हर विजय संकल्प के पग चूमती देखी गई है ।
दरअसल जितने भी लोग बुरी अदतों के शिकार होते हैं उनका संकल्प बहुत लचीला होता है और लचीले संकल्प से किसी बड़े लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।
हर विजय संकल्प के पग चूमती देखी गई है ।
प्रश्न है इन बुराईयों से मुक्ति का ? कैसे मुक्त हों ? बुरी लत तो बुरी लत है सब जानते हैं पर बचें कैसे ? बुरी आदतों से बचें कैसे ये बड़ा महत्वपूर्ण प्रश्न है पर बंधुओं संत कहते हैं ऐसी कोई लत नहीं जिससे मनुष्य मुक्त न हो सकता हो । यदि वो होना चाहे तो । यदि आप परिवर्तन चाहें तो एक पल में परिवर्तन घटित हो सकता है और न चाहें तो लाख कोशिशों के बाद भी किसी के जीवन में परिवर्तन घटित नहीं हो सकता है । अपनी आदत को सुधारने के लिये सबसे पहला जो सूत्र है वह है दृढसंकल्प | मनुष्य के मन में यदि दृढंसकल्प हो तो कितनी ही बुरी आदत क्यों न हो एक पल में दूर हो सकती है ।
दरअसल जितने भी लोग बुरी अदतों के शिकार होते हैं उनका संकल्प बहुत लचीला होता है और लचीले संकल्प से किसी बड़े लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया जा सकता है संत कहते हैं ……..
सर्व संकल्पवशाद् भवति लघुर्भवति वा महान्
संसार में जितने भी लोग हैं वे सब अपने संकल्प के बल पर ही अपना जीवन ऊँचा बनाये हैं और अपना जीवन तुच्छ बनाये हैं तो संकल्प के बल पर ही । कोई व्यक्ति शिखर पर चढ़ता है तो वो उसके संकल्प की परिणति है और कोई रसातल में जाता है तो वह भी उसके संकल्प की परिणति है ।
अपना संकल्प हो । तय कर लो कि मुझे ये कार्य नहीं करना और उस पर दृढ़ रहो तो दुनिया की कोई ताकत तुम्हें विचलित नहीं कर सकती । संकल्प में बहुत बड़ी शक्ति होती है ।
एक गुरु अपने शिष्यों के साथ जा रहे थे रास्ते में एक चट्टान दिखायी पड़ी , गुरु ने शिष्यों से पूछा कि बताओ कि इस चट्टान से कठोर क्या है ? एक शिष्य ने कहा गुरु देव चट्टान से कठोर लोहा है जो चट्टान को भी तोड़ डालता है ।
तभी दूसरे शिष्य ने कहा गुरुदेव लोहे से कठोर अग्नि है जो लोहे को भी पिघला डालती है । तीसरे शिष्य ने कहा गुरुदेव अग्नि से भी ज्यादा कठोर पानी है जो अग्नि को भी बुझा देती है ।
तभी अगले शिष्य ने कहा कि गुरुदेव पानी से भी ज्यादा प्रभावी वायु है जो पानी को भी उड़ा देती है । अगला शिष्य कुछ कहने ही वाला था कि बीच में गुरु ने टोंकते हुये कहा कि वत्सों सबसे ज्यादा कठोर मनुष्य के मन का संकल्प है जो चट्टान को तोड़ सकता है , लोहे की गला सकता है , अग्नि को बुझा सकता है , पानी को उड़ा सकता है और पवन को भी बांधने में समर्थ है ।
यदि तुम्हारे मन में संकल्प हो तो अपने मन के संकल्प के बल पर सब कुछ किया जा सकता है और ये संकल्प यदि एक बार मन में जग गया किसी की प्रेरणा से या अपने आप तो व्यक्ति बहुत कुछ कर सकता है ।
पुकार अन्तरात्मा की ।
मैं एक शहर में था ऐसे ही प्रवचन के कार्यक्रम होते थे । मेरे प्रवचन के बाद एक सज्जन जो वहां के बड़े संभ्रांत व्यक्तियों में गिने जाते थे , मेरे पीछे – पीछे आ गये । एकांत था फूट – फूटकर रोने लगे , मैंने पूछा क्या बात है आज इतने भावुक क्यों हो ? बोले महाराज , आज मेरा मन मुझे कचोट रहा है मेरी अंतरात्मा मुझे कचोट रही है ।
आज आपने मुझे झकझोर दिया । मैंने कहा , क्या बता हो गई ? बोले महाराज जी मुझे लगा कि आज तक मैंने अपने आप को और समाज को ठगा है और सबको धोखा दिया है । मैं समाज की अग्रिम पंक्ति का व्यक्ति हर सामाजिक कार्यक्रमों में आगे आने वाला मंचों का संचालन करने वाला , लेकिन मेरे भीतर का चरित्र केवल मैं जानता था , समाज नहीं जानता था ।
मैं हाई सोसायटी के नाम पर वह सब कुछ करता आ रहा था जिसे मुझे जैसे व्यक्ति को कतई नहीं करना चाहिए था । पर मैं सोचता था , ये किसी को पता थोड़े ही है , मेरा व्यक्तिगत अपना अलग सर्किल है , समाज में अलग है । लेकिन आज मुझे लगा , कि वाकई करनी का फल तो भोगना ही पड़ता है ।
जो मैंने किया , वह बहुत गलत किया , बहुत बुरा किया , महाराज जी अब मुझे माफ करें । मैं कैसे अपने जीवन की शुरूआत करूँ ? मैंने उनसे कहा कि सुबह का भूला अगर शाम को भी घर लौट आये तो भूला नहीं कहलाता है ।
आपके मन में यदि इतनी हलचल है , तो अभी से संकल्पबद्ध हो जाओ , कि आज के बाद मैं अपने जीवन की नई शुरूआत करूँगा और उनको कभी देखूँगा भी नहीं । उस व्यक्ति ने संकल्प लिया , चूंकि मिट्टी जब गीली होती है उस समय उसे चाहे जैसा आकार दिया जा सकता है । मन गीला था , संकल्प लिया , और उस व्यक्ति ने उस दिन से अपने जीवन में ऐसा परिवर्तन किया , जिसकी कोई कल्पना ही नहीं कर सकता ।
बिल्कुल पूरब – पश्चिम का अंतर आ गया । जो पश्चिम में था , एकदम पूरब में आ गया , जीवन में इतना परिवर्तन | उस व्यक्ति ने कहा महाराज , अपनी अट्ठावन साल की जिंदगी मैंने बिल्कुल व्यर्थ कर दी । आज मुझें लग रहा है , काश पहले मैं ऐसा जान लेता ।
जानता तो था , लेकिन पहले मेरे भीतर ऐसी कोई हलचल नहीं हुई , इसलिए मैंने उसे फालो नहीं किया , और उस व्यक्ति ने संकल्प लिया । जो नित्य शराब पीने वाला व्यक्ति था , जो मांसाहार करने वाला व्यक्ति था , अन्य प्रकार के व्यसनों में भी लिप्त था , लेकिन उसके अंदर एक थोड़ी सी हलचल आई , और अपने संकल्प के बल पर वह हमेशा – हमेशा के लिए व्यसनों से मुक्त हो गया । और .
बंधुओं क्या बताऊँ ? उस व्यक्ति का कैसा पुण्योदय आया , कि पाँच वर्ष बाद वह व्यक्ति मंदिर में भगवान की पूजा करते – करते इस दुनिया से गया । जाते – जाते भी भगवान का नाम लेते हुए गया ।
भावुकता में नियम नहीं लें।
जीवन में परिवर्तन जब आना होता है , तो एक पल में आ सकता है , यदि मनुष्य के मन में दृढ़ संकल्प शक्ति हो तो संकल्प होना चाहिए । संकल्प शिथिल नहीं होने दो संकल्प के बल पर वादियों में गुलाब खिलाये जा सकते हैं और पाताल से पानी निकाला जा सकता है , यदि तुम्हारे मन में वज्र संकल्प हो ।
उन लोगों की बात मुझे समझ में नहीं आती जो कहते हैं कि नियम लेता हूँ , निभाता नहीं निभाने के लिये नियम लोगे तो जरूर निभेगा और महाराज को रिझाने के लिये नियम लोगे तो कभी नहीं निभेगा । अब महाराज कह रहे हैं तो लेना पड़ेगा नियम , नहीं तो महाराज क्या बोलेंगे ।
तुमने अपने मन से नियम लिया नहीं है तो नियम निभेगा क्या ? अरे नियम मैंने अपने हित के लिये लिया है , अपने कल्याण के लिये लिया है , अपने भले के लिये लिया है , तो ये भाव लेकर के यदि आप कोई भी नियम लोगे तो नियम दृढ़ रहेगा और वह आपके लिये फलीभूत होगा और ऐसे ही ले लिया , किसी के कहने से ले लिया , घर वालों को संतुष्टि के लिये ले लिया ,
किसी के दबाव में ले लिया या क्षणिक भावुकता के आवेग में आकर ले लिया तो निभेगा नहीं । नियम लो , दृढ़ता पूर्वक लो और अपने संकल्प को धीरे धीरे मजबूत बनाने की कोशिश करो । एक साथ ऐसा करने का भाव नहीं होता तो थोड़े – थोड़े समय के लिये लेने की कोशिश करो और धीरे – धीरे , धीरे – धीरे करते करते अपने आप काम होगा और ऐसा संकल्प लेने के साथ – साथ जिन बुरी आदतों से , जिन व्यसनों और बुराईयों से आप अपने आपको बचाना चाहते हैं सदैव उसके दुष्परिणामों को ध्यान में रखो ।