निराशाओं , चिंताओं , विषादों , तनावों से आपको सदा सदा के लिए मुक्त करता है |
12 ) धर्म – ग्रंथ जिन सद्गुणों को अपनाने की बात करते हैं , वे अनायास उससे प्रवाहित होते हैं , जो वेदांत का आचरण करता है |

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