कबीर छुधा है कूकरी तन सों दई लगाय ।
~~श्री हरि~~
जोधपुर. श्रीबुधाराम जी महाराज हुए हैं । ‘बागर’में उनका रामद्वारा है वे माताजी सहित वहॉ रहते थे । इनंको खेडापा महाराजका उपदेश हो गया तो रात दिन ‘राम’ नाम जपमें लग गये । जब रसोई बनकर तैयार हो जाती तो माँ कह देती-बेटा ! रोटी बन गयी है ।’ तब वे आकर भोजन कर लेते, फिर वैसे ही राम, राम. . ॰ करने लग जाते । एक बार वे अपनी माँसे बोले…’माँ रोटी मत बनाया कर । रोटी चबानेमे जितना समय लगता है, उतना समय नाम-जपके बिना चला जात्ता है, इसलिये तू खिचड़ी या खीचड़ा बना दिया कर ।’ अब खिचडी परोसे तो वह बहुत देरतक गरम रहती थी । तो कहा–‘माँ`’, जब ठण्डी हो जाय, तब मेरेको कहा कर । अब इस अन्नक्री उपासना कौन करे, देर लगती है । ‘ फिर एक दिन कहा…-माँ राबड़ी बना दिया कर ।’ माँ’ आटा घोलकर राबड़ी बना देती । वह ठण्डी होनेपर गट-गट मी हेश्ते । फिर राम, राममे लगे रहते ।
भजन करनेमे लगे हुएको भोजन करनेमे समय लगाना ठीक नहीं लगता है । अब स्वाद तो ले ही कौन ? क्या बढिया देखे और क्या घटिया ? प्राणोंक्रो रखना है, इसलिये अन्नक्री खुराक दे दो…
कबीर छुधा है कूकरी तन सों दई लगाय ।
याको टुकड़ा डालकर पीछे हरि गुण गाय ।।
गोस्वामीजी कहते हैं…’जीह जसोमति हरि हलधर से‘…माता यशोदा की गोदमे कन्हैया और बलदाऊ-दोनों खेलते हैँ । भगवान्के भक्तोंकी जो जीभ है, वह यशोदाजीके समान है । उनकी गोदमेँ ‘रा’ और ‘म’ रूपी कन्हैया और दाऊ भैया खेल रहे है । बालकको मॉ’की गोदमें खेलनेमें आनन्द आता है । मनमें ‘भँवरे’ रूपसे ‘राम’ नाम है, जीभपर राम-नाम ‘हरि हलधर से’ हैं । इसलिये भक्तलोग मनसे भी ‘राम’ नाम और जीभसे भी’राम’ नाम जपते रहते हैँ । मनसे, वाणीसे, इन दोनों अक्षरोंमें तल्लीन होकर रात-दिन भजन करते है । किसी तरहकी कोई इच्छा, तृष्णा और वासना उनमे रहती ही नहीं । इस प्रकार इन ‘र’ और ‘म’ अक्षरोंकी महिमा कहाँतक कही जाय ! इनको लेनेसे ही इनका रस अनुभवमे आता है । इसलिये हर समय भगवन्नाम-जप करते ही रहना चाहिये ।