भरतका उतराधिकारी मत्स्य पुत्री सत्यवती।
भरत का उतराधिकारी।
बड़ा होने पर भरत महान राजा बना । उसकी तीन पत्नियां थीं । उसकी पत्नियां जब भी उससे पुन पैदा करती तो वह कहता , ‘ यह मेरे समान नहीं दिखता , ‘ अथवा ‘ यह मेरे समान व्यवहार नहीं करता , जिससे यह प्रतिध्वनित होता है कि उसकी पत्नियां उसके प्रति बेवफा थीं अथवा बच्चे बेकार था इससे डरकर भरत की पत्नियों ने इन बच्चों को त्याग दिया ।
अंततः ऐसा समय आया जब भरत बूढ़ा हो गया मगर उसका कोई आराधिकारी नहीं था । इसलिए उसने पुष्णा यज्ञ किया । यज्ञ की समाप्ति पर देवों ने उसे वितथ नामक पुत्र प्रदान किया । वितश दरअसल बृहस्पति की भाभी और उतथ्य की पत्नी ममता की कोख से पैदा हुआ था । ममता के गर्भ में वह तब गर्भस्थ हुआ था जब बृहस्पति ने अपने स्वभाव के विपरीत कामातुर होकर ममता से भोग किया था ।
बृहस्पति और ममता दोनों ने ही इस बच्चे को त्याग दिया था । बृहस्पति द्वारा बच्चे को त्यागे जाने का कारण यह था कि वह उन्हें उनकी कमजोरी का भान कराता था और ममता ने उसे इसलिए त्यागा कि वह बच्चा उस पर थोपा गया था । इस प्रकार वितश भी शकुंतला की तरह अपने माता – पिता द्वारा परित्यक्त शिशु था । उसे देवों ने स्वीकार करके भरत को सौंप दिया था ।
बड़ा होने पर वितश भी अत्यंत प्रतापी राजा बना और गोद आने के बावजूद भरत ने उसकी क्षमताएं देखकर उसका राज्याभिषेक करके राजा बनाया । भरत के लिए राजा बनने का मापदंड रक्त संबंध के बजाए उसका सक्षम या उसका उस लायक होना था ।
इसी कारण भरत , प्रजा की निगाहों में सबसे महान राजा बन गया । जंबू द्वीप का नाम भारतवर्ष अथवा भारत पड़ने के पीछे शायद यह भी बड़ा कारण रहा होगा अर्थात ऐसा देश जिसका राजा कभी भरत हुआ था । बाद के राजाओं ने भरत के इन आदर्शों का पालन नहीं किया । धृतराष्ट्र ने अपने भतीजे युधिष्ठिर के अधिक योग्य होने के बावजूद अपने पुत्र दुर्योधन को राजपाट सौंपा ।
मत्स्य पुत्री सत्यवती।
सामान्य मछुआरन नहीं थी । उसके पिता उपरिवर नामक राजा थे जिन्होंने आखेट के दौरान किसी वृक्ष के नीचे आराम करते समय अपनी पत्नी का ध्यान किया और स्खलित हो गए । यह सोचकर कि उनका वीर्य बेकार न जाए , उसे उन्होंने पते में लपेटकर तोते को इस अनुरोध के साथ सौंप दिया कि वह उसे , उनकी पत्नी के पास ले जाए ताकि वह उससे गर्भवती होकर संतान पैदा कर सके ।
तोता जब उस पते को मुंह में दबाए उड़ रहा था तो उस पर वील ने हमला किया और वीर्य बंधी पो की पुड़िया नीचे बहती नदी में गिर गई जिसे उसमें तैर रही माली ने खा लिया । यह मछली पहले गिरिका नामक अप्सरा रही थी और ब्रह्मा के शाप से तब तक के लिए मछली बन गई थी जब तक वह मनुष्य रूपी बच्चे को जन्म नहीं दे देती । कुछ दिनों के बाद कुछ मआरों ने इस मछली को पकड़ लिया और उसके पेट में उन्हें जुड़यां बव्वे मिले : एक बालक तथा एक बालिका |
उन्होंने जुड़वा बालकों को ले जाकर उपरिवर को सौंप दिया जिसने बालक को तो स्वीकार कर लिया लेकिन बालिका को लालन – पालन के लिए मछुआरों को वापस दे दिया । मछुआरों के मुखिया ने बालिका को गोद लेकर अपनी सगी बेटी की तरह उसका लालन – पालन किया । उसका नाम तो सत्यवती था लेकिन उसके शरीर से आने वाली मछली की भीषण दुर्गध के कारण उसे मत्स्यगंधा कहकर चिढ़ाया जाने लगा । मत्स्यगंधा लोगों को नाव में नदी पार कराती थी । एक दिन वह पराशर ऋषि को भी नदी पार करा रही थी । अचानक नदी के बीचों – बीच नदी द्वीप के पास झापि ने मत्स्यगंधा से संभोग करके , उससे बच्चा पैदा करने की इच्छा का प्रस्ताव रखा ।
उसने कहा , ‘ यदि आपने ऐसा किया तो मुझसे कोई भी विवाह नहीं करेगा । ‘ ऋषि ने कहा , ‘ निश्चिंत रहो , ‘ और उन्होंने नाव के चारों तरफ घना कोहरा पैदा कर दिया और अपनी बात पूरी की , ‘ अपने तप की शक्ति से मैं ऐसी परिस्थिति बना दूंगा कि तुम तत्काल शिशु प्रसूत करके फिर से कुआंरी बन जागोगी ।
और तुम्हारे शरीर से मछली की दुर्गंध आनी भी हमेशा के लिए बंद हो जाएगी । तुम्हारे शरीर से ऐसी सुगंध फैलेगी कि पुरुष तुम्हारी ओर खिंवे चले आएंगे । ‘ नदी पार दूसरे छोर पर पहुंचने तक मत्स्यगंधा प्रेमिका और फिर माता तथा कुंवारी और अंतत : सुगंधित स्त्री बन चुकी थी । इस संसर्ग से पैदा हुए शिशु का लालन – पालन पराशर ऋषि ने किया । उसका नाम पड़ा कृष्ण द्वैपायन अर्थात नदी द्वीप पर प्रसूत कृष्णवर्णी बत्वा । कालांतर में वे व्यास के रूप में प्रसिद्ध हुए जिन्होंने पवित्र शास्त्रों की रचना की थी । मत्स्यगंधा के नए सुगंधित व्यक्तित्व ने शांतनु को उसकी ओर आकर्षित किया और उसे हस्तिनापुर की महारानी बनवा दिया ।