राम और नामीकी महिमा आध्यात्मिक ज्ञान।

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राम और नामीकी महिमा ।

 समुझत सरिस नाम अरु नामी । 

 प्रीति परसपर प्रभु अनुगामी ॥  


 समझनेमें नाम और नामी — दोनों एक – से हैं ; परंतु दोनोंमें परस्पर स्वामी और सेवकके समान प्रीति है अर्थात् नाम और नामीमें पूर्ण एकता होनेपर भी जैसे स्वामीके पीछे सेवक चलता है , उसी प्रकार नामके पीछे नामी चलता है । भगवान् अपने नामका अनुगमन करते हैं अर्थात् नाम लेते ही वहाँ जाते हैं । नाम और नामी – दो चीज हैं ।
दीखने में दोनों बराबर दीखते हैं जैसे मनुष्योंमें उनके नाम और खुद नामीमें परस्पर प्रीति रहती है , ऐसे ‘ राम ‘ — यह हुआ नाम और भगवान् रघुनाथजी महाराज हो गये ।
  नामी । नाम लेनेसे श्रीरघुनाथजी महाराजका बोध होता है । दोनोंमें भेद न होनेपर भी एक फर्क है । वह क्या है ? ‘ प्रभु अनुगामी ‘ महाराजके पीछे – पीछे राम महाराज चलते हैं । दोनों एक होनेपर भी भगवान्का नाम भगवान्से आगे चलता है । रघुनाथजी महाराज अपने नामके पीछे चलते हैं । यह कैसे ? भगवान्का नाम लेनेसे वहाँ भगवान् आ जाते हैं , और भगवान्को आना ही पड़ता है , पर जहाँ भगवान् जायँ , वहाँ उनका नाम आ जाय – यह कोई नियम नहीं है । नामके बिना भगवान्को जान नहीं सकते । इसलिये नाम आँख मीचकर लेते जाओ । वहाँ रघुनाथजी महाराज आ जायेंगे । प्रेमसे पुकारकी जाय तो भगवान् उसके आचरणोंकी ओर देखते ही नहीं और बिना बुलाये ही आ जाते हैं । सुतीक्ष्ण मुनिको भगवान् स्वयं जाकर जगाते हैं । नामके प्रेमीके पीछे रघुनाथजी महाराज चलते हैं । ‘ अनुव्रजाम्यहं नित्यं पूययेत्यज्रिरेणुभिः ‘ जिनके हृदयमें भोगोंकी , पदार्थोंकी लौकिक कोई भी इच्छा नहीं , मेरी मुक्ति हो जाय , मैं बंधनसे छूट जाऊँ , ऐसी भी मनमें इच्छा नहीं रहे — ऐसे निष्किञ्चन भक्त भगवान्के भजनमें रात – दिन लगे रहते हैं । उनके पीछे – पीछे भगवान् घूमते हैं— भगवान् कहते हैं , उनके पीछे – पीछे मैं डोलता हूँ , जिससे मैं पवित्र हो जाऊँ । भगवान् भी अपवित्र होते हैं क्या ? ‘ पवित्राणां पवित्रं यो मङ्गलानां च मङ्गलम्’- भगवान् पवित्रोंके पवित्र हैं । वे भी नामसे पवित्र हो जायें । नामसे दुनिया पवित्र होती है । करोड़ों ब्रह्माण्ड भगवान्के एक – एक रोममें रहते हैं , जहाँ भगवान्के भक्तकी चरणरज पड़ जाय तो ब्रह्माण्ड पवित्र हो जाय । जो कोई पवित्र होता है , उसके रूपमें भगवान् ही पवित्र होते हैं । ‘

 वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः ॥ ‘ 

 भगवान में और भगवान के प्यारे भक्तमें भेद नहीं होता । वे प्रभुके  हो गये , इसलिये भक्त प्रभुमय हो जाते हैं ।

य: सेवते मामगुणं गुणात्परं 

हदा कदा वा यदि वा गुणात्मकम् । 

सोऽहं स्वपादाञ्चितरेणुभिः स्पृशन् 

पुनाति लोकत्रितयं  यथा रविः ।। 


 अध्यात्म – रामायणके उत्तरकाण्डमें पाँचवाँ सर्ग है , जिसमें रामगीता आती है । रामजीने लक्ष्मणजीको वहाँ उपदेश दिया है । वहाँ वे कहते हैं – शुद्ध सच्चिदानन्द निर्गुण परमात्माका कोई ध्यान करे चाहे सगुणका , वह मेरा ही स्वरूप है । वह जहाँ जाता है , वहाँ उसके चरणोंके स्पर्शकी रजसे त्रिलोकी पवित्र हो जाती है । जहाँ वह जाता है , वहाँ प्रकाश कर देता है । जैसे , सूर्य भगवान् जिस देशमें जाते हैं , वहाँ प्रकाश कर देते हैं । वे प्रकाश करते हैं बाहरका , जब कि संत – महात्मा उनके हृदयमें प्रकाश कर देते हैं ; क्योंकि संत – महात्माओंके हृदयमें ठाकुरजी विराजमान रहते हैं , और जो हरदम भगवान्का ही भजन , ध्यान , चिन्तन करते रहते हैं , वे वन्दनीय होते हैं । उनके यही व्यापार है , यही काम – धन्धा है और न कोई उनके काम है , न धन्धा है , न देना है , न लेना है । रात – दिन भगवान्में मस्त रहते हैं । ऐसे वे प्रभुके प्यारे भक्त होते हैं , जो दूसरोंको भी पवित्र कर देते हैं । ऐसे उन भगवान्का नाम ‘ राम ‘ है और वे स्वयं नामी कहलाते हैं । दशरथके घर अवतार लेनेवाले भगवान्का नाम भी ‘ राम ‘ है और ‘

 
 रमन्ते योगिनोऽनन्ते सत्यानन्दे चिदात्मनीति रामपदेनासौ परब्रह्माभिधीयते ‘ -जो निर्गुण – निराकार रूपसे सब जगह रम रहा है , उस परमात्माका नाम भी ‘ राम ‘ है । ‘ राम ‘ नाम सगुण और निर्गुण दोनोंका है । यह वर्णन आगे आयेगा । यहाँ तो सामान्य रीतिसे नाम
और नामीकी बात गोस्वामीजी महाराज कहते हैं । भगवान्के नाममें रात – दिन लग जाय तो रघुनाथजी महाराजको आना पड़ता है । जैसे , बच्चा अपनी माँको पुकारे तो उसकी माँ बैठी नहीं रह सकती । उसको भागकर बच्चेको गोदमें लेना पड़ता है ।

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