वास्तवमें छत्रपति कौन ? आध्यात्मिक ज्ञान।

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वास्तवमें छत्रपति कौन ? 

 एकु छत्रु एकु मुकुटमनि सब बरननि पर जोउ । 
 तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ ।। 

 तुलसीदासजी महाराज कहते हैं – श्रीरामजी महाराजके नामके ये दोनों अक्षर बड़ी शोभा देते हैं । इनमेंसे एक ‘ र ‘ छत्ररूपसे और दूसरा ‘ म ‘ ( अनुस्वार ) मुकुटमणिरूपसे सब अक्षरोंके ऊपर है । राजाके दो खास चिह्न होते हैं — एक छत्र और एक मणि । ‘ मणि ‘ मुकुटके ऊपर रहती है और ‘ छत्र ‘ सिंहासनपर रहता है । राजाका खास शृंगार ‘ मणि ‘ होता है । वर्षा और धूपसे बचनेके लिये छाता सब लोग लगाते हैं , पर राजाका छत्र वर्षा और धूपसे बचनेके लिये नहीं होता । उससे उनकी शोभा है और ‘ छत्र’के कारण वे छत्रपति  कहलाते हैं । महाराजा रघुने ‘ विश्वजित् याग ‘ किया । उन्होंने अपने पास तीन चीजें ही रखीं – एक छत्र और दो चँवर । और सब कुछ दे दिया , अपने पास कुछ भी नहीं रखा । संसारमात्रपर विजय करना ‘ विश्वजित् याग ‘ कहलाता है । संसारपर जीत कब होती है ? सर्वस्व त्याग करनेसे । संसारमें ऐसा देखा जाता है कि दूसरोंपर दबाव डालकर अपना राज्य बढ़ा लेनेवाला विजयी कहलाता है , पर वास्तवमें वह विजयी नहीं है । गीताने कहा है
 इहैव तैर्जितः सर्गो येषां साम्ये स्थितं मनः । 
 निर्दोषं हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिताः । 

 यहाँ जीवित अवस्थामें ही इस संसारपर वे लोग विजयी हो गये , जिनका मन साम्यावस्थामें स्थित हो गया । मानो हानि – लाभ हो , सुख – दुःख हो , अनुकूलता हो या प्रतिकूलता हो , पर जिनके चित्तपर कोई असर नहीं पड़ता , वे ज्यों – के – त्यों सम , शान्त , निर्विकार रहते हैं— ऐसे लोग ही वास्तवमें संसारपर विजयी होते हैं । भाइयो ! बहनो ! आप ख्याल करना । इस बातकी तरफ ख्याल बहुत कम मनुष्योंका जाता है । लोग ऐसा समझते हैं कि हम बहुत ज्यादा पढ़े – लिखे हैं । हमारे व्याख्यानमें बहुत आदमी आनेसे हम बड़े हो गये । इसमें थोड़ी सोचनेकी बात है , वे बड़े हुए कि हम बड़े हुए अगर आदमी कम आवे तो हम छोटे हो गये । आदमी ज्यादा आवें या कम आवें , हममें योग्यता हो या अयोग्यता , धन आ जाय या चला जाय , हमारी निन्दा हो जाय या स्तुति हो जाय -इनका हमारेपर कुछ भी असर न पड़े , तब हम बड़े हुए । नहीं तो हम बड़े कैसे हुए ! वास्तवमें छत्रपति कौन होता है ? ‘ राम ‘ नाम लेनेवाला छत्रपति होता है । भगवान्के नामके जो रसिक होते हैं , उनके पास धन आवे न आवे , मान हो जाय , अपमान हो जाय ; उनको नरक हो जाय , स्वर्ग हो जाय , उनके कोई फर्क नहीं पड़ता । नाम महाराजका जिसके सहारा है ; वही वास्तवमें छत्रपति है । उसकी हार कभी होती ही नहीं । वह सब जगह ही विजयी है ; क्योंकि नाम लेनेवालेका स्वयं भगवान् आदर करते हैं और उसे महत्त्व देते हैं ‘ मैं तो हूँ भगतनको दास , भगत मेरे मुकुट मणि ‘ दुनियामें आप किसीके अधीन बनो तो वह आपको अपना गुलाम बना लेगा और आप बड़ा बन जायगा । पर आप भगवान्के दास बन जाओ तो भगवान् आपको अपनेसे  । बड़ा मानेंगे – ऐसी क्षमता भगवान्में ही है और किसीमें नहीं है । भगवान्का नाम भगवान्से भी बड़ा बना देता है । भगवन्नाम भगवानसे भी बड़ा है । पाण्डवगीतामें आया है — भगवान् शरण होनेपर मुक्ति देते हैं पर भगवान्का नाम ऐसा है , जो उच्चारणमात्रसे मुक्ति दे देता है । इसलिये भगवान्का नाम बड़ा हुआ । इसका आश्रय लेनेवाला भी बड़ा हो जाता है , जैसे छत्रका आश्रय लेनेवाला छत्रपति हो जाता है आजकल लोग धनसे धनपति , लखपति , करोड़पति कहलाते हैं — यह वहम ही है । यदि लाख रुपये चले जायँ तो मुश्किल हो जाय । अचानक घाटा लग जाय तो हार्टफेल हो जाय । वह धनपति कैसे हुआ ? वह तो धनदास ही हुआ , धन उसका मालिक हुआ । धन महाराज चले गये , अब बेचारा दास कैसे बचे ? वास्तवमें वह धनपति नहीं है । वह यदि मर जाय तो कौड़ी एक भी साथ नहीं चले । साथमें चलनेवाला धन जिसके पास होता है , वह कभी भी छोटा नहीं होता । ऐसा ‘ राम ‘ नामरूपी धन जिसके पास है , वही असली धनपति है । संसारमें किसी वर्ण , आश्रम , विद्या , योग्यता , धन , बुद्धि , राज्य , पद , मान , आदर , सत्कार आदिमें कोई छोटा भी हो सकता है ; परंतु वह यदि भगवान्का भजन करता है तो छोटा नहीं है ; क्योंकि उसके मनमें संसारकी गुलामी नहीं रहती है । ऐसी जो सबसे बड़ी चीज है , वह सबको मुफ्तमें सुगमतासे मिल सकती है

जाट भजो गूजर भजो , भावे भजो अहीर । 
 तुलसी रघुबर नाममें , सब काहू का सीर ।।

 भगवान्के नामपर सबका हक लगता है । हजारों आदमी भगवान्के नामका जप करें तो एकको हजारवाँ हिस्सा भगवान्का मिलेगा — यह बात नहीं है । सब – के – सब पूरे हकदार हैं । चाहे लाखों , करोड़ों , अरबों आदमी भजन करनेवाले हों , एक – एक आदमीको पूरा।  माहात्म्य मिलेगा । ऐसे नहीं कि एक – एकको हिस्सेवार माहात्म्य मिलेगा । सब – के – सब पूर्ण हो सकते हैं , क्योंकि भगवान्का नाम , उनकी महिमा , तत्त्व , प्रभाव , रहस्य , लीला आदि सब पूर्ण – ही – पूर्ण हैं । सज्जनो ! ऐसे भगवानके नामको छोड़कर धनके पीछे आप लोग पड़े हैं । भोगोंके मान – बड़ाईके और आरामके पीछे पड़े हैं । न ये चीजें रहनेवाली हैं , न आराम और भोग रहनेवाले हैं , न मान – बड़ाई रहनेवाली है , न वैभव रहनेवाला है । ये सब जानेवाले हैं और आप रहनेवाले हो । फिर भी जानेवालेके गुलाम बन गये । बड़े दुःखकी बात है , पर करें क्या ? भीतरमें यह बात अँची हुई है कि इनसे ही हमारी इज्जत है । इनसे आपकी खुदकी बेइज्जती है , पर इधर दृष्टि ही नहीं जाती । मनुष्य यह ख्याल ही नहीं करता कि इसमें इज्जत किसकी है ! सब लोग ‘ वाह – वाह ‘ करें — इसमें आप अपनी इज्जत मानते हैं और कोई आदर नहीं करे , उसमें आप अपनी बेइज्जती मानते हैं , यह अपनी खुदकी इज्जत नहीं है । आप पराधीन होनेको इज्जत मानते हो ।

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