होवे घर घर श्रवण सा बेटा ।आध्यात्मिक ज्ञान।

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 होवे घर घर श्रवण सा बेटा । रहें कृतज्ञ अपनी जननी के।

होवे घर घर श्रवण सा बेटा ।

हमारे अतीत के इतिहास में एक नर रत्न हुआ है श्रवण कुमार जो केवल भारत में ही हुआ जिसने अपने जीवन पर्यंत में अपनी भरी जवानी में अपने वृद्ध माता – पिता को कावंर में बिठाकर तीर्थ यात्रा कराई ।

कांवर पर जल लेकर शंकर के शीश पर चढ़ाने वाले लोग तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन कांवर पर अपने माता – पिता को बिठाकर अपने जीवन को अर्पण करने वाला श्रवण कुमार विरला ही होता है । वो श्रवण कुमार धन्य है ।

आज लोगों को अपने माता – पिता बोझ लगते हैं । लेकिन श्रवण कुमार ने अपने माता – पिता को अपने कंधे पर बिठाकर सारे देश की तीर्थ यात्रा कराकर मानवजाति के सामने आदर्श प्रस्तुत किया जिसकी मिसाल दूसरी नहीं मिलती । 

वे श्रवण कुमार जो आखरी क्षणों में मरणासन्न स्थिति में थे दशरथ का तीर लग जाने से जो घायल हो चुके थे उन श्रवणकुमार ने अपनी अंतिम इच्छा प्रकट करते हुये सिर्फ इतना कहा कि चलो मेरा जो हुआ हुआ , पर मेरा आपसे एक निवेदन है मेरे माता – पिता प्यासे हैं , कृपा कर आप उन्हें पानी पिता देना ।

एक वो बेटा है जो खुद मरते – मरते भी अपने मां – बाप को पानी पिलाने के लिये तड़प रहा है और एक वो बेटा है जो मरते हुये मां – बाप को दवा पिलाने के लिये तैयार नहीं होता कितना अंतर है ? युग बदला है ।

हमारे आदर्श बहुत उच्च हैं लेकिन आचरण बहुत नीच होता जा रहा है इसकी जड़ में है मनोवृत्ति का बदलाव ।

परिवार संस्था की बदहाली , चिन्ता गुरुओं को

मनुष्य की सोच संकीर्ण हो गयी है और मनोवृत्ति स्वार्थी हो गयी है । स्वार्थी मनोवृत्ति और संकीर्ण सोच ने मनुष्य को अनुदार और असहिष्णु बना दिया है । इसके ये दुष्परिणाम आ रहे हैं कि जहां भारत की संस्कृति के बारे में संत उपदेश दिया करते थे । आत्मा और परमात्मा की निगूढ़ बातों का रहस्य , मोह और माया का भेद बताया करते थे ।

आज उस देश के संतों को आपके घर परिवार की खुशहाली का राज लोगों को बताना पड़ रहा है । ये कितनी बड़ी विडम्बना है । परिवार बसाने को बाद भी आज परिवार में जैसा जो कुछ घटित होना चाहिये घटित नहीं हो पा रहा है आखिर ऐसा क्यों ? मुझे आपसे थोड़ी बात आज इसी की करनी है कि परिवार में कैसे खुशहाली लौटाई जाये ? परिवार में आज हो क्या रहा है और होना क्या चाहिये ?

परिवार में माता – पिता का सर्वोच्च स्थान होता है । माता – पिता , बच्चे , भाई बहन यही परिवार के मुख्य अंग हैं । इनका आ संबंध और कैसा होना चाहिये ? माता – पिता को भारत की संस्कृति में देव कहा गया है । मातृ देवो भव , पितृ देवो भव | 

हम लोगों को गणेश कथा याद है जहां कार्तिकेय ने तो सारी दुनिया का चक्कर लगाया लेकिन गणेश ने अपने माता पिता के चक्कर लगाकर विजय पा ली । ये उदाहरण केवल उदाहरण नहीं है ।

उनकी महिमा को बताने वाला एक बहुत अच्छा आदर्श है । हम इसे समझें और सच्चे अर्थों में देखा जाए तो हमने इस संसार में जन्म लिया है तो माता – पिता के कारण लिया है यदि माँ और पिता न हों तो हमारा इस संसार में आना नहीं होता ।

लेकिन ये विडम्बना है कि जिस मां – बाप ने जन्म दिया एक समय के बाद वहीं मां – बाप भार और अनुपयोगी लगने लगते हैं । धिक्कार है उसको जो अपने जन्मदाता को ही भार समझ लेता है । पहले हम अपने मां – बाप की उस भूमिका को समझें , उस उपकार को समझें तो हमारे जीवन में ऐसी स्थितियां कभी नहीं आ सकती ।

आज भारत जैसे देश में भी कई बार ऐसे उदाहरण मिल रहे हैं । एक बार मुझसे ही एक अरबपति सज्जन ने बड़े आहत भावों से कहा कि मेरे पास सब कुछ है लेकिन मेरा अपना कोई नहीं । तीन बेटे हैं तीनों अलग – अलग घरों में अलग – अलग फ्लेट में रह रहे हैं ।

पति – पत्नी दोनों एक फ्लैट में रह रहे हैं उनके पास नौकर चाकर हैं लेकिन अपना कोई नहीं । उनके लिये क्या कहें जिस मां बाप ने तुम्हें जन्म दिया जिसने जीवन दिया , जिसने संस्कार दिया उसकी अवज्ञा कितनी बड़ी कृतघ्नता है ।

रहें कृतज्ञ अपनी जननी के।

कृतघ्नता भारत की संस्कृति में कृतज्ञता को एक बहुत बड़ा गुण में एक बहुत बड़ा पाप माना गया है और यहां तक कहा गया है कि और सब पापों का प्रायश्चित फिर भी संभव है लेकिन अभागे कृतघ्न का कोई उद्धार नहीं हो सकता । कृतघ्नता को बहुत नीच कर्म कहा लेकिन आज के लोग , मुझे ऐसा लगता है , कि नीचता की हद से भी नीचे जाने लगे हैं । उनको ये सब सोच नहीं कि माता – पिता का कितना ऊंचा स्थान हैं ।

मां बच्चे को पेट में रखती है । नौ माह तक । नौ माह तक माँ एक बच्चे को पेट में रखती है और तुम नौ घण्टे तक फूल अपने हाथ में नहीं रख सकते । कैसे रखती होगी कभी विचार किया ? और नौ माह तक कितनी ममता जुड़ी रहती है अपने पेट में पलने वाले शिशु के प्रति ।

भगवान महावीर जब माँ त्रिशला के पेट में थे तब भगवान ने सोचा कि मेरे हलन चलन से मेरी माँ को पीड़ा होगी तो उन्होंने अपनी एक्टिविटी को रोक दिया , जैसे ही पेट में पलने वाले शिशु की एक्टिविटी रुकी कोहराम मच गया त्रिशला घबरा उठी अरे ये क्या हो गया ? मेरे बच्चे को कुछ हो गया है , उसमें मूवमेंट नहीं है । 

माँ एकदम विचलित हो उठीं । भगवान ने अपने दिव्य ज्ञान के बल पर जाना और सोचा कि मेरी माँ की कितनी ममता है ? मैं तो चाहता हूँ कि इन्हें कोई कष्ट न हो पर कष्ट न देने पर कष्ट हो रहा है । काश मां की ममता को कोई समझे ।

नौ माह पेट में ही नहीं रखती प्रसव की वेदना को भी सहती है और उस वेदना को केवल माँ ही जानती है । जन्म देती है और जन्म देने के साथ – साथ परवरिश करती है । खुद गीले में सो करके बेटे को सूखे में सुलाती है । अपने हितों से ज्यादा बेटे के हितों का ख्याल रखती है ।

 एडजेस्टमेन्ट ? कैसे विकृत डेवलपमेन्ट ? 

 

एक बार एक युवक मेरे पास आया उसने कहा महाराज बड़ी मुश्किल है । मम्मी पापा से मेरा एडजेस्टमेंट नहीं होता । उनकी विचारधारा हमसे और हमारी वाइफ से नहीं मिलती हम क्या करें ? महाराज उनको कुछ समझ में ही।   नहीं आता उनकी बुद्धि ऐसी हो गयी । मैनें उसको फटकारा । मैं बोला धिक्कार है , आज तुम मम्मी – पापा से एडजेस्टमेंट करने की बात कर रहे हो ?

तुम्हें लगता है कि तुम्हारे मम्मी पापा में बुद्धि नहीं है । अच्छा है कि तुम्हारी मम्मी कम पढ़ी लिखी हैं नहीं तो आज की माताओं की तरह तुम्हें पेट से ही परलोक पहुंचा चुकी होती तो तुम्हारा क्या होता ? मां कम पढ़ी लिखी है तो उसने तुम्हें जन्म दिया , जन्म देने के बाद तुम्हें जीवन दिया , संस्कार दिया ।

तुम कहते हो माँ – बाप को आज समझ नहीं वे आज के युग के अनुरूप नहीं चलते । उनकी बुद्धि ठीक नहीं है । तू तो बता जब तू पैदा हुआ था तब तेरी बुद्धि कैसी थी ? ऐसी बुद्धि भी नहीं थी कि तुम्हारे पास कौवा आकर तुम्हारे आंख को फोड़ना चाहे तो तुम कौवे को भी भगा सको । 

तुम कहीं मल – मूत्र करते थे , कहीं गंदगी करते थे , तुम्हें कुछ पता नहीं , लेकिन क्या तुम्हारी माँ ने ऐसा करने में तुम्हें दुत्कारा ? जब तुमने मां की या पिता की गोद को गंदा किया तो क्या किया ? अपनी गोद साफ करने से पहले तुम्हें साफ किया ।

तुम्हें सूखे कपड़े पहनाये तुम्हें हटाया नहीं ।  जब तुमने बचपन में गलती की तो तुम्हारे माँ – बाप ने तुम्हें पुचकारा और धिक्कार है तुम्हें जो आ थोड़ी सी चूक पर तुम उन्हें दुत्कारते हो । आज बड़ी दिन दशा होने लगी है ।

माँ बाप अपनी ही संतान की उपेक्षा का शिकार बनते हैं उन्हें हार्दिक वेदना की अनुभूति होती है । बंधुओ एक अबोध बच्चे में और एक बुजुर्ग माँ बाप में वैसे देखा जाये तो ऊपरी तौर पर बहुत समानता होती है लेकिन संवेदना के आधार फर्क बहुत होता है मैंने उससे कहा कि माँ – बाप तुम्हें एडजेस्ट करें ये तुम्हारी बहुत बड़ी नादानी है तुम्हें चाहिये कि तुम माँ – बाप से एडजेस्ट करो क्योंकि उनका उपकार तुम्हारे ऊपर है ।

लेकिन मुश्किल ये दिखती है कि आज अपने माँ – बाप के उपकार को अनदेखा कर देते हैं । सड़क चलते स्कूटर पर कोई लिफ्ट देता है तो उसे एक किलोमीटर के लिये धन्यवाद देते हैं ।

किसी के घर जाते हो वो एक गिलास पानी पिलाता है , चाय पिलाता है • आप उसे थैंक्स कहते हो , लेकिन कभी अपने माँ बाप के लिये धन्यवाद के स्वर तुम्हारे मुख से निकले कि आपने हमें जन्म दिया , जीवन दिया , हमें संस्कार दिये और इस लायक बनाया , हम आपके प्रति कृतज्ञ हैं ।

आज के लोग पढ़े लिखे लोग हैं पता नहीं कैसे पढ़े लिखे लोग हैं ? इन पढ़े लिखे लोगों से वे अनपढ़ अच्छे थे जिनको कम से कम अच्छाई की समझ तो थी । मुझे ऐसा लगता है कि पहले के लोग पढ़े लिखे कम समझदार अधिक और आज के लोग पढ़े लिखे अधिक समझदार कम हैं इसलिये मझधार में हैं ।

संवेदनायें क्षीण होती जा रही हैं । उनके उपकारों को याद करने पर कभी व्यक्ति की स्वभाव गत दुर्बलता भी दुर्बलता नहीं लग सकती । बात उस युवक की चल रही थी , उसने धीरे से कहा , महाराज कुछ तो एडजेस्ट करना चाहिये सो मैं तो कर लेता हूँ पर मेरी वाइफ बिल्कुल नहीं करती ।

मम्मी – पापा को थोड़ा आज के हिसाब से चलना चाहिये । हमने कहा , अच्छा तुम अपने पाँच साल के बेटे को अपनी स्पीड से चला सकते हो क्या ? नहीं पाँच साल का बच्चा मेरी चाल में कैसे चलेगा ? तो मैंने कहा जब पांच साल का बच्चा तुम्हारें साथ नहीं चल सकता तो पैंसठ साल का बाप तुम्हारे साथ कैसे चल सकता है ?

तुम पांच साल के बच्चे के साथ अपनी गति को एडजेस्ट करने के लिये तैयार हो पर पैंसठ साल के पिता के साथ अपनी गति को एडजेस्ट करने के लिये तैयार नहीं हो । एडजेस्टमेंट होना चाहिये ये समझ भीतर से डेवलप होनी चाहिये और जिस व्यक्ति के अंदर ऐसी समझ विकसित हो जाती है उस व्यक्ति को कुछ कहने की जरूरत नहीं होती वो सारा जीवन माता – पिता के सामने समर्पित रहता है ।

थोड़ा विचार करो माँ बाप का कितना उपकार होता है ? माँ ने अगर जन्म देने से पहले परलोक पहुँचाया होता तो आज तो कोई प्रश्न ही नहीं होता , लेकिन जन्म देने के बाद केवल जन्म देना पर्याप्त नहीं है । 

यदि माँ ने जन्म देकर किसी झाड़ी में फेंक दिया होता तो कुत्ते और गिद्ध अपना त्योहार मना रहे होते या किसी अनाथालय में सड़ते रहते इतना ही अस्तित्व रहता । उन्होंने ऐसा नहीं किया कितना बड़ा उपकार है और इतना ही नहीं बीमार पड़ने पर डाक्टर को नहीं दिखाया होता , समय पर दवाई नहीं दी होती , समय पर भोजन नहीं दिया होता तो आज तुम इस लायक होते ? याद करो उस दिन को जब चूल्हे की तरफ लपकते हुए अचानक माँ ने तुम्हें खींच कर अपनी तरफ नहीं खींचा होता तो क्या होता उसी दिन स्वाहा हो गये होते ।

उस दिन को याद करो जब छत से नीचे की ओर : झांकते समय तुम्हारी माँ ने लपक कर अपनी तरफ खींचा नहीं होता तो तुम्हारा क्या होता ? और उस दिन को याद करो जब सड़क पर सामने से आते हुये तेज गति के ट्रक से सामने से तुम्हारे पिता ने तुम्हें अपनी ओर नहीं खींचा होता तुम्हारा क्या होता ? विचारने की बात है ।

माँ – बाप जन्म ही नहीं जीवन भी देते हैं और जीवन देने के साथ संस्कार देते हैं उनने तुम्हें पढ़ा लिखाकर योग्य बनाया , यदि पढ़ाया लिखाया नहीं होता इस योग्य नहीं बनाया होता तो जो तुम अपने आप को हाईफाई महसूस करते हो उसकी जगह आज आवारा , लोफर – लफंगे की तरह घूमते रहते ।

आज तुम्हारी गिनती एक सभ्य व्यक्ति की तरह होती है उसकी जगह किसी बदमाश अपराधी के रूप में तुम गिने जाते , कितना बड़ा उपकार इसको व्यक्ति समझे तो कुछ कहने की जरूरत नहीं । माता – पिता के उपकारों को याद रखने वाला व्यक्ति माता – पिता के प्रति सदैव कृतज्ञता का भाव बना कर रखेगा उनकी गलतियों को अनदेखी करेगा और उनके चरणों में समर्पित रहेगा ।

हमारे यहाँ तो कहा जाता है कि किसी का थोड़ा सा उपकार भी कभी पूरा नहीं किया जा सकता फिर तो यहाँ माँ बाप का पूर्ण उपकार है हमारे ऊपर । हमारे शरीर का का जर्रा – जर्रा माँ – बाप की कृपा का प्रसाद है हमारे शरीर के रक्त की एक – एक बूंद उनकी कृपा के परिणामस्वरूप है ।

इसको जो समझता है उसे ज्यादा उपदेश देने की आवश्यकता नहीं है और जो इसे नहीं समझता उसकी दशा का तो भगवान ही मालिक है इसलिये संत कहते हैं माता – पिता का सबसे ऊँचा स्थान है ।

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