रूप बिसेष नाम बिनु जानें ।
।। श्रीहरि:।।
रूप बिसेष नाम बिनु जानें । करतल गत न परहिं पहिचानें ॥
समिरिअ नाम रूप बिनु देखें । आवत हृदयँ सनेह बिसेषे ।।
गोस्वामीजी महाराज आगे कहते हैं कि कोई भी वस्तु हथेलीपर रखी होनेपर भी पहचानने में नहीं आती , जबतक उसका नाम न जान लिया जाय और रूपके बिना देखे ही नामका स्मरण किया जाय तो रूपके प्रति हृदयमें विशेष प्रेम आ जाता है ।
बिना नामके जाने अनजान वस्तुको हाथमें ले भी लें तो उसका पता नहीं लगता । नामके जाने बिना वस्तुकी पहचान नहीं होती । ऐसे इन दोनोंमें ( रूप और नाममें ) अन्वय – व्यतिरेकसे पता लगेगा कि बड़ा -छोटा कौन है । ‘ सुमिरिअ नाम रूप बिनु देखें रूप देखे बिना ही केवल नामका स्मरण किया जाय तो भी हृदयमें भगवान् आ जायेंगे इस प्रकार नाम लेनेसे रूप महाराज तो पधार ही जायेंगे , पर नाम महाराज बिना रूप महाराजके सामने रहते हुए भी उनकी पहचान नहीं होगी । ‘ आवत हृदय सनेह बिसेषे विशेष स्नेहके साथ नामका स्मरण करनेसे हृदयमें भगवान् आ जाते हैं ।
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना ।
प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना ॥ ।
जैसे पत्थर रगड़नेसे अग्नि प्रकट हो जाती है , ऐसे ही हृदयके भावसे स्नेहसे नाम लिया जाय तो भगवान्हदयमें ही नहीं , बाहर – भीतर सब जगह, प्रकट हो जाते हैं । तुलसीदासजी महाराज आगे बताते हैं
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरी द्वार ।।
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ॥
‘ राम ‘ नाम मणिदीप है । एक दीपक होता है और एक मणिदीप होता है । तेलका दीया दीपक कहलाता है । मणि स्वतः प्रकाश करनेवाली होती है । जो मणिदीप होता है , वह कभी बुझता नहीं । ‘ राम ‘ नाम क्या है ? तो कहते हैं , यह मणिदीप है । इसे कहाँ रखें ? जीभके ऊपर । वहाँ क्यों ? तो कहते हैं , जैसे दीपकको मकानके दरवाजेके बाहर रख दें , तो भीतर अँधेरा रह जाय और भीतर रख दें , तो बाहर अँधेरा रह जाय । तो क्या किया जाय ? दरवाजेकी देहलीपर रख दो । वहाँपर रखनेसे दोनों जगह प्रकाश हो जाता है । परमात्म – बोध हो जाता है और बाहर भगवान्के दर्शन हो जाते हैं । हवासे यह मणिदीप नहीं बुझता । हवा कितनी ही जोरसे चले ! शरीरकी देहली क्या है ? जीभ है । एक कविने कहा है ‘
भारतिजुक्तभली विधिभासत देहकेगेहके द्वार थली तूँ । इसजीभको कहा ‘ तेरेमें सरस्वती निवास करती है । ‘ ‘
देहके गेहके द्वार थलीतूं । ‘ ‘ पै जगदीस जपे बिनु सालग नाहक नागनसी निकली तूं ‘ जैसे बिलमें कोई नागिन हो – सर्पिणीकी ज्यों मुखमें बैठी है , पर ‘ ना उथली हरि नामको लेन न क्यों रसना बिजली ते जली तूं भगवान्का नाम लेनेके लिये उथली नहीं तो तू बिजलीसे क्यों नहीं जल गयी ? ‘ रामगुणावली गाये बिना गुणहीन गँवारन क्यों न गली तूँ। हे गँवारन जीभ ! यदि तूने राम गुण नहीं गाया , तो तूं गली क्यों नहीं ? अब नामको साक्षी बनाते हुए कहते हैं
नाम रूप गति अकथ कहानी । समुझत सुखद न परति बखानी ॥
अगुन सगुन बिच नाम सुसाखी । उभय प्रबोधक चतुर दुभाषी ॥
नाम और रूपकी गतिकी कहानी अकथनीय है । वह समझनेमें सुखदायक है ; परंतु उसका वर्णन नहीं किया जा सकता । निर्गुण और सगुणके बीचमें ‘ राम ‘ नाम सुन्दर साक्षी है और यह दोनोंका यथार्थ ज्ञान करानेवाला चतुर दुभाषिया है । यह नाम महाराज सगुण और निर्गुण दोनोंसे श्रेष्ठ चतुर दुभाषिया है ।