श्री सीताराम-वंदना
गिरा अरथ जल बीचि सम कहिअत भिश्र न मिनरल।
बंदउँ सीता राम पद जिन्हहि परम प्रिय खित्रा ।।
गोस्वामी श्री तुलसीदास जी महाराज कथा प्रारम्भ करने से पहले सभी की वंदना करते है । इस दोहे में श्री सीताराम जी को नमस्कार करते है ।इसके बाद नाम वंदना और नाम महिमाको लगातार नौ दोहे और बहत्तर चौपाइयों कहते है।
श्री गोस्वामी जी महाराज को यह 9 संख्या बहुत प्रिय लगती है 9 संख्या को कितना ही गुण किया जाए तो उन अंको को जोड़ने पर 9 ही बचेंगे जैसे 9 संख्या को 9 से गुणा करने पर 81 होते हैं 81 के 8 और एक इन दोनों को जोड़ने पर फिर 9 हो जाते हैं इस प्रकार कितनी ही लंबी संख्या क्यों न हो जाए पर अंत में 9 ही रहेंगे क्योंकि यह संख्या पूर्ण है गोस्वामी जी महाराज को जहां कहीं ज्यादा महिमा करनी होती है तो 9 तरह की उपमा और 9 तरह के उदाहरण देते हैं 9 संख्या आखिरी हद है इससे बढ़कर कोई संख्या नहीं है यह संख्या अटल है।
संबत सोरह सै इकतीस । करहूं कथा हरी पद धरि सीसा।।
नौमी भौम बार मधुमासा। अवधपुरी यह चरित प्रकासा ।।
रामजन्म तिथि बार सब जस श्रेता महँ भास।
तस इकतीस महँ जुरो जोग लगन ग्रह रास।
भगवान श्री राम ने त्रेता युग में चैत मास शुक्ल पक्ष नवमी तिथि मंगलवार के दिन शुभ मुहूर्त के समय अयोध्या में अवतार लिया भगवान के अवतार के दिन जैसा शुभ मुहूर्त था ठीक वैसा ही शुभ मुहूर्त संवत् १६३१में भगवान के अवतरण के दिन बना श्री गोस्वामी जी महाराज ने अयोध्या में उसी दिन श्रीरामचरितमानस ग्रंथ लिखना आरंभ किया जब तक ऐसा सहयोग नहीं बना तब तक वैसे शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा करते रहे यहां 18 में दोहे में श्री सीताराम जी के चरणों की वंदना करते हैं सीताराम जी की बहुत विलक्षणता है। (जिंहही परम प्रिय खित्र) दुखी आदमी किसी को प्यारा नहीं लगता दिल दुखी को सब दूध काटते हैं पर सीताराम जी को जो दुखी होता है वह ज्यादा प्यारा लगता है वह उनका परम प्रिय है उस पर विशेष कृपा करते हैं श्री सीताराम जी के चरणों में मैं प्रणाम करता हूं श्री सीताराम जी अलग अलग नहीं है इस बात को समझाने के लिए दो दृष्टांत देते हैं जैसे गिरा अरथ और जल बीच कहने का तात्पर्य है कि वाणी और उसका अर्थ कहने में दो है पर वास्तव में दो नहीं एक है वाणी से कुछ भी कहेंगे तो उसका कुछ ना कुछ अर्थ होगा कि और किसी को कुछ अर्थ समझा ना हो तो वाणी से ही कहा जाएगा ऐसे परस्पर अभिन्न है इसी तरह जल होगा तो उसकी तरग भी होगी और जल कहने में दो है पर जल से तरग य तरंग से जल अलग नहीं है एक ही है गिरा और बीच यह दोनों स्त्रीलिंग पद है अर्थ और जल ये दोनों पुल्लिंग पद है यह दोनों दृष्टांत सीता और राम की परस्पर अभी इतना बताने के लिए दिए गए हैं इनका उलट-पुलट कर के प्रयोग किया है पहले गिरा स्त्रीलिंग पद कहकर अर्थ मुनि पद कहा यह तो ठीक है क्योंकि पहले सीता और उसके बाद राम है दूसरे उदाहरण में उलट दिया अथाह जल कूलिंग पद पहले रखा और उसके बाद दिखी स्त्रीलिंग पद बाद में रखा इसका तात्पर्य राम सीता हुआ इस प्रकार कहने से दोनों की अभद्रता सिद्ध होती है सीताराम सब लोग कहते हैं पर राम सीता ऐसा नहीं कहते हैं जब भगवान के प्रति विशेष प्रेम बढ़ता है उस समय सीता और राम भिन्न-भिन्न नहीं दिखते हैं इस कारण इसको पहले कहीं किसको पीछे कहे यह विचार नहीं रहता है जब ऐसा होता है श्री भरत जी महाराज का जब चित्रकूट जा रहे हैं तो प्रयाग में प्रवेश करते समय कहते हैं।
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