भीम और पांचो पांडो को मरने की योजना।

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महाभारत: में भीम और पांचो पांडो को मरने की योजना कैसे बनाई गई।

 



 

                     भीम

 

 पांडु के पांच पुत्रों और धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों का लालन – पालन हर्षोल्लास एवं आमोद – प्रमोद के साथ हस्तिनापुर में हुआ । धृतराष्ट्र के पुत्र पांडु के पुत्रों से भयंकर ईर्षया करते थे और उन्हें नीचा दिखाने का प्रयास करते थे । पांडु पुत्रों में भीम सबसे बलवान था । 

 

वह दौड़ में , दूर रखी किसी वस्तु को लाने में , भोजन करने और शरारत करने में सबसे आगे रहता था । धृतराष्ट्र के एक सौ एक पुत्र काफी बलवान थे । लेकिन वे मिलकर भी भीम का सामना नहीं कर सकते थे । भीम , दुर्योधन और अन्य कौरवों को डराता , धमकाता और परेशान करता रहता था । 

 

वह कभी किसी कौरव को अपने बगल में दबाकर पानी में डुबकी लगा लेता था तो कभी पेड़ पर चढ़े कौरवों को गिराने के लिए पेड़ को हिला देता था । कौरव भीम के कारण दु : खी रहते थे । दुर्योधन हमेशा परेशान और सोच में रहता था । 

 

उसके पिता के अंधे होने के कारण पांडु राज कर रहे थे । पांडु के बाद युवराज युधिष्ठिर राजा बनेंगे । दुर्योधन किसी तरह युधिष्ठिर को राजगद्दी पाने से रोकना चाहता था । वह सोचता था कि जब तक भीम जीवित है , उसकी यह योजना सफल नहीं हो सकती । 

 

अतः वह किसी तरह भीम की हत्या करना चाहता था । दुर्योधन और उसके भाइयों ने भीम को गंगा में डुबोने , अर्जुन और युधिष्ठिर को कैद करने और गद्दी पर कब्जा करने की योजना बनाई । एक बार दुर्योधन , उसके भाई और पांडव गंगा में तैरने गए । 

 

इसके बाद वे थक कर अपने तम्बुओं में आराम करने लगे । दुर्योधन ने भीम के भोजन में जहर मिलवा दिया था । अतः भीम को नींद आने लगी । वह नदी तट पर लेट गया । दुर्योधन ने उसे लताओं से बांध कर गंगा में धकेल दिया । नदी में गिरते ही भीम को विषैले नागों ने काट लिया । 

 

सांपों के काटने से भीम को दिए गए जहर का असर समाप्त हो गया , क्योंकि जहर ही जहर को काटता है । लहरों ने भीम को नदी के किनारे पहुंचा दिया । दुर्योधन ने सोचा कि भीम की मृत्यु हो गई होगी । अत : वह खुशी – खुशी घर को लौटा । 

 

युधिष्ठिर ने जब दुर्योधन से भीम के बारे में पूछा तो उसने उत्तर दिया वह तो पहले ही लौट गया था । घर पहुंचने पर पता लगा कि भीम घर नहीं पहुंचा है । इससे मां कुंती और पांडव भाइयों को चिन्ता हुई । कुछ समय बाद भीम घर पहुंचा । 

 

उसे देख कुंती और पांडव बंधु बहुत प्रसन्न हुए । पांडवों ने विदुर की सलाह पर इस घटना की चर्चा किसी से नहीं की लेकिन वह अत्यन्त सावधान हो गए । युधिष्ठर ने भीम से भी इस घटना की चर्चा किसी से नहीं करने को कहा । भीम को जीवित देख दुर्योधन को बेहद निराशा हुई । उसकी ईर्षया एवं घृणा और बढ़ गई ।

 

 

                   लाक्षागृह 

 

दुर्योधन हमेशा इस सोच में रहता था कि पांडवों को कैसे खत्म किया जाए । भीम की ताकत और अर्जुन की धनुर्विद्या को याद करके उसकी ईर्ष्या भड़क उठती थीं । कर्ण और शकुनी इस कार्य में उसके सलाहकार थे । वृद्ध और नेत्रहीन धृतराष्ट्र विचारशील थे । 

 

वह अपने भतीजों को प्यार करते थे , लेकिन वह कमजोर इच्छा शक्ति के व्यक्ति थे और पुत्र मोह में अपने बच्चों की गलतियों की अनदेखी करते थे । इस कारण कभी – कभी वह उनके दबाव में अनुचित अन्यायपूर्ण कार्य भी करते थे । दुर्योधन की नजर में युधिष्ठिर का सबसे गंभीर अपराध उनकी लोकप्रियता थी । 

 

लोगों का कहना था कि केवल वही राजा होने के योग्य हैं । केवल वही न्यायपूर्ण शासन दे सकते हैं । लोगों की ये बातें दुर्योधन के कानों में जहर घोलती थीं । वह अपने पिता से लोगों की शिकायत करता था । उसका कहना था कि युधिष्ठिर के राजा बनने पर हम और हमारी संतान कहीं के नहीं रहेंगे । 

 

उसके पिता उसे समझाते युधिष्ठिर धर्मज्ञ , न्यायप्रिय और कर्तव्यनिष्ठ हैं । वह सभी को प्यार करते हैं । वह हम लोगों का कभी अहित नहीं कर सकते । लेकिन दुर्योधन पर पिता की बातों का कोई असर नहीं होता था । कुछ अन्य लोग भी दुर्योधन की बातों का समर्थन करके धृतराष्ट्र को पांडवों के विरुद्ध भड़काने का प्रयास करते थे । 

 

इन लोगों में शकुनी का मंत्री कनिका प्रमुख था । दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से कहा , मैंने लोगों को बड़ी अशुभ बातें करते सुना है । वे युधिष्ठिर को राजा बनाना चाहते हैं । यह हमारे लिए भीषण कष्ट का आयोजन है । अगर आप किसी तरह पांडवों को वारणावत भेज दें तो मैं धन और सम्मान बांटकर हस्तिनापुर और राज्य के सभी लोगों को अपने पक्ष में कर लूंगा । 

 

एक बार राज्य पर हमारा अधिकार हो जाए तो पांडव हमें नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे । दुर्योधन और उसके मित्रों के दबाव में धृतराष्ट्र का मन डोल गया और वह अपने पुत्र की सलाह के अनुसार आचरण करने लगे । दुर्योधन के समर्थक पांडवों की उपस्थिति में वारणावत के सौन्दर्य की चर्चा करने लगे ।

 

 यह भी कहा गया कि वहां भगवान शिव के सम्मान में एक जबरदस्त समारोह होने जा रहा है । धृतराष्ट्र ने भी बड़े स्नेह से पांडवों को वहां जाने की सलाह दी । पांडव वहां जाने को तैयार हो गए । दुर्योधन के आदेश पर उसके विश्वासपात्र सेवक पुरोचन ने पांडवों के वारणावत जाने से पहले वहां जाकर उनके स्वागत और रहने के लिए लाख , मोम और अन्य जलने वाले सामान पटसन , घी , तेल , चर्बी से एक सुन्दर महल तैयार करवा दिया । 

 

उसकी दीवारों में भी ज्वलनशील सामग्री लगाई गई थी । महल में सभी तरह की सुविधाएं थीं । इरादा यह था कि जब पांडव महल में रहने के आदी हो जाएं तो एक दिन चुपचाप उसमें आग लगा दी जाए । इस आग में पांडव जल कर भस्म हो जाएंगे । 

 

लोग इसे केवल दुर्भाग्यजनक दुर्घटना मानेंगे । कौरवों को कोई दोष नहीं देगा । गुरुजनों के चरण छूकर , उनका आशीर्वाद प्राप्त करके और सहयोगियों के गले मिलकर उनसे विदाई लेने के बाद पांडव वारणावत के लिए रवाना हुए । कुछ दूरी तक उन्हें विदाई देने के लिए अनेक नगर निवासी उनके साथ गए ।

 

 

विदुर ने युधिष्ठिर को निम्नलिखित शब्दों में आगामी संकट की चेतावनी दी : “ केवल वह आदमी संकट से बच सकता है जो धूर्त दुश्मन के इरादों को समझकर विफल कर देता है । इस्पात से निर्मित हथियारों से भी अधिक तीक्ष्ण शस्त्र होते हैं और जो चतुर आदमी उससे बचने का उपाय जानता है वह अपनी रक्षा कर लेता है । 

 

दूर – दूर तक फैलने वाली आग समूचे जंगल को भस्म कर देती है लेकिन वह  चूहे या साही को , जो अपने बिल या मांद में चले जाते हैं , कोई नुकसान नहीं पहुंचाती । चतुर आदमी तारों को देखकर अपनी दिशा जान लेता है । जो धैर्य खो देता है , उसे सद्बुद्धि प्राप्त नहीं होती । 

 

” या विदुर ने संकेतों से युधिष्ठिर को दुर्योधन की जघन्य एवं घृणित योजना की जानकारी दी और खतरे से बचने का उपाय बताया । युधिष्ठिर ने संकेतों से बता दिया कि वह विदुर द्वारा दिए गए संकट की सूचना और उससे निपटने के उपाय समझ गए हैं । 

 

बाद में उन्होंने कुंती देवी को यह सब बताया । यद्यपि उन्होंने अपनी यात्रा आनन्द और उल्लास के साथ शुरू की थी लेकिन अब वे चिन्ताग्रस्त थे । वारणावत की जनता पांडवों के आगमन की सूचना पाकर अत्यन्त प्रसन्न थी । उसने उनका हार्दिक स्वागत किया । कुछ समय तक अन्य स्थानों में रहने के बाद पांडवों ने अपने रहने के लिए बनाए गए विशेष महल में प्रवेश किया ।

 

 युधिष्ठिर ने विदुर की चेतावनी को ध्यान में रखकर महल की जांच की । इससे उन्हें पता लग गया कि महल ज्वलनशील पदार्थों से बनाया गया है । युधिष्ठिर ने भीम से कहा यद्यपि हम जानते हैं कि यह महल हमें जलाने के लिए बनाया गया है , 

 

हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे पुरोचन को यह संदेह हो कि हमें षड़यंत्र का पता लग गया है । हमें यहां से ठीक समय पर निकल जाना चाहिए , लेकिन अगर दुश्मनों को संदेह हो गया , तो हमारा निकलना मुश्किल हो जाएगा । 

 

अत : पांडव दिखावे के लिए महल में निश्चिन्त होकर रहने लगे । विदुर ने गुपचुप एक होशियार सुरंग बनाने वाला उनके पास भेजा । उसने कहा “ मुझे विदुर ने आपके पास दुर्योधन के षड़यंत्र को विफल बनाने के लिए भेजा है । मैं आपकी सहायता करूंगा । 

 

” इसके बाद वह व्यक्ति लाक्षागृह से निकलने की सुरंग बनाने में लग गया । उसने कुछ ही समय में महल से सुरक्षित बाहर निकलने की भूमिगत सुरंग तैयार कर दी और किसी को उसका पता भी नहीं लगा । पांडव रात में चौकस रह कर सभी पर कड़ी नजर रखते थे । महल के बाहर पुरोचन का घर था । 

 

दिन में पांडव शिकार के बहाने वन में रास्तों की पहचान करने निकल जाते । पांडव दिखावे के लिए मौज मस्ती करते थे । उन्होंने किसी को यह संदेह नहीं होने दिया कि उन्हें षड़यंत्र की जानकारी है । पुरोचन भी इस कोशिश में रहता था कि पांडवों को कोई संदेह न हो और विनाशकारी अग्निकांड को लोग दुर्घटना समझें । 

 

अन्त में पुरोचन ने महल में आग लगाने का निश्चय किया । उसकी गतिविधियों से पांडवों को उसके इरादे का पता लग गया । युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को बुलाकर कहा कि यहां से निकलने का समय आ गया है । उस दिन रात में कुंती और अन्य पांडवों के भूमिगत सुरंग में पहुंचने के बाद भीम ने महल के दरवाजे और कुछ अन्य हिस्सों में आग लगा दी और फिर सुरंग में प्रवेश कर गया । शीघ्र ही आग चारों ओर फैल गई । 

 

• पुरोचन का घर भी आग की चपेट में आ गया और वह भी आग में जलकर भस्म हो गया । शीघ्र ही लोग महल के चारों ओर इकट्ठा हो गए । आग इतनी तेजी से फैली और प्रचंड हो गई थी कि उसे बुझाना संभव ही न था । लोग आग में पांडवों की मृत्यु के लिए हाहाकार करने लगे और दुर्योधन को दोष देने लगे । 

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महल खंडहर और राख में बदल गया । वारणावत के लोगों ने हस्तिनापुर को संदेश भेजा कि पांडवों के रहने के लिए बनाए गए महल में आग लग गई और कोई जीवित नहीं बचा । धृतराष्ट्र और उसके पुत्रों ने बाहरी तौर पर बहुत दुख प्रकट किया ।

 

 उन्होंने अपने राजसी वस्त्र उतारकर शोक प्रकट करने के साधारण कपड़े पहने । उन्होंने नदी तट पर जाकर निकट संबंधियों के निधन पर किए जाने वाले अनुष्ठान भी पूरे किए । पांडवों के निधन का समाचार सुनकर विदुर ने कोई शोक प्रकट नहीं किया । 

 

लोगों ने समझा विदुर का स्वभाव ही ऐसा है । भीष्म यह खबर सुनकर बहुत दुःखी थे । विदुर ने उन्हें चुपचाप बताया कि पांडव पहले ही लाक्षागृह से निकल गए थे और सुरक्षित हैं । पांडवों के सुरक्षित निकलने का समाचार पाकर भीष्म बहुत प्रसन्न हुए । 

 

सुरंग से निकलने के बाद पांडवों को अनेक तरह के कष्ट भोगने पड़े । रास्ता सीधी चढ़ाई वाला , तंग , दुर्गम , कठिन और कांटों से भरा था । कुंती , नकुल और सहदेव थक कर चूर हो गए और एक स्थान पर बैठ गए । 

 

यह देख भीम ने अपनी मां को तो अपने कंधों पर बिठा लिया , नकुल सहदेव को अपने कूल्हों पर ले लिया अर्जुन और युधिष्ठिर को अपने हाथों का सहारा दिया । इन सब को लेकर भीम एक हाथी की तरह झाड़ियों , पेड़ों और लताओं को कुचलता आसानी से आगे बढ़ गया । 

 

कुछ दिन बाद वे गंगा तट पर पहुंचे । वहां उनके लिए एक नाव तैयार थी । गंगा पार करके वे एक विशाल वन में पहुंचे । उन्होंने उसे रात में पार किया । लगातार चलने  से वे सब थक गए थे । प्यास से उनका दम निकला जा रहा था । सभी उस स्थान पर लेटकर थकान उतारने लगे । 

 

एकमात्र भीम जगे थे । इस जंगली जानवरों से भरे वन में भीम अंधेरे में पानी की तलाश में निकले । एक सरोवर मिलने पर उन्होंने पहले अपनी प्यास बुझाई और फिर अपनी मां और भाइयों के लिए पानी ले गए । 

 

पानी पीने के बाद माता कुंती और चारों भाई थकान के कारण सो गए । अपनी मां और भाइयों को जमीन पर सोता देखकर भीम को बहुत दुख हुआ । पांडवों ने तपस्वी वेश धारण कर लिया था । 

 

उन्होंने वनवासी लोगों की तरह बल्कल वस्त्र और मृगचर्म धारण कर लिया था । अपनी मां और भाइयों को इस तरह कष्ट उठाते देखकर भीम को बड़ी वेदना हुई ।  

 

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भीम का जीवन परिचय।

 

महाभारत: पढ़ें, भीम के ताकतवर और शक्तिमान बनने की कथा ।

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