नाममें पाप – नाशकी शक्ति आध्यात्मिक ज्ञान।
नाममें पाप – नाशकी शक्ति
जब ही नाम हृदय धर्यो भयो पाप को नास ।
मानो चिनगी आग की पड़ी पुराने घास ॥
नये घासमें इतनी जल्दी आग नहीं लगती , पुराना घास बहुत जल्दी आगको पकड़ता है । अनेक जन्मोंके , युग – युगान्तरके जितने पुराने पाप पड़े हुए हैं , वे सब तो हैं पुराना घास । उसपर ‘ राम ‘ नाम रूपी देदीप्यमान अग्नि रख दी जाय तो बेचारे सब पाप नष्ट हो जाते हैं । नामको अगर हृदयमें धारण कर लिया जाय तो अज्ञान सदाके लिये नष्ट हो जाता है । मानो सब जगह प्रकाश हो जाता है ।
सन्तोंकी वाणीमें पढ़ा है कि पापका नाश करनेके लिये नाम महाराजका प्रयोग नहीं करना चाहिये । नाम महाराजसे पापोंके नाशकी कामना नहीं करनी चाहिये , क्योंकि सूर्य भगवान् आ जायँ तो उनसे प्रार्थना नहीं करते कि महाराज ! आप हमारे यहाँ अन्धकारका नाश कर दो , अन्धकारको हटा दो , प्रकाश कर दो , उनसे ऐसे क्या कहना ! सूर्योदयकी तैयारी होते ही अन्धकार बेचारा आप – से – आप भाग जाता है । उदय होनेसे पहले ही वह भाग जाता है । ऐसे नाम महाराजके आनेकी तैयारी हो जाए हृदय में तो पाप भाग जाते हैं।
‘सघ्धो हृघ्धवरुध्यतेऽश्र कृतिभि शुश्रूषुभिस्तत्क्षणात् ‘
जहां भगवान की कथा सुनने का मन किया नाम जप करें भजन करें ऐसी इच्छा हुई कि भगवान् उसके हृदयमें आकर विराजमान हो जाते हैं । ‘ राम ‘ नाम महाराजकी तरफका विचार हो गया तो उसके आभासमात्रसे पाप नष्ट हो जाते हैं । पापोंमें ताकत नहीं है ठहरनेकी ।
पाप वास्तवमें क्या है ? शास्त्रनिषिद्ध आचरण । जिनका शास्त्रोंने निषेध किया कि ‘ ऐसा मत करो ‘ उसका करना ही पाप है । पाप कोई बलवान् वस्तु नहीं है , यह तो निकृष्ट है । जो निकृष्ट होता है , वह बलवान् भी हो तो उसमें ताकत नहीं होती । जैसे , बड़े – बड़े बलवान् चोर मकानपर चढ़ जाते हैं , भीतर आना चाहते हैं , पर घरमें उसी समय एक बालक रोने लगे , तो वे भाग जाते हैं ; क्योंकि उनका हृदय कच्चा होता है । पापी – अन्यायी होनेसे उनमें ताकत नहीं होती । वे भाग जाते हैं बच्चेके रोनेकी आवाजमात्रसे । बेचारे पापमें शक्ति नहीं है । मनुष्यने ही इसको आदर देकर पकड़ रखा है । पाप तो बेचारे भागते हैं । जहाँ सत्संग हो जाय , वहाँ पाप कैसे टिक सकता है ! पर मनुष्य उसको पकड़ – पकड़कर रखता है ।
पापोंको मनुष्य क्यों रखता है ? इनका आदर क्यों करता है ? क्या पाप सुखदायी हैं ? एक तो इसके भावना यह है कि पाप नष्ट नहीं होंगे । हमारे पाप ऐसे जल्दी नष्ट नहीं होंगे । आप जब संकल्प रखोगे कि ये नष्ट नहीं होंगे तो वे कैसे नष्ट होंगे ? अर्जुनने पूछा कि मनुष्य न चाहता हुआ पाप क्यों करता है ? तो भगवान्ने उत्तर दिया ‘ काम एष क्रोध एष ‘ काम ही क्रोध है और पाप होनेमें कारण कामना है । इनको पकड़कर रखेंगे तो पाप रहेंगे ही ; क्योंकि पापके बापको पकड लिया आपने । अब बेटा पैदा होगा ही पाप किस से होते हैं पाप सब होते हैं कामना से भोग भोगने की और पदार्थों के संग्रह की इच्छा से यह इच्छा है पाप का बाप।