कुंतभोज की पुत्री कुंती और पांडु की कहानी।
कुंतभोज की पुत्री कुंती और पांडु की रोचक कहानी।
कुंती
कुंतभोज की पुत्री थी । कुंती की बाल्यावस्था में उसके घर एक बार दुर्वासा ऋषि पधारे और कुछ समय तक वहाँ रहे । कुंती ने उनकी बड़ी सेवा की । दुर्वासा ऋषि इससे इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने जाते समय उसे एक मंत्र प्रदान किया ।
उन्होंने कहा , “ अगर तुम यह मंत्र कहने के बाद किसी देवता का स्मरण करोगी तो वह तुम्हारे सामने प्रकट होंगे और तुम्हें अपने समान तेजस्वी पुत्र प्रदान करेंगे । ” दुर्वासा ऋषि ने कुंती को यह वरदान इसलिए दिया क्योंकि उन्होंने योगिक शक्ति से जान लिया कि उसके पति उसे संतान नहीं दे सकेंगे । कुंती ने बड़ी होने के बाद एक दिन जिज्ञासा वश मंत्र की शक्ति जांचने के लिए सूर्य का स्मरण किया ।
कुंती ने जैसे ही मंत्र समाप्त किया उसके सामने अपने तेजस्वी स्वरूप में सूर्य प्रकट हो गए । कुंती यह देख आश्चर्य में पड़ गई । उसने पूछा , ‘ श्रीमन आप कौन हैं ? सूर्य ने उत्तर दिया , “ मैं सूर्य हूं । तुमने पुत्र मंत्र का उच्चारण कर मुझे बुलाया ।
अत : मैं यहां आया हूं । ” कुंती सूर्य की बात सुनकर हक्की बक्की रह गई । उसने कहा , “ मैं कुमारी हूं और अभी मां बनने के योग्य नहीं हूं । मैं अभी पुत्र भी नहीं चाहती । मैंने केवल कौतूहल में मंत्र की परीक्षा लेने के लिए उसका उच्चारण किया था । कृपा करके मुझे क्षमा कीजिए और लौट जाइए ।
” सूर्य मंत्र की शक्ति के कारण लौट नहीं सकते थे । कुंती बदनामी के भय से डरी थी । सूर्य ने कुंती को समझाया कि तुम्हारी कोई बदनामी नहीं होगी । पुत्र जन्म देने के बाद तुम फिर से पहले की तरह हो जाओगी । कुंती सूर्य से गर्भवती हो गई । उसने एक बालक को जन्म दिया । बालक के शरीर में दैवी कवच और कानों में कुंडल थे , जो उसे सदैव अभय प्रदान करते थे ।
वह सूर्य की तरह तेजस्वी था । कुंती की समझ में नहीं आया कि वह बालक का क्या करे । अन्त में लोक लाज से बचने के लिए उसने उसे एक संदूक में रखकर नदी में बहा दिया । एक निःसन्तान रथचालक ने नदी में बहते हुए बक्से को देखा और उसे निकाल लिया । बक्से में एक नवजात बालक को देख उसे अत्यन्त प्रसन्नता हुई और वह उसे अपने घर ले गया ।
उसकी पत्नी ने उस बालक को मां का लाड़ प्यार दिया । इस प्रकार सूर्य पुत्र कर्ण का लालन – पालन एक सारथी के घर पर हुआ । कुछ समय बाद कुंती के पिता कुंत भोज ने उसके विवाह के लिए स्वयंवर आयोजित किया ।
उसने स्वयंवर में दूर – दूर से राजाओं को निमंत्रित किया । कुंती बहुत ही सुंदर , गुणवान और सुशील थी । अत : बड़ी संख्या में राजकुमार उसका वरण करने के लिए आए । कुंती ने पांडु नरेश के गले में वरमाला डाल उनका वरण किया । बाद में पांडु ने माद्र देश के राजा की बहिन मादी से भी विवाह किया ।
- पांडु
शान्तनु के तीन पुत्र हुए । गंगा से देवव्रत अथवा भीष्म और सत्यवती से चित्रांगद और विचित्रवीर्य । शान्तनु की मृत्यु के बाद चित्रांगद राजा हुए । वह गंधर्वों से लड़ते हुए युद्ध में मारे गए । चित्रांगद निःसन्तान मरे थे । अत : उनके बाद विचित्रवीर्य राजा हुए । विचित्रवीर्य के दो पुत्र हुए । धृतराष्ट्र और पांडु ।
धृतराष्ट्र जन्म से अंधे थे । अत : पांडु राजा बनाए गए । पांडु ने बहुत योग्यता से शासन किया । उसके शासनकाल के दौरान राज्य ने सभी क्षेत्रों में उन्नति की । दैव भी अनुकूल थे । हमेशा बहुत अच्छी फसल हुई । राज्य का व्यापार भी बहुत बढ़ा । राज्य में चोरी चकारी नहीं होती थी ।
कहीं किसी किस्म का अभाव नहीं दिखाई देता था । प्रजा सुखी थी । राज्य में सुशासन स्थापित करने के बाद पांडु ने उन पड़ोसी राज्यों पर आक्रमण किया , जिन्होंने हस्तिानापुर की जमीन पर अधिकार कर लिया था । उनको पराजित करने के बाद उसने इनसे पुराना बकाया कर वसूला ।
इसके बाद उसने कुछ अन्य राजाओं , मगध , मिथिला और काशी पर आक्रमण किया और उन्हें अपने अधीन किया । इन राज्यों से उसने काफी धन , हीरे – मोती , मणि – माणिक्य प्राप्त किए । एक बार जब पांडु शिकार को वन में गए । उन्होंने एक हिरण को अपने तीर का निशाना बनाया ।
पांडु ने जिसे हिरण समझा वह वास्तव में एक संत का युवा पुत्र था , जो हिरण की खाल ओढ़कर अपनी पत्नी के साथ वन में प्रेम – क्रीड़ा कर रहा था । संत के पुत्र ने पांडु को शाप दिया कि तुमने क्रीड़ारत हिरण को अपने तीर का निशाना बनाया , जो वर्जित है । अतः अगर तुम पत्नी सुख प्राप्त करने का प्रयास करोगे तो ऐसा करते ही तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी ।
इस घटना से पांडु बहुत दुखी हुए । उनसे अज्ञानता में ब्रह्म हत्या हो गई थी । उन्होंने अपनी पत्नियों से कहा भोग के अधीन होकर मैंने यह पाप किया । अतः मैं वैराग्य लूंगा । मैं कठोर तपस्या करके अपने शरीर और मन को निर्मल करूंगा । यह कहकर उन्होंने अपनी पत्नियों से अनुमति मांगी ।
उनकी पत्नियां उनके प्रस्ताव से सहमत नहीं हुईं । उन्होंने कहा हम भी आपके साथ संयम का जीवन बिताएंगी । इसके बाद पांडु और उनकी पत्नियों ने राजसी वस्त्र , आभूषण उतार दिए और समस्त राजसी ताम झाम के साथ राज कर्मचारियों को इस संदेश के साथ हस्तिनापुर वापिस भेज दिया कि हमने वैराग्य ले लिया है । पांडु के वचन सुनकर नौकर चाकर दुखी मन से हस्तिनापुर को रवाना हुए । हस्तिनापुर में भी यह समाचार सुन भीष्म , धृतराष्ट्र और परिवार के सदस्य , बंधु – बांधव दुखी हुए । पांडु ने वन में कठोर तपस्या करके अपनी इन्द्रियों को वश में रखा । उनकी पत्नियों ने भी इस कार्य में उनके साथ पूरा सहयोग किया । पांडु इस बात को लेकर बहुत दुखी थे कि उनकी कोई संतान नहीं है । संतान से ही वंश चलता है और संतान ही पितरों को पिंड देती है । उनके दुख को दूर करने के लिए कुंती ने उन्हें दैवी मंत्र की सहायता से संतान प्राप्ति के बारे में बताया । पांडु ने कुंती और माद्री को दैवी मंत्र की सहायता से संतान प्राप्ति का आदेश दिया ।
दैवी मंत्रों की सहायता से उनकी पत्नी कुंती ने तीन पुत्रों को जन्म दिया युधिष्ठिर , अर्जुन और भीम । इसी प्रकार माद्री ने दो पुत्रों , नकुल और सहदेव को जन्म दिया । उधर हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने सौ पुत्रों को जन्म दिया । इनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था ।
पांडु के पुत्र पांडव और धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाए । पांडु के दिन वन में सुख से बीत रहे थे । वे अत्यंत संयम का जीवन बिता रहे थे । अचानक एक वर्ष वन में वसंत बगरा गया । आम , चम्पा , कचनार और टेसू के पेड़ों में कलियां निकल आईं , सर्वत्र फूल खिल गए । लताएं फैल गई , भ्रमर गुंजन करने लगे , पक्षी चहचहाने लगे और कोयल ने कूकना शुरू कर दिया ।
कमल और कुमुद की सुगंध वातावरण में महकने लगी । पांडु का मन भी आनंद उल्लास से भर गया । वे माद्री को लेकर वन में टहल रहे थे । उन्हें लगा माद्री अतीव सुंदरी है । उसके यौवन और सौंदर्य में चार चांद लग गए हैं । उनका मन पत्नी सुख प्राप्त करने का हुआ । उन्होंने माद्री का हाथ धीरे से दबाया । माद्री पांडु के मनोभाव को समझ गई । उसने उन्हें संत के शाप की याद दिलाई ।
पांडु के संयम का बांध टूट गया था । उन्होंने माद्री को अपने वक्ष की ओर खींचा । माद्री ने मंद स्वर में चेतावनी दी । पांडु पर चेतावनी का कोई असर नहीं हुआ । उन्होंने माद्री को आलिंगन में लेना चाहा । इससे पहले कि माद्री उनके बाहुपाश में आए । उनके हृदय में एक तीर सा लगा और उनके प्राण पखेरू उड़ गए । वह कटे वृक्ष की तरह जमीन पर गिर पड़े । माद्री मृत पति के शरीर से लिपटकर रोने लगी ।
उसका रोना सुनकर कुंती और उनके बच्चे आ गए । काफी समय तक दोनों स्त्रियां विलाप करती रहीं । फिर कुंती ने कहा , ” बहिन बड़ी पत्नी होने के कारण मेरा इनके साथ परलोक जाना उचित है । ” माद्री ने उत्तर दिया , ” स्वामी ने मेरे साथ प्राण छोड़े अतः मैं ही उनके साथ जाऊंगी ।
इसके अलावा बच्चों का लालन – पालन जितनी अच्छी तरह आप कर सकती हैं मैं नहीं कर सकती । ” इसके बाद पांडु के अंतिम संस्कार के लिए चिता बनाई गई । माद्री ने चिता में चढ़ने से पूर्व कुंती से नकुल और सहदेव को मातृ स्नेह देने का अनुरोध किया ।
पांडु की मृत्यु के बाद पांडवों ने जंगल में ऋषि मुनियों से धार्मिक , सामरिक और अन्य कलाओं की शिक्षा प्राप्त की । जब उनकी शिक्षा पूरी हो गई वे अपनी मां के साथ हस्तिनापुर पहुंच गए । दैवी मंत्रों की सहायता से उनकी पत्नी कुंती ने तीन पुत्रों को जन्म दिया युधिष्ठिर , अर्जुन और भीम ।
इसी प्रकार माद्री ने दो पुत्रों , नकुल और सहदेव को जन्म दिया । उधर हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी ने सौ पुत्रों को जन्म दिया । इनमें दुर्योधन सबसे बड़ा था । पांडु के पुत्र पांडव और धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाए । धृतराष्ट्र के पुत्र स्वयं को हस्तिनापुर का वास्तविक अधिकारी समझते थे । वह पांडवों से ईर्ष्या करते थे ।
दुर्योधन जो कौरवों में सबसे बड़ा था सदैव पांडवों को समाप्त करने की चालें सोचा करता था । दुर्योधन खासतौर से भीम को फूटी आंखों नहीं देख सकता था । पांडवों में भीम सबसे बलशाली था । दुर्योधन सोचा करता था कि अगर भीम की हत्या कर दी जाए तो पांडव कमजोर हो जाएंगे और फिर उनके राज्य पर कब्जा करने का खतरा समाप्त हो जाएगा ।
उसने भीम को मारने का षडयंत्र भी रचा लेकिन वह विफल हो गया । परिवार के मुखिया भीष्म ने इस झगड़े को शान्त करने के लिए धृतराष्ट्र को समझा कर राज्य को दो हिस्सों में बंटवा दिया । पांडवों को खांडवप्रस्थं वाला भाग दे दिया गया । उन्होंने इन्द्रप्रस्थ को राजधानी बनाकर वहां राज करना शुरू किया । दुर्योधन हस्तिनापुर से राज करने लगा ।
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