जाको राखे साँइया एक रोचक आध्यात्मिक कहानी।

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जाको राखे साँइया एक रोचक आध्यात्मिक कहानी।

जाको राखे साँइया 

मई , २००४ की घटना है । मेरा डेढ़ वर्षका पौत्र केशव बहुत चञ्चल है । स्कूलकी छुट्टियाँ चल रही थीं , इसलिये घरमें बच्चोंका जमघट – सा लगा रहता था , अतः और वह भी उन दिनों कुछ ज्यादा ही शरारती हो गया था पुत्र हाथमें आयी वस्तुको फेंक देना , कुर्सियाँ पलट देना , स्टूल  लेकर भाग जाना , लानके नलको खोलकर नहाने बैठ जाना , कार उसके रोजमर्राके काम थे ।

उस दिन भी वह नल खोले हुए भींग रहा था । सर्दी गर्मी न लग जाय , इस डरसे उसके कपड़े खोल दिये गये । कोई वह नंगे एवं भीगे बदन ही कमरेमें दौड़ता आ गया , जहाँपर अन्य बच्चे कैरम खेल रहे थे । वह भी आते ही कैरम  खेलने बैठ गया । बच्चोंने जब नंगू – नंगू कहकर उसे चिढ़ाया  तो सीधे बगलके स्टोररूममें घुस गया ।

स्टोररूममें कबाड़के वे साथ – साथ सेनेटरी सफाई हेतु लाया गया तेजाब भी पड़ा ही था । खेलनेमें तल्लीन होनेसे बच्चोंका ध्यान उसकी तरफ पर गया नहीं , बड़ा बुजुर्ग वहाँ कोई था नहीं । मैं भी उस उसे कमरेसे विपरीतवाले कमरेमें , जहाँसे सब कुछ दिखायी पड़ रहा था , अपने रोजमर्राके कार्यमें व्यस्त था ।

तेजाबकी बोतल खोल ली और अपने पैरोंपर तेजाब गिरा  लिया । जब जलन हुई तो जोरोंसे चीखता हुआ बच्चोंके पै कमरेकी ओर भागा । सारे कमरेमें तेजाबकी महक और स धुआँ – सा भर गया । तेजाबकी महकके साथ केशवकी  चीख भी मुझे सुनायी दी । मैं तेजीसे उसकी ओर लपका ।

मैंने देखा कि स्टोरसे उस कमरेतक उसके गीले पैरोंके  निशान पड़े हुए थे , जिनपर तेजाबके कारण बुलबुले –  पैदा हो रहे थे । केशव और तेजीसे चीखता हुआ मेरी ओर लपका ।  मैंने स्वयंको बचाते हुए उसे हाथोंमें उठाया । परंतु बचाते – बचाते भी उसका एक पैर मेरे पायजामा पहने हुए घुटनेसे छू गया और उसका दूसरा पैर मेरी पसलीसे छू गया ,

मैंने जहाँ बनियान पहन रखी थी । उसे हाथोंमें टाँगे हुए ही मैं बाथरूमकी ओर भागा , नल खोलकर उसे पानीकी बालटीमें खड़ा किया । उसकी चीखें चालू थीं , जिसे सुनकर सारा घर वहीं इकट्ठा हो गया । बादमें उसके पैरोंपर गोघृत लगाया गया और एक कमरेमें लिटा दिया गया ।

अबतक तेजाबसे छुए हुए मेरे दोनों स्थानोंपर भी तेज जलन चालू हो गयी थी , अतः उनपर दवा लगायी । मैंने तो कपड़े पहन रखे थे तब भी मुझे इतनी तेज जलन हो रही थी ।

फिर केशवको कितना कष्ट हो रहा होगा – यह सोच – सोचकर मेरा बुरा हाल था । कपड़ोंको खोलकर मैंने धोनेके लिये डाला तो देखा कि वहाँ सूराख हो गये थे ।

मुझे आशंका हो रही थी कि निश्चय ही केशवके दोनों के पैरोंका मांस ( खाल ) जलकर बाहर निकल आयेगा । और सम्भवतः उसके हाथोंकी दशा भी ऐसी ही हो जाय । इसी की उधेड़ – बुनमें उसके कमरेके बाहर चक्कर काट रहा था , ।

जहाँ उसकी माँ , दादी और अन्य स्त्रियाँ बैठी थीं । परंतु घोर आश्चर्य , आधे घंटेके बाद ही वह रोजानाकी भाँति हँसता – खेलता हुआ चला आया ।  मैं विभोर हो कभी उसके पैरोंकी पगतलियोंको सहलाकर देख रहा था तो कभी उसके हाथोंकी हथेलियोंको ।

वे वैसी ही निर्मल और घीके कारण चिकनी – सी लग रही थीं । जबकि मेरे दोनों स्थानोंपर जलन पूर्ववत् जारी थी और छू यह जलन मुझे दो दिनतक जलाती ही रही । इन दो दिनों में मुझे बार – बार भक्त प्रह्लादवाली कहानी तथा उन बिल्लीके बच्चोंकी याद आ रही थी जो कि कुम्हारद्वारा घड़ोंको पकानेके लिये लगाये गये आँवेंमें रह गये थे और ईश्वरकृपासे उस आगसे जीवित निकल आये थे ।

या फिर माता पार्वतीजीकी जिज्ञासाके प्रत्युत्तरमें कही गयी यह चौपाई कौंधती रही ।

ता कर दूत अनल जेहिं सिरिजा । जरा न सो तेहि कारन गिरिजा ॥ 

( रा ० च ० मा ० ५। २६ । ७ )

इस प्रकार जब भगवान् स्वयं ही रखवारे बन जाते हैं तो फिर उस व्यक्तिका कोई कुछ भी बाल – बाँका नहीं कर सकता है । I

– गोवर्धन काँकाणी

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Adhyatmik Guruon Ke Prerak Vichar (Hindi Edition) 

Product details

Publisher ‏ : ‎ Prabhat Prakashan Pvt Ltd (January 2, 2021)

Language ‏ : ‎ Hindi

Hardcover ‏ : ‎ 210 pages

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अनुक्रम

भूमिका

गौतम बुद्ध

जिद्दू कृष्णमूर्ति

दलाई लामा

दादा जे.पी. वासवानी

दीपक चोपड़ा

परमहंस योगानंद

महात्रया रा रमण महर्षि

सद्गुरु जग्गी वासुदेव॒

सिस्टर शिवानी

स्वामी दयानंद सरस्वती स्वामी

रामकृष्ण परमहंस

स्वामी रामतीर्थ

स्वामी रामदेव

स्वामी विवेकानंद

अध्यात्म का अर्थ है – स्वयं का अध्ययन। धर्म का अर्थ है- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्गुण और जो धारण करने योग्य है, जिसे सभी मनुष्यों को धारण करना चाहिए। धर्म-अध्यात्म हमें ऐसी शक्ति की ओर ले जाते हैं, जो हमारी आस्तिकता को मजबूत बनाती है। जो ईश्वर में विश्वास करे, वह आस्तिक होता है। वही आस्तिकता जब मजबूत होती है, तब व्यक्ति अध्यात्म की ओर बढ़ता है और एक ऐसी शक्ति में विश्वास करता है, जो ऊर्जा का केंद्र है, जो हमारे जीवन का केंद्रबिंदु है। भारत आध्यात्मिक विभूतियों का केंद्र रहा है। चाहे रामकृष्ण परमहंस, दयानंद सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, रमण महर्षि, अखंडानंद सरस्वती हों-मानवकल्याण के लिए अपना सर्वस्व समर्पित करनेवाले इन दिव्य प्रेरणापुंजों ने मानव जीवनमूल्यों की स्थापना के लिए जो वाणीरत्न दिए, वे सबके लिए वरेण्य हैं, अनुकरणीय हैं। इन्हें जीवन में उतारकर हम एक सफल-सार्थक-समर्पित जीवन जी सकते हैं। भारतीयता के ध्वजवाहक विश्वविख्यात आध्यात्मिक गुरुओं के प्रेरक वचनों का यह संकलन हमें जीवन के हर अवसर पर प्रेरणा देगा, हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाएगा।

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