विधि हरि हरमय बेद प्रान सो।आध्यात्मिक ज्ञान।
विधि हरि हरमय बेद प्रान सो 1। अगुन अनूपम गुन निधान सो 11
यह राम नाम ब्रह्मा, बिष्णु और महेशमय है । विधि , हरि हर-सृष्टिमात्रकी उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाली, ये तीन “ शक्तियाँ हैं । इनमें ब्रह्माजी सृष्टिक्री रचना करते हैं, विष्णुभगवान्पालन काते हैं और शंकरभगवान् संहार काते हैं ।
संसारमें ‘राम’ नामसे बढकर कुछ नहीं है । सब कुछ शक्ति इसमें भरी हुई है । इसलिये सन्तोने कहा हैक्या
ऋद्धि-सिद्धिसब इसके भीतर भरी हुईहै । विश्वास न हो तो रात-दिन ३ जप करके देखो । सब काम हो जायगा, क्रोईं काम जाकी नहीं रहेगा ।
यह ‘राम’ नाम वेदोंके प्राणके समान है, शाखोंका और वर्णमालाका भी प्राण है । प्रणवक्रो वेर्दोका प्राण माना गया है । प्रणब तीन मात्रा बाला ‘ॐ’ कार पहले-ही-पहले प्रक्ट हुआ, उससे त्रिपदा गायत्री बनी और उससे वेदत्रय बना । ऋकृ, साम, यजु: …ये तीनों मुख्य वेद हैं । इन त्तीनोंका प्राकट्य गायत्रोसे, गायन्नीका प्राक्या तीन मात्रावाले ‘ॐ‘ कारसे और यह ‘ॐ’ कार…प्रणव सबसे पहले हुआ । इस प्रकार यह ‘ॐ’ कार (प्रणव) वेर्दोका प्राण है ।
यहाँपर ‘राम’ मामक्रो वेर्दोका प्राण वन्हनेमेँ तात्पर्य है कि ‘राम’ . नामसे ‘प्रणव’ होता है । प्रणबमेँसे ‘र निकाल दो तो “पणव’ हो जायगा और ‘पणव’का अर्थ ढोल हो जायगा । ऐसे हो ‘ॐ’ मेंसे ‘म’ निकालकर उच्चारण कसे तो वह शोकका वाचक हो जायगा । प्रणवमें “र और ‘ॐ‘में “म कहना आवश्यक है । इसलिये यह “राम नाम वेदोका प्राण मी हैं ।
अगुन अनूपम गुन निधग्न सौ‘ ८यह ‘राम’ नाम निर्मुण अर्थात्गुण रहित है । सत्त्व, रज और तमसे अतीत है, उपमारहित है, और गुणोंका भण्डार है, दया, क्षमा, सन्तोष आदि सतूगुणोंका खजाना है, नाम लेनेसे ये सभी आप-से-आप आ जाते है । यह ‘राम’ नाम सगुण और निर्मुण द्रोनोंक्रा वाचक है । आगेके प्रकाणमें आएगा।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.