बृहस्पति का पुत्र कच की कहानी।

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अंगीरा ऋषि का पौत्र और बृहस्पति का पुत्र कच की अनोखी आध्यात्मिक कहानी।

                     कच

प्राचीनकाल में देवताओं और असुरों के बीच तीनों लोकों की सत्ता के लिए आए दिन संघर्ष होता रहता था । इस संघर्ष में असुरों के गुरु शुक्राचार्य को मृतसंजीवनी विद्या का अथवा मृतक को फिर से जिलाने का ज्ञान था ।

देवताओं के गुरु बृहस्पति को इस विद्या का ज्ञान नहीं था । अतः देवता जिन असुरों को मारते थे शुक्राचार्य उन्हें फिर से जिन्दा कर देते थे । इससे देवताओं के हाथ से जीती बाजी निकल जाती थी । देवता किसी तरह मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहते थे ।

इसके लिए उन्होंने बृहस्पति के पुत्र कच को विद्याध्ययन के लिए शुक्राचार्य के पास भेजने की योजना बनाई । उन दिनों कोई गुरु विद्याध्ययन के लिए घर आए किसी छात्र को मना नहीं कर सकता था । देवताओं ने कच से कहा , ” आप हर तरह से विद्या सीखने के सुपात्र हैं ।

अतः शुक्राचार्य का शिष्यत्व स्वीकार कर उनकी और उनकी पुत्री देवयानी की सेवा कर मृतसंजीवनी विद्या सीख कर हमारी सहायता कीजिए । शुक्राचार्य तुम्हें मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान प्रदान कर देंगे । ” देवताओं के अनुरोध पर कच शुक्राचार्य के पास गया ।

अपना परिचय देते हुए उसने शुक्राचार्य से कहा , ” मैं अंगीरा ऋषि का पौत्र और बृहस्पति का पुत्र हूं । भगवन् , आप मुझे अपना शिष्य बना लें । ” शुक्राचार्य कच को शिष्य बनाने पर सहमत हो गए । कच निर्धारित पठन पाठन के अलावा शुक्राचार्य और उनकी पुत्री देवयानी की जी जान से सेवा करता था ।

वह देवयानी के लिए फल – फूल आदि लाने के अलावा गायन – नृत्य से उसका मनोविनोद करता था । अत : वह शीघ्र ही शुक्राचार्य और देवयानी दोनों का प्रिय हो गया । उधर जब असुरों को पता चला कि कच शुक्राचार्य का शिष्य हो गया है और कालान्तर में अपने गुरु से मृतसंजीवनी विद्या का ज्ञान प्राप्त कर सकता है तो वह चिन्तित हो गए ।

एक दिन शाम को गायों को चराकर लौटते समय जब कच विश्राम करने एक पेड़ के नीचे कुछ देर के लिए रुका तो असुरों ने उसकी हत्या कर दी । इसके बाद उन्होंने कच के शरीर के टुकड़े कर उन्हें कुत्तों और सियारों को खिला दिया ।

गायों के अकेले लौटने पर देवयानी ने अपने पिता से कहा , ” पिताजी सूर्य अस्त हो गया है , गायें बिना कच के लौट आई हैं । लेकिन कच अभी तक नहीं आए । लगता है कि कच या तो मारे गए हैं या मर गए हैं । मैं उनके बिना जीवित नहीं रह सकती ।

” शुक्राचार्य अपनी बेटी को बहुत प्यार करते थे । उन्होंने कहा , “ बेटी चिन्ता न करो । मैं अभी आओ कह कर कच को जीवित कर देता हूं । ” यह कह कर उन्होंने संजीवनी विद्या का प्रयोग किया और कच को पुकारा । गुरु के पुकारने पर संजीवनी विद्या के प्रभाव से कच कुत्तों और सियारों का पेट फाड़कर बाहर निकल आया और गुरु के सामने उपस्थित हो गया ।

देवयानी ने कच से देर में आने का कारण पूछा । कच ने बताया , “ लौटते समय मैं थोड़ा विश्राम करने के लिए एक पेड़ के नीचे रुका । मेरे साथ ही गायें भी वहां बैठ कर जुगाली करने लगी । कुछ देर बाद वहां कुछ असुर आए । उन्होंने मुझसे मेरा परिचय पूछा । परिचय मिलने के बाद उन्होंने मुझे मार दिया और मेरे शव के टुकड़े टुकड़े कर कुत्तों और सियारों को खिला दिया ।

गुरु महाराज ने मुझे फिर से जीवित कर दिया । तब मैं यहां आया हूं ।  इसके बाद एक दिन जब कच वन में देवयानी के लिए फल – फूल लेने गया हुआ था , असुरों ने फिर उसकी हत्या कर दी । इसके बाद उन्होंने कच के शव को पीस कर समुद्र में डाल दिया । कच के आश्रम न पहुंचने पर देवयानी के अनुरोध पर शुक्राचार्य ने उसे फिर जीवित कर दिया ।

असुरों ने तीसरी बार फिर कच की हत्या की हत्या के बाद उन्होंने कच को जलाया और उसकी लाश का चूरन बनाकर मदिरा में मिलाकर शुक्राचार्य को पिला दिया । इस बार शुक्राचार्य ने देवयानी को समझाने का प्रयास किया कि असुर् कच के पीछे पड़े हैं ।

वे फिर उसकी हत्या कर देते हैं । मैं अगर उसे जिन्दा कर दूंगा तो असुर उसे फिर मार देंगे । अतः अब तुम उसके लिए शोक मत करो । देवयानी के यह कहने पर कि मैं कच के बिना जीवित नहीं रह सकती शुक्राचार्य ने कच को बुलाया । कच ने उनके पेट से धीमे स्वर में कहा , ” गुरुदेव मैं आपको प्रणाम करता हूं । ”

अपने पेट से कच की आवाज सुनकर शुक्राचार्य आश्चर्य में पड़ गए । उन्होंने कच से पूछा ! “ शिष्य तुम मेरे पेट में कैसे पहुंच गए ? ” कच ने बताया , “ असुरों ने मुझे मार कर मेरे शरीर को जलाया और उसका चूर्ण बना दिया । फिर उसे मदिरा में मिलाकर आपको पिला दिया । ”

यह सुनकर शुक्राचार्य ने देवयानी से कहा , “ पुत्री ! असुरों ने कच को मार कर मेरे पेट में पहुंचा दिया है । अगर मैं उसे जीवित करता हूं तो वह मेरा पेट फाड़ कर बाहर निकलेगा । उस हालत में मैं जीवित नहीं रहूंगा । अब तुम्हीं बताओ मैं क्या करूं ? ” देवयानी ने कहा , “ पिताजी ! आप और कच मुझे दोनों प्रिय हैं ।

आप दोनों में से किसी के भी न रहने पर मुझे भयंकर कष्ट होगा और मैं जीवित न रहूंगी । ” इस पर शुक्राचार्य ने कच को पहले मृतसंजीवनी विद्या की शिक्षा दी । फिर कहा मेरे शरीर से जब तुम बाहर निकलोगे तो मेरी मृत्यु हो जाएगी । तुम मुझे फिर जीवित कर देना ।

कच के शुक्राचार्य के पेट से बाहर निकलते समय शुक्राचार्य की मृत्यु हो गई । लेकिन कच ने उन्हें फिर जीवित कर दिया । फिर से जीवित हो जाने पर शुक्राचार्य के मन में मदिरा के प्रति घृणा और क्रोध का भाव जागा और उन्होंने घोषणा की अगर आज से कोई ब्राह्मण मदिरा पान करेगा तो वह ब्रह्म हत्या के पाप का भागीदार होगा । शुक्राचार्य के पेट से निकलने के बाद कच ने कहा गुरु जो शिक्षा देता है पिता के समान है । अब चूंकि मैं आपके पेट से

निकला हूं अत : आप मेरे माता – पिता दोनों हैं । अपनी शिक्षा समाप्त कर जब कच का शुक्राचार्य के आश्रम से जाने का समय निकट आया तो उसने गुरु से जाने की आज्ञा मांगी ।

शुक्राचार्य ने उसे सहर्ष जाने की आज्ञा प्रदान कर दी । उसी समय देवयानी ने कच से कहा , “ आप हर तरह से योग्य पुरुष हैं । आपका ब्रह्मचर्य जीवन समाप्त हो गया है । मैं आपसे प्रेम करती हूं । कृपया मुझसे विवाह करके मुझे स्वीकार करें ।

” कच ने कहा , ” देवयानी गुरु शुक्राचार्य की तरह तुम भी मेरे लिए पूजनीय हो । गुरु पिता के बराबर होता है । अतः गुरु पुत्री बहिन होती है । अत : तुम्हें मुझसे ऐसी बात नहीं करनी चाहिए । ” देवयानी ने कच को समझाने की चेष्टा की कि तुम बृहस्पति के पुत्र हो , शुक्राचार्य के नहीं ।

अत : इस संबंध में कोई दोष नहीं है । मैंने बार – बार अपने पिता से अनुरोध करके तुम्हें जीवित कराया , क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करती थी । यह उचित नहीं है कि तुम मुझ जैसी निष्पाप , निष्ठावान , निरपराध और प्रेम करने वाली लड़की को त्याग दो ।

कच ने कहा , “ धर्म की दृष्टि से तुम मेरी बहिन हो । इसलिए मैं तुम्हारी आज्ञा लेकर जाना चाहता हूं । आशीर्वाद दो कि मेरा कल्याण हो । सदा सावधान और सजग रहकर गुरुदेव की सेवा करना । ” यह कह कर कच ने आश्रम छोड़ दिया ।

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