माधवी की क्षमाशीलता आध्यात्मिक ज्ञान
माधवी की क्षमाशीलता ।
ययाति की एक पुत्री थी , जिसका नाम माधवी था और जिसके भाग्य में चार राजाओं की मां होना निर्धारित था । एक दिन ययाति के यहां गालव ऋषि आए और उन्होंने एक काले कान वाले 800 श्वेत अश्यों की मांग कर दी । वे यह अत अपने गुरु विश्वामित्र को अर्पित करना चाहते थे । ययाति के पास ऐसे घोड़े नहीं था ऋषि को खाली हाथ लौटाने से बचने के लिए उसने अपनी पत्री माधवी को ऋषि को सौंपने का आग्रह किया ययाति ने कहा , ‘ इसे , उन चार लोगों को सौंप दीजिएगा जो राजा के पिता बनना चाहते हों और उनमें से हरेक से 200-200 ऐसे घोड़े बदले में तेलीजिएगा । ‘ मालत ने उसके कहे अनुसार विभिन्न राजाओं से माधवी का हाथ उन्हें सौंपने का प्रस्ताव किया तीन राजाओं ने उनकी बात मान ली : उन्हें माधवी से पुत्र की प्राप्ति हुई और मालत को छह सौं घोड़े मिल गए ।
अंततः वे अपने गुरु के पास गए और बोले , ‘ आप जो 800 घोड़े चाहते थे उनमें से 600 में से आया है । आप इस महिता ययाति की पुत्री माधवी से पुत्र प्राप्त कर सकते हैं और वह बाकी के 200 बोड़ों के बराबर होगा । विश्वामित्र ने घोड़ों और मायवी को स्वीकार किया तथा उससे पुत्र प्राप्त किया । मालव इस प्रकार मुरु दक्षिणा से उऋण वार पुत्र पैदा करने के बाद माधवी अपने पिता के पास लौट आई । उसले माधवी से कहा कि वह उसकी शादी कर देगा लेकिन उसने संन्यास अक्षण करने का निर्णय किया । पुरु को राजपाट सौंपने के बाद ययाति इस संसार को त्यामकर स्वर्मारोहण कर गए । स्वर्ग का आनंद भी वह बहुत छोटी सी अवधि के लिए ते पाए और देवताओं ने उन्हें , वहा से बाहर निकाल दिया ययाति ने जब इसका कारण पूछा तो देवताओं ने कहा , ‘ ऐसा , इसलिए हुआ ययाति कि तुम्हारे सारे पुण्य तुक भाए हैं । ययाति जगत में धरती पर आ गिरा जहां उसकी बेटी मारती तपस्या कर रही थी । अपने पिता के लिए दुःखी होते हुए वह अपने चारों पुत्र के पास गई जो अब महिमामय राजा बन चुके थे और उसने , उनसे अपने पुण्यों का एक चौथाई भान अपने नाना को देने का आग्रह किया । पुत्रं ने शुरू में तो इससे इन्कार कर दिया ‘ आप , हमसे ऐसे व्यक्ति को हमारे पुण्टा देने का आग्रह कैसे कर सकती है जिसने , आपको वस्तु समझकर विभिन्न राजाओं के पास भेजा ताकि इस व्यापार से वह लाभान्वित हो सका ‘ और माधवी ने आर दिया , क्योंकि वह मेरे पिता है और तुम मेरे पुत्र हो , उन्होंने जो कुछ भी किया उसे बदता तो नहीं जा सकता ।
और क्योंकि मुझे क्रोध की निरर्थकता का भान है और मैं क्षमाशीलता की शक्ति से परिचित हूं ‘ अपनी माता के शब्दों से आने खुलने पर मारावी के चारों पुत्रे ने अपनी मां का आगाह मान लिया । उन्होंने , अपने पुण्यों में से कुछ भाग अपने जाना को दे दिया । पुण्य समेटकर ययाति ने अपनी पुत्री का धन्यवाद किया और देवताओं के स्वर्ग में लौट गए । इसके बावजूद समय बीतने के साथ – साथ माधवी की क्षमाशीलता को तोम भूत मार और पांडवों तथा कौरवों में से किसी ने भी क्षमाशीलता का महत्व नहीं पहवाजा जिसकी अंततः कुरुवंश को भारी कीमत चुकानी पड़ी ।