एक बुराई जननी अनेक की। आध्यात्मिक ज्ञान।
एक बुराई जननी अनेक की। संस्कारों का चक्रव्यूह घुसना सरल , निकलना कठिन , ।
एक बुराई जननी अनेक की।
मैं आज आप सबसे यही कहना चाहता हूँ कि मनुष्य की आदतों का उसके चित्त और चेतना पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ता है । न केवल चित्त चेतना पर अपितु उसके जीवन पर भी । चाहे आदत अच्छी हो या बुरी । अच्छी आदत जहाँ आपके उत्कर्ष का कारण बनेगी , बुरी आदतें आपको रसातल में पहुँचा देंगी ।
जीवन का उत्थान व पतन मनुष्य की अपनी प्रवृत्तियों पर ही निर्भर करता है । आप जिन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हैं , उन्हीं सीढ़ियों से नीचे भी उतरा जाता है । अच्छी आदत की सीढ़ी पर चढ़कर जहां हम शिखर पर पहुँच सकते हैं तो गंदी आदतों के शिकार बनकर रसातल में भी जाया जा सकता है । हर व्यक्ति के जीवन के साथ ऐसी ही स्थितियाँ निर्मित होती हैं ।
जैसे धरती पर यदि हम आम का बीज बोयेंगे तो आम ही उगेगा और बबूल की बीज बोये जाएं तो बबूल की कटीली पफलियां उगेगीं । जैसा बीज बोया जाता है वैसा ही पेड़ उगता है । ऐसे ही हम है अपनी चित्त और चेतना की भूमि पर आदतों के जैसे बीजों का बीजारोपण कर हैं , वैसी ही प्रवृत्ति हमारी बन जाती है और वही हमारा चरित्र बन जाता है
मुश्किल यह भी है कि एक ही आदत अनेक आदतों को जन्म दे देती है । जैसे एक नन्हा सा बीज बोया जाता है पर वही एक बीज विशाल वृक्ष बनकर अनेकों बीजों को उत्पन्न कर देता है , वैसे ही मनुष्य के मन में पलने वाली एक आदत आदत अनेक आदतों को जन्म दे देती है ।
एक व्यक्ति के जीवन में अनेक प्रकार की आदते हैं । अच्छी आदतें तो निश्चित रूप से उत्कर्ष करने वाली हैं , मैं उनकी चर्चा नहीं करता , लेकिन बुरी आदतें मनुष्य के जीवन में किस तरीके से प्रवेश करती हैं और वह मनुष्य के जीवन को किस तरीके से प्रभावित करती हैं और उनसे बचा कैसे जाये , आज का मेरा मुख्य प्रतिपाद्य यही है ।
मानसिक विकास के चार पायदान ।
आदतें एकाएक प्रवेश नहीं करतीं , धीरे – धीरे , धीरे – धीरे प्रवेश करना शुरू करती हैं । मनोविज्ञान के वैज्ञानिक बताते हैं कि मनुष्य की चार प्रकार की स्थिति होती है जो उसकी आदतों से जुड़ती है । पहली है अवचेतन अयोग्य , दूसरी चेतन अयोग्य , तीसरी चेतन योग्य और चौथी अवचेतन योग्य |
कैसे ? जैसे एक दो – ढाई साल का बच्चा किसी को साईकिल चलाते देख रहा है । साईकिल चलाते देख रहा है लेकिन उसे यह नहीं मालूम कि साईकिल कैसे चलाई जाती है और साईकिल चलाने का मजा क्या है । वह देख जरूर रहा है पर वह उसे न तो चलाना जान रहा है और न उसे चलाने के मजा का पता है , ये जो संस्कार उसके मन में साईकिल को देखकर हो रहे हैं , ये सब अचेतन अयोग्य हैं ।
दूसरे क्रम में वही बच्चा जब पाँच – सात साल का हो जाता है तो थोड़ी समझ उसके अंदर आ जाती है तो वह जानता है कि यह दो पहिया वाहन है , इसको चलाते हैं और इसे चलाने में बड़ा आनंद भी आता है , लेकिन अभी वो चलाना जान नहीं रहा है । ये है चेतन अयोग्य ।
तीसरे क्रम में जब वह साईकिल चलाना सीखना शुरू कर देता है । अभी साईकिल चला रहा है , लेकिन बहुत कुछ सावधानी भी रख रहा है । उसके मन में ये बार – बार लग रहा है कि कहीं गड़बड़ न हो जाए , कहीं मैं गिर न जाऊँ ? मुझे कैसे पैडल मारना है , कैसे हैण्डल को सीधा संभालना है , कैसे अपनी गति को नियंत्रित करना है , इन सब बातों पर जो विचार चल रहा है , वह सब है चेतन योग्य ।
लेकिन कुछ दिनों के उपरांत जब वह साईकिल चलाने में अभ्यस्त हो जाता है , तो उसे पता भी नहीं लगता है कि मैं कैसे साईकिल चला रहा हूँ । वह साईकिल भी चलाता है , बातें भी करता है , पैडल भी अपने ही आप घूमती रहती है , उसे कुछ कहने की जरूरत नहीं होती , सारा कार्यक्रम अपने आप चल रहा है , कभी – कभी तो हाथ छोड़कर के भी चला लेता है । यह है अवचेतन योग्य ।
ऐसे ही मनुष्य की आदत बनती है । प्रारंभ में व्यक्ति किसी भी बुराई को ग्रहण करना शुरू करता है तो उसकी चेतना पर बहुत सूक्ष्म प्रभाव होता है , लेकिन वही प्रभाव दिनों – दिन गहराते – गहराते अवचेतन अयोग्य से चेतन अयोग्य बनता है और धीरे – धीरे वह उसका आदी बनने लगता है । अब वह चेतन योग्य बनता है और बाद में वही अवचेतन योग्य बन जाता है ।
उसे पता ही नहीं चलता कि कब क्या बोल दिया । जैसे किसी की गाली बकने की आदत हो , अपशब्द कहने की आदत हो , ये एक गंदी आदत है , लेकिन जो व्यक्ति अपशब्द बोलने की आदी होता है , वह कब बोल देता है उसे खुद भी पता नहीं लगता । कभी – कभी तो वह ऐसे शब्दों का प्रयोग ऐसी जगह पर कर देता है , जहां उसको नहीं करना चाहिए ।
लेकिन जब आदी बन गया , अबुद्धि पूर्वक वह बोल रहा है , तो अवचेतन योग्य संस्कार उसके अंदर आ गये , उसके कोंसस में ऐसे संस्कार गहरे बैठ गये , उसको बोलते – बोलते वह उसका आदी हो गया । इस संस्कार को नियंत्रित कर पाना बहुत कठिन होता है , लेकिन व्यक्ति थोड़ा जागरूक हो जाए तो कोई भी काम असंभव नहीं है ।
संस्कारों का चक्रव्यूह घुसना सरल , निकलना कठिन , ।
बंधुओं , मैं बात केवल आपसे ये कह रहा हूँ कि कोई भी बुराई एक दिन में पनपती नहीं और उसे एक दिन में छोड़ा नहीं जा सकता । बुराइयां धीरे – धीरे जीवन में अपनी जड़ जमाती हैं लेकिन एक बार जब जड़ जम जाती है , तो व्यक्ति को जकड़ लेती है । फिर वह व्यक्ति उसका गुलाम बन जाता है , छूटता नहीं ।
चाहे व्यक्ति कितना भी पढ़ा – लिखा क्यों न हों ? चाहे व्यक्ति कितना ही समझदार हो , चाहे व्यक्ति कितनी ही उच्च भूमिका में जीने वाला व्यक्ति हो , एक बार किसी बुराई का शिकार बन गया , तो वह फिर उससे मुक्त नहीं हो पाता , वह बुराईयों के चक्रव्यूह में फंस जाता है जैसे अभिमन्यु ने एक बार चक्रव्यूह में प्रवेश किया तो वह प्रवेश तो कर गया किंतु बाहर नहीं निकल पाया ।
जो हाल अभिमन्यु का हुआ , उसी तरह बुराइयों के चक्रव्यूह में फंसने पर इंसान की दशा होती है । एक बार फंस जाता है तो बाहर निकलना बहुत मुश्किल होता है । आदत ऐसी ही गुलामी है जो मनुष्य को कमजोर बना देती है ।
हाथी को आप लोगों ने देखा ? हाथी जो इतना बलशाली प्राणी , उस हाथी को बांधने के लिए क्या करते हैं ? एक साधारण सी सांकल उसके पैर में बांधी जाती है । मैंने एक बार महावत से पूछा कि इतने बलशाली हाथी को इतना साधारण सी सांकल में तुम बांध लेते हो और फिर एक दिन मैंने यह भी देखा कि एक हाथी रस्से से बंधा था , सांकल नहीं थी ।
हमने कहा कि क्या हाथी इसे तोड़ नहीं सकता ? इसमें तो इतना बल है कि बड़े बड़े पेड़ को उखाड़ने की सामर्थ्य है । उसने कहा कि नहीं , ये नहीं तोड़ सकता । क्यों ? क्योंकि ये तोड़ेगा नहीं , क्यों ? क्योंकि इसकी आदत हो गयी । इसकी आदत क्यों हो गयी ? बोला बात ऐसी है कि जब वह बच्चा था , तो हम लोग इसके पैर में सांकल बांधते थे उस समय सांकल को तोड़ने का यह बहुत प्रयास किया करता था ।
लेकिन उस समय उस समय सांकल कुछ मोटी होती थी , उस समय शावक हाथी में उतनी ताकत नहीं होती थी तो सांकल टूट नहीं पाती थी । बस क्या था ये बहुत ताकत नहीं होती थी तो सांकल टूट नहीं पाती थी । बस क्या था ये बहुत कोशिश करता , , लेकिन टूटती नहीं , टूटती नहीं , तो कुछ दिन बाद इसने सोचा कि इस सांकल को मैं तोड़ नहीं पाऊंगा , इसके संस्कार पड़ गये , आदत पड़ गयी ।
वह समझ गया कि मेरे पैर में सांकल बंध गयी इस सांकल को मैं तोड़ने में समर्थ नहीं हूँ , नतीजा , हाथी जैसा बलशाली प्राणी भी साधारण सी सांकल या रस्से से बंधकर रह जाता है ।
संत कहते हैं कि तुम्हारी भी दशा ऐसे हाथी की तरह हो गयी तुम छोटी – छोटी बुरी आदतों के शिकंजे में फंस गये , सांकल में बंध गये , जिन्हें तुम तोड़ सकते हो जिनसे मुक्त हो सकते हो , जिससे बाहर आने की तुम्हारी क्षमता है लेकिन तुम्हारा आत्मविश्वास डगमगा गया , तुम्हारी संकल्प शक्ति शिथिल हो गयी है ।
आदत मनुष्य के संकल्प में शिथिलता ले आती है । आदत मनुष्य के आत्मविश्वास को नष्ट कर डालती है और उसके गुणों के उत्कर्ष को अवरूद्ध कर डालती है । इसलिए अपनी आदतों पर नियंत्रण रखने की बात प्रत्येक व्यक्ति को सोचनी चाहिए ।
आप अपने चित्त का अंतर्विश्लेषण करके देखो और आप देखोगे कि आपके अंदर कौन – कौन सी आदतें हैं और वे आदतें आपको किस तरह से जकड़ी हुई हैं । देख लो । एक साधारण सा उदाहरण देता हूँ । चाय पीने की आदत देख लो | जिनकी चाय पीने की आदत है वे कैसे चाय के गुलाम हो जाते हैं ? सुबह चाय नहीं मिले तो बेचैन हो जाते हैं ।
एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि महाराज जी , दशलक्षण में उपवास करने का मन है लेकिन क्या चाय की छूट मिल सकती है ? दस दिन का खाना छोड़ सकते हो लेकिन एक वक्त की चाय नहीं छोड़ सकते ? ये आदत जो मनुष्य को अपना गुलाम बनाती है , तो उसके अंदर की सारी ग्रंथियां उसी अनुरूप सक्रिय होने लगती हैं ।
व्यक्ति के बल्ड में रिसने लगता है और उसके कारण उसके मन में छपटाहट होती है । तो जो जिस आदत का शिकार होता है , वह उसका गुलाम हो जाता है । आदतें उसको जकड़ लेती हैं और वहीं उसकी सारी शक्ति , सारी क्षमतायें विनष्ट हो जाती हैं और वह आगे नहीं बढ़ पाता । आदतों से मुक्ति की बात हमें सोचनी है ।