महाभीष , शांतनु बने आध्यात्मिक ज्ञान।
महाभीष , शांतनु बने ।
अपने जीवन काल में पुण्य कमाने के कारण महाभीष नामक राजा को स्वर्ग में प्रवेश की अनुमति मिली । वहां देवताओं की संगति में उसने अप्सराओं के नृत्य और गंधर्वो के संगीत का भरपूर आनंद उठाया । उसे सुरा भी खूब पीने को मिली । उसे कल्पतरु , कामधेनु तथा चिंतामणि तक भी पहुंचने दिया गया जबकि इनमें से हरेक के पास किसी भी कामना अथवा इच्छा को पूर्ण करने की शक्ति थी ।
एक दिन इंद्र की सभा में जलपरी गंगा आई । वहीं पर हवा के एक झोंके से उसका उतरीय गिर गया और उसकी छातियां दिखने लगीं । वहां बैठे देवताओं ने उसके प्रति सम्मान जताते हुए अपनी नजरें झुका लीं । लेकिन महाभीष तो गंगा के यौवन पर मोहित होकर उसे बेशर्मी से घूरता रहा । मोह के इस भौंडे प्रदर्शन से इंद्र इतने कुपित हुए कि उन्होंने महाभीष को धरती पर लौट जाने का शाप दे दिया ।
महाभीष की कुदृष्टि का आनंद उठाने वाली गंगा को भी इंद्र ने अमरावती से निकल जाने तथा महाभीष का दिल तोड़ने के बाद ही वापस लौट कर आने का आदेश दिया । महाभीष का हस्तिनापुरी नगरी में प्रतीप के पुत्र शांतनु के रूप में पुनर्जन्म हुआ । पुरु के वंशज प्रतीप ने अपने बच्चों के राजपाट संभालने लायक होने का भान होते ही संसार को त्याग दिया ।
परंपरानुसार राजसिंहासन पर उसके ज्येष्ठ पुत्र देवापि को बैठना चाहिए था लेकिन देवापि को त्वचा रोग था और नियमानुसार शारीरिक कमी वाला कोई भी व्यक्ति राजा नहीं बन सकता । इसलिए उससे छोटे पुत्र शांतनु को राजपाट मिल गया । देवापि ने शांतनु की छत्रछाया को त्यागकर संन्यासी बनने का निश्चय किया । एक दिन प्रतीप , नदी किनारे ध्यान लगाए बैठे थे तभी गंगा आई और उनकी गोद में दाहिनी ओर बैठ गई । ‘ रूपवती स्त्री , तुम मेरी गोद में दाहिनी ओर बैठ गई ।
यदि तुम मेरी गोद में बाई ओर बैठती तो उसका अर्थ तुम्हारे द्वारा मेरी पत्नी बनने की इच्छा जताना होता । अब चूंकि तुम मेरी गोद में दाई ओर बैठी हो इसका अर्थ है कि तुम मेरी पुत्री बनना चाहती हो । तुम्हारी क्या कामना गंगा ने कहा , ‘ मैं आपके पुत्र शांतनु से विवाह करना चाहती हूं । ‘ प्रतीप ने उत्तर दिया , ‘ ऐसा ही होगा । ‘ कुछ दिन बाद शांतनु जब नदी तट पर अपने पिता का हाल – चाल पूछने आया तो प्रतीप ने उससे कहा , ‘ गंगा नामक रूपवती स्त्री तुमसे कभी संपर्क करेगी और तुम्हारी पत्नी बनने का आग्रह करेगी । उसकी इच्छा पूरी कर देना । ऐसी मेरी कामना है । ‘
उसके कुछ ही समय बाद शांतनु ने गंगा को डॉल्फिन पर तैरते हुए देखा । वह एकदम से उसके प्रेम में डूब गया । उसने कहा , ‘ मेरी पत्नी बन जाओ । ‘ गंगा ने कहा , ‘ हां मैं बन जाऊंगी , लेकिन तुम कभी भी मेरी किसी भी गतिविधि पर आपत्ति नहीं करोगे । ‘ अभीप्सा और अपने पिता को दिए ववन से प्रेरित होकर शांतनु ने उसकी बात मान कर
गंगा ने शीघ्र ही शांतनु के पहले पुत्र को जन्म दिया । लेकिन गंगा ने खुशी का कोई भी अवसर दिए बिना शिशु के अपनी कोख से बाहर आते ही उसे नदी में ले जाकर डुबो दिया । उसकी , इस हरकत पर अत्यंत नाराज होने के बावजूद शांतनु ने उसे कुछ भी नहीं कहा । वो अपनी रूपवान पत्नी को खोना नहीं चाहता था ।
इसके एक साल बाद गंगा ने शांतनु के दूसरे पुत्र को जन्म दिया । उसने इस शिशु को भी डुबो दिया । इस बार भी शांतनु ने इस बारे में कोई विरोध प्रकट नहीं किया । गंगा ने इसी प्रकार सात शिशुओं को जन्म दिया और पानी में ले जाकर डुबो दिया | शांतनु ने एक बार भी मुंह नहीं खोला । लेकिन गंगा जब शांतनु के आठवें बच्चे को डुबोने वाली थी तो शांतनु ने सिसक कर कहा , ‘ ओ निर्दयी औरत रुक जाओ और इसे जीने दो । ‘ गंगा रुककर मुस्कुराई ।
उसने कहा , ‘ पतिदेव आपने अपना ववन तोड़ दिया । इसलिए , अब मेरे द्वारा आपके परित्याग का समय आ गया जैसे कभी उर्वशी ने पुरुरवा को छोड़ा था | जिन बच्चों की मैंने हत्या की है वे वसु नामक आठ देवताओं में से सात थे जिन्हें वशिष्ठ की गाय चुराने पर मनुष्य की योनि में जन्म लेने का शाप मिला हुआ था । उनके अनुरोध पर मैंने उनकी माता बनना स्वीकार किया और भूमि पर होने वाले कष्टों से बचाने के लिए मैंने पृथ्वी पर उनको कम से कम समय रहने दिया ।
लेकिन दुर्भाग्य से मैं अंतिम शिशु को नहीं बवा पाई । शांतनु तुमने जिस आठवें वसु को बवाया है वो जीएगा तो जरूर मगर उसका जीवन अत्यंत कष्टप्रद रहेगा । पुरुष होने के बावजूद वह न तो विवाह कर पाएगा और न ही तुम्हारे राजसिंहासन का उत्तराधिकारी बनेगा । उसका , अपना कोई परिवार नहीं होगा मगर उसके बावजूद उसे गृहस्थ की तरह रहना पड़ेगा । और अंततः ऐसे पुरुष के हाथों वह शर्मनाक मौत मरेगा जो वास्तव में स्त्री होगा । ‘ शांतनु ने विभ्रम में कहा , ‘ ऐसा बिल्कुल नहीं होगा । मैं ऐसा होने ही नहीं दूंगा । ‘
‘ मैं तुम्हारे पुत्र को ले जाऊंगी और उसका लालन – पालन प्रशिक्षित योद्धा के रूप में करूंगी । उसकी शिक्षा – दीक्षा योद्धा ऋषि परशुराम से करवाऊंगी । जब वह विवाह योग्य और राजा बनने लायक हो जाएगा तो मैं उसे तुम्हारे पास भेज दूंगी । ‘ तब देखेंगे । ‘ कहकर गंगा , शांतनु को एकदम अकेला छोड़कर , अपने पुत्र के साथ गायब हो गई।