भजन में दिखावा। आध्यात्मिक ज्ञान

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भजन में दिखावा ।

भगवान्का नाम प्रेमपूर्वक लेता रहे , नेत्रोंसे जल झरता रहे , हृदयमें स्नेह उमड़ता रहे , रोमांच होता रहे तो देखो , उनमें कितनी विलक्षणता आ जाती है , पर वही दूसरोंको दिखानेके लिये , दूसरोंको सुनानेके लिये करेंगे तो उसका मूल्य घट जायगा । यह चीज औरॉको दिखानेकी नहीं है । धन तिजोरीमें रखनेका होता है । किसीने एक सेठसे पूछा – ‘ तुम घरमें रहते हो या दूकानमें ? कहाँ सोते हो ? ‘ तो सेठने कहा – ‘ हम हाटमें सोवें बाटमें सोवें , घरमें सोवें , सोवें और न भी सोवे।
 अगर हम कहें कि दूकानमें सोते हैं तो घरमें चोरी कर लेगा ! घरमें सोनेकी कहें तो दूकानमें चोरी कर लेगा । अर्थ यह हुआ कि तुम चोरी करने मत आना । लौकिक धनके लिये इतनी सावधानी है कि साफ नहीं कह सकते हो कि कहाँ सोते हैं ? और नामके लिये इतनी उदारता कि लोगोंको दिखावें ! राम , राम , राम ! कितनी बेसमझी है ! यह क्या बात है ? नामको धन नहीं समझा है । इसको धन समझते भजन करते थे ।
 उनकी रानी भी बड़ी भक्त थी । बचपनसे ही वह भजनमें लगी हुई थी । इस राजाके यहाँ ब्याहकर आयी तो यहाँ भी भजनमें दिखावा एक राजा भगवान्के बड़े भक्त थे , वे गुप्त रीतिसे भगवान्का सोवें । ‘ तो गुप्त रखते । ठाकुरजीका खूब उत्सव मनाती , ब्राह्मणोंकी सेवा , दीन – दुखियोंकी सेवा करती ; भजन – ध्यानमें , उत्सवमें लगी रहती । राजा साहब उसे मना नहीं करते ।
वह रानी कभी – कभी कहती कि ‘ महाराज ! आप भी कभी – कभी राम – राम – ऐसे भगवान्का नाम तो लिया करो । ‘ वे हँस दिया करते । रानीके मनमें इस बातका बड़ा दुःख रहता कि क्या करें , और सब बड़ा अच्छा है । मेरेको सत्संग , भजन , ध्यान करते हुए मना। नहीं करते ; परन्तु राजा साहब स्वयं भजन नहीं करते । ऐसे होते – होते एक बार रानीने देखा कि राजासाहब गहरी नींदमें सोये हैं । करवट बदली तो नींदमें ही ‘ राम ‘ नाम कह दिया ।
 अब सुबह होते ही रानीने उत्सव मनाया । बहुत ब्राह्मणोंको निमन्त्रण दिया ; बच्चोंको , कन्याओंको भोजन कराया , उत्सव मनाया । राजासाहबने पूछा —’आज उत्सव किसका मना रही हो ? आज तो ठाकुरजीका भी कोई दिन विशेष नहीं है । ‘ रानीने कहा – ‘ आज हमारे बहुत ही खुशीकी बात है । ‘ क्या खुशीकी बात है ? ‘ महाराज ! बरसोंसे मेरे मनमें था कि आप भगवान्का नाम उच्चारण करें । रातमें आपके मुखसे नींदमें भगवान्का नाम निकला । ‘ निकल गया ? ‘ हाँ इतना कहते ही राजाके प्राण निकल गये । ‘ अरे मैंने उमरभर जिसे छिपाकर रखा था , आज निकल गया तो अब क्या जीना ? ‘

गुप्त अकाम निरन्तर ध्यान सहित सानन्द ।
  आदर जुत जपसे तुरत पावत परमानन्द ॥ 


ये छः बातें जिस जपमें होती हैं , उस जपका तुरन्त और विशेष माहात्म्य होता है । भगवान्का नाम गुप्त रीतिसे लिया जाय , वह बढ़िया है । लोग देखें ही नहीं , पता ही न लगे — यह बढ़िया बात है , परंतु कम – से – कम दिखावटीपन तो होना ही नहीं चाहिये । इससे असली नाम – जप नहीं होता । नामका निरादर होता है । नामके बदले मान बड़ाई खरीदते हैं , आदर खरीदते हैं , लोगोंको अपनी तरफ खींचते हैं — यह नाम महाराजकी बिक्री करना है । यह बिक्रीकी चीज थोड़े ही है ! नाम जैसा धन , बतानेके लिये है क्या ! लौकिक धन भी लोग नहीं बताते , खूब छिपाकर रखते हैं । यह तो भीतर रखनेका है , असली धन है ।


माई मेरे निरधनको धन राम ।
 रामनाम मेरे हृदयमें राखू ज्यू लोभी राखे दाम ॥
दिन दिन सूरज सवायो उगे , घटत न एक छदाम ।
सूरदास के इतनी पूँजी , रतन मणि से नहीं काम ।। 

यह अपने हृदयकी बात है । मेरे निर्धनका धन यही है । कैसा बढ़िया धन है यह ! अन्तमें कहते हैं यह जो रत्न – मणि , सोना आदि है , इनसे मेरे मतलब नहीं है । ये पत्थरके टुकड़े हैं । इनसे क्या काम ! निर्धनका असली धन तो ‘ राम ‘ नाम है । ‘
 धनवन्ता सोइ जानिये जाके ‘ राम ‘ नाम धन होय । ‘
 यह धन जिसके पास है , वही धनी है । उसके बिना कंगले हैं सभी । “

सम्मीलने नयनयोर्न हि किञ्चिदस्ति । ‘

करोड़ों रुपये आज पासमें हैं , पर ये दोनों आँखें सदाके लिये जिस दिन बन्द हो गयीं , उस दिन कुछ नहीं है । सब यहाँका यहीं रह जायगा ।

सुपना सो हो जावसी सुत कुटुम्ब धन धाम । ‘ 

यह स्वप्नकी तरह हो जायगा । आँख खुलते ही स्वप्न कुछ नहीं और आँख मिचते ही यहाँका धन कुछ नहीं । स्थूल बुद्धिवाले बिना समझे कह देते हैं कि ‘ राम ‘ नामसे क्या होता है ? वे बेचारे इस बातको जानते नहीं , उन्हें पता ही नहीं है । इस विद्याको जाननेवाले ही जानते हैं भाई ! सच्ची लगन जिसके लगी है , वह जानता है । दूसरोंको क्या पता ? ‘ जिसके लागी है सोई जाने दूजा क्या जाने रे भाई ‘ भगवान्का नाम लेनेवालोंका बड़े – बड़े लोकोंमें जहाँ जाते हैं , वहाँ आदर होता है कि भगवान्के भक्त पधारे हैं । हमारा लोक पवित्र हो जाय । भगवन्नामसे रोम – रोम ‘ कण – कण पवित्र हो जाता है , महान् पवित्रता छा जाती है । ऐसा भगवान्का नाम है । जिसके हृदयमें नामके प्रति प्रेम जाग्रत् हो गया , वह असली धनी है । इससे भगवान् प्रकट हो जाते हैं । वह खुद ऐसा विलक्षण हो जाता है कि उसके दर्शन , स्पर्श , भाषणसे दूसरोंपर असर पड़ता है । नाम लेनेवाले
सन्त – महात्माओंके दर्शनसे शान्ति मिलती है । अशान्ति दूर हो जाती है , शोक – चिन्ता दूर हो जाते हैं और पापोंका नाश हो जाता है । जहाँ वे रहते हैं , वे धाम पवित्र हो जाते हैं और जहाँ वे चलते हैं , वहाँका वायुमण्डल पवित्र हो जाता है ।

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