सुमिरन सुलभ सुखद सब काहू। आध्यात्मिक ज्ञान।

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          ~~श्री हरि~~

 
 

सुमिरन सुलभ सुखद सब काहू। लोक राहु परलोक निबाहू।।
कहत सुनत सुमिरत सुठि नीके।राम लखन सम‌ प्रिय तुलसी के ।।

ये कहने, सुनने और स्मरण करनेमे बहुत ही अच्छे सुन्दर, और मधुर है । तुलसीदासजीको श्रीराम और लक्ष्मणके समान दोनों प्यारे है । ‘राम, राम, राम ……. ‘ कहनेमें आनन्द आता है और ‘राम, राम, राम ….. ‘ सुननेमेँ आनन्द आता है ! मनसे याद करे तो आनन्द आता है । ऐसे ‘राम’ नामके ये दोनों अक्षर बडे सुन्दर और श्रेष्ठ हैं । गोस्वामीजी महाराज इस प्रकार विलक्षण बात कह रहे हैं । मानो उनको कुछ भी होश नहीं है । ‘राम’ माम कैसा है ? तो कहते हैं…’राम लखन सम प्रिय तुलसी के । । ‘ सुननेवालोंके सामने दृष्टान्त ऐसा दिया जाता है, जिसे सुननेवाले आसानीसे

समझ सके । “

श्रीरामचरितमानसमेँ चार संवाद आये हैँ१. पार्वतीजी एवं शंकरभगवानका, २ . याज्ञवल्क्यजी और भरद्वाजजीका, ३ . कागभुशुण्डिजी और गरुड़जीका तथा ४ ॰ सन्तो और गोस्वामीजी महाराजका संवाद । यहाँ गोस्वामीजी महाराज संत्तोंको नाम-महिमा सुनाते हुए कह रहे है कि ये दोनों अक्षर ऐसे सुन्दर और प्यारे हैं, जैसे तुलसीको राम और लखन प्यारे लगते है । रामचरितमानस समाप्त हुई तब रघुवंशी रामजी और उनके नाम—इन दोनोंके बिषयमे एक बात कही है-

कामिहि नारि पिआरि जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम । 

तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम । । 


दोनों उदाहरण ऐसे दिये, जिनको हरेक आदमी समझ सके और जिसमेँ हरेक आदमीका मन खिंचे । सिद्धान्त समझाना हो तो दृष्टान्त वही दिया जाता है, जो हरेक आदमीके अनुभवमेँ आता हो । परंतु यहाँ गोस्वाभीजी कहते ३ है…‘राम लखन सम प्रिय तुलसी के .– ‘राम-लक्ष्मणके समान मुझे प्यारे लगते हैं । . हरेक आदमीकी क्या पता कि तुलसीको राम और लक्ष्मण किस तरह प्यारे लगते हैं ? राम-लक्ष्मण उसको भी प्यारे लगें, तब वह समझे कि  राम’ नाम कितना प्यारा है ‘ इतने ऊँचे कवि होकर कैसा दृष्टान्त देते हैँ.  अब हम क्या समझें, तुलसीको कैसे प्यारे लगते हैं ?तो

कहते हैं… ”
कामिहि नारि पिआंरिं जिमि लोभिहि प्रिय जिमि दाम –

जैसे कामीको स्श्री प्यारी लगती है और लोभीको दाम प्यारा लगता हैं, ऐसे मेरेको राम प्यारे लगे । ‘तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम‘ -गोस्वामीजी महाराजने दो नाम लिये । ‘कामिहि नारि पिआरि जिमि’ …-मे लिया ‘रघुनाथ’ और ‘लोभिहि प्रिय जिमि दाम‘ मे लिया ‘राम’ नाम । कामीको सुन्दररूप अच्छा लगता है और लोभीको दाम प्यारे लगते हैं । वह सुन्दरताकी ओर नहीं देखता । वह , गिनती देखता है । उसको गिनती अच्छी लगती है । रघुवंशियोंके मालिक महाराजाधिराज श्रीराम विराजमान हैं, ऐसा उनका रूप और ‘राम’ नाम…ये दोनों प्यारे लगे अर्थात् भगवान्का रवरूप और भगवानका नाम ये दोनों प्यारे लगे।आध्यात्मिक ज्ञान

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