संयुक्त परिवार सुरक्षा का आधार ।

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संयुक्त परिवार सुरक्षा का आधार । प्रवृत्तियाँ तय करती हैं जीवन की दिशा ।


संयुक्त परिवार सुरक्षा का आधार ।


बंधुओं विगत दिनों से लगातार आप विभिन्न विषयों पर सुन रहे हैं आप इन पर गंभीरता से विचार करें और अपने जीवन को बेहतर जीवन बनाने की कोशिश करें । इस कन्सैप्ट को पलट कर देखने की कोशिश करें ।

हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बकम् की संस्कृति है । आज संयुक्त परिवार टूटता सा जा रहा है उसकी जगह अब लोग अलग – अलग रहने लगे हैं । पहले लोग जैसे तैसे एक होकर रहते थे अब जैसे – तैसे अलग होने की कोशिश होती है ।

इस कन्सैप्ट को बदलिये । हम एकल में कुछ स्वतंत्रता पा लेते हैं लेकिन सुरक्षा नहीं । सुरक्षा और सुविधा तो संयुक्त रहने में ही है और इसका अनुभव तो केवल उसे हो सकता है जो संयुक्त में रह रहे हैं । 

कुछ परेशानियां हो सकें तो हो जायें लेकिन उन्हें भूलिये और अपने माँ बाप के प्रति सदैव सम्मान की भावना रखिये

अपने माँ – बाप के प्रति सम्मान रखो और कभी तुम्हारी किसी कारण से माँ बाप के प्रति अनबन हुआ है तो आप जाओ उनके उपकारों को याद करते हुये उनके चरण को छुओं और उनके चरणों में गिर जाओ और उनसे माफी मांगो कि मैं भूल में था गलती आपकी नहीं गलती मेरी है तो आपका जीवन धन्य हो जायेगा ।

उस दिन यही प्रवचन हुआ । एक युवक अपनी माँ से बारह वर्षों से अलग रहता था , माँ अकेले रहती थी और बोलचाल भी बंद थी । प्रवचन के बाद वो इतना प्रभावित हुआ , अंदर से

 ने इतना उद्वेलित हुआ कि माँ के चरणों में गिर गया और उसने जैसे ही माँ कहा उसकी माँ को इतनी खुशी कि जिसकी शब्दों में हम अभिव्यक्ति नहीं कर सकते ।

उसने कहा माँ और माँ ने कहा बेटा और दोनों एक – दूसरे की छाती से लगा कर बहुत देर तक रोते रहे । आँसू क्या बहे अंदर का मैल भी बह गया । बेटे कुल इतना ही कहा कि माँ मुझे माफ कर देना चल आज मेरे साथ चल दोनों माँ बेटे साथ हो गये आज उनकी जिन्दगी खुशहाल हो गयी है ।

पता नहीं आपके बीच में क्या परिस्थितियां हैं ? लेकिन किसी बात को लेकर परिवार के किसी भी सदस्य के साथ मन मुटाव का भाव है तो उसे दूर करो और माँ – बाप को उपेक्षित और तिरस्कृत होंगे तो कल तुम्हारा होता मत देखो ।

नहीं तो ध्यान रखना आज तुम्हारे माँ बाप तिरस्कृत होंगे तो कल तुम्हारा भी तिरस्कृत होने का नंबर आ सकता है । मैं तो हमेशा कहता हूँ कि अपने बेटे को श्रवण कुमार बनाना चाहती हो श्रवण कुमार की माँ बनना चाहती हो तो अपने पति को श्रवण कुमार बनने दो क्योंकि श्रवण कुमार के घर में ही श्रवण कुमार पैदा होता है ।

कंस की औलाद तो कंस ही होगी महाकंस हो जाये इसमें आश्चर्य नहीं । बनाओ वैस कभी उनकी हर्गिज उपेक्षा नहीं करो जीवन का कल्याण तभी होगा । माँ – बाप की आँखों में दो बार आँसू आते हैं , एक जब वो बेटे की विदाई करते हैं और दूसरा जब अपने बेटे की बेवफाई के शिकार होते हैं ।

जब बेटी की विदाई होती है तो कर्त्तव्य पूर्ति की संतुष्टि होती है लेकिन बेटे की बेवफाई के क्षण जो आँसू आते हैं वो उनकी संवदेना को गहरा आघात पहुँचाते हैं । संवेदनाओं का आघात सबसे बड़ा पाप है । 

कभी किसी की संवेदना पर आघात पहुँचायें और माँ बाप की संवेदना का आघात ? उस पाप को शायद इस जन्म में तो कोई नहीं भोग सकता इसलिये उस पाप से , ऐसी पापात्मक प्रवृत्ति से अपने आपको बचाकर अपने जीवन को सही दिशा की ओर ले जाने की कोशिश करें । सबके जीवन में मंगल हो , सबका कल्याण हो सब खुशहाली से अपना जीवन जी सकें ।

प्रवृत्तियाँ तय करती हैं जीवन की दिशा ।


मनुष्य का संपूर्ण जीवन उसकी प्रवृत्तियों पर निर्भर करता है । हमारी समस्त प्रवृत्तियां हमारे स्वभाव और आदतों से उत्पन्न होती हैं । हमारी जो भी प्रवृत्ति है , वह हमारी आदत व स्वभाव के कारण है । मनुष्य का जैसा स्वभाव होता है , जैसी सोच होती है , जैसी चिन्तनधारा होती है , कालान्तर में वह उसकी आदत बनकर उसकी प्रवृत्ति बन जाती है ।

यह अच्छी भी होती हैं , बुरी भी होती है । अच्छी प्रवृत्तियां अच्छी आदतों से प्रेरित होकर जहां हमारी चेतना का उत्कर्ष करती हैं , जीवन का उत्थान करती हैं , वहीं बुरी प्रवृत्तियां हमारा पतन भी करा देती हैं ।

दो भाग हैं , एक तो स्वभाव का और दूसरा आदत का इनमें स्वभाव जनित प्रवृत्तियों का संस्कार तो हम जन्मान्तर से लेकर आते हैं और जिस व्यक्ति के जैसे संस्कार होते हैं , उसी के अनुरूप उसका स्वभाव बनता जाता है ।

उसमें बहुत ज्यादा परिवर्तन की संभावनायें नहीं होतीं , पर उसमें निखार लाया जा सकता है उन्हें परिष्कृत किया जा सकता है । लेकिन दूसरी जो प्रवृत्तियां हमारी अर्जित आदतों के कारण उत्पन्न होती हैं , उनमें हम बहुत कुछ परिवर्तन ला सकते हैं । बशर्ते व्यक्ति अपनी आदतों के प्रति जागरूक हो और उन्हें नियंत्रित करने की उसमें मन में प्रतिस्पर्धा हो तो बहुत कुछ परिवर्तन लाया जा सकता है ।

आदत की गुलामी , गुलामी की आदत ।


अच्छी और बुरी आदतें हमारे जीवन के अच्छे और बुरे स्वरूप का निर्धारण करती हैं , जिस व्यक्ति की जैसी आदत होती है उसका जीवन वैसा बन जाता है । कहा जाता है कि एक अच्छी आदत के कारण व्यक्ति सबका आदरणीय बनता है , एक बुरी आदत के कारण उसकी सैकड़ों अच्छाईयों पर पानी फिर जाता है , उसे सबके तिरस्कार और अपमान का पात्र बनना पड़ता है ।

एक बुरी आदत व्यक्ति के सौ गुणों को लांछित कर देती हैं । ये स्थितियां मनुष्य के जीवन में दिनोंदिन बनती हैं । बंधुओ , आज मैं आप सबसे उन्हीं आदतों की बात करने जा रहा हूँ , जिन आदतों का हर कोई शिकार है ।

शिकार कहूँ या कहूँ कि आदतों के गुलाम हैं । गुलामी कई प्रकार की होती है । एक व्यवस्थागत गुलामी है , एक राजनैतिक गुलामी है । एक आर्थिक गुलामी है , एक शारीरिक गुलामी है पर एक आदत की गुलामी है । 

व्यवस्थागत गुलामी को थोड़े से प्रयत्नों से दूर किया जा सकता है । राजनैतिक गुलामी भी संघर्षों के बल पर दूर हुई और दूर हो रही है । शारीरिक गुलामी का युग आज नहीं रहा ।

पहले गुलाम प्रथा थी , गुलामों को खरीदा जाता था और उन्हें पशुओं की तरह अपना गुलाम बनाया जाता था । वो भी आज नहीं है , लेकिन आज हर व्यक्ति अपनी आदतों का गुलाम जरूर बना हुआ है । हर व्यक्ति अपनी आदतों से लाचार है , अरे कितना भी उससे कहो , पत्नी समझाए तो परिवार के सभी व्यक्ति समझाएं तो परिवार से तिरस्कार मिले तो , समाज से तिरस्कार मिले तो कोई कितना भी उसे कहे , एक बार आदत या लत जो लग जाती है , वह लग जाती है , छूटने को तैयार नहीं होती ।

लोग कहते जरूर हैं कि आदमी अपनी बीबी का गुलाम है लेकिन सच पूछो तो बीबी का गुलाम कहलाने वाला आदमी भी अपनी आदतों का गुलाम है , आदत के पीछे अपनी बीबी को भी छोड़ने के लिए आदमी सब कुछ करने को तैयार हो जाता है , तत्पर हो जाता है ।

इसलिए संत कहते हैं मनुष्य की आदतें एक बहुत बड़ी कमी बन जाती हैं , उसको गुलाम बना डालती हैं और जिन व्यक्तियों के जीवन मे बुरी आदतें होती हैं , उनकी स्थिति तो और विचित्र होती है ।

आदत हमारे जीवन पर कितना गहरा प्रभाव डालती हैं , इसका एक रोचक उदाहरण मैं आपको देता हूँ । एक बहुत बड़े एडवोकेट हुए हैं मि . गौर साहब हरी प्रसाद गौर , जिनके नाम से मध्यप्रदेश के सागर शहर में विश्वविद्यालय बना ।

ये अपने जीवन में एक भी मुकदमा नहीं हारे । उतना जीतने का ही रिकार्ड रहा । एक केस ऐसा था जिसमें प्रतिपक्षी वकील बहुत बड़े तर्क दे रहा था और ऐसा लग रहा था कि ये केस हार रहे हैं । इन्होंने देखा कि उनके विरोधी वकील की प्रखरता का कारण क्या है ?

उन्होंने बारीकी से देखा कि जब भी कोई खास प्वाइण्ट सामने रखना होता था तो वह वकील अपने कोट के बटन को घुमाता था । एक ही बटन को घुमाता और जैसे ही कोट का बटन घूमता , उसका दिमाग घूम जाता और झट से वह एक कठिन प्वाइण्ट सामने प्रकट कर देता ।

यह उसकी रोज की आदत थी । केस जीतना है तो वकीलों को कई तरह के हथकण्डे अपनाने होते हैं । तो उनने क्या किया कि जो धोबी उनका कपड़ा धोता था , उसको मैनेज किया और उसी बटन को दूर करवा दिया ।

विरोधी वकील साहब रोज की भांति कोट पहन कर आये । बहस चल रही थी । दोनों ओर से बहस बहुत उफान के रूप में आ गयी थी । अब जैसे ही वकील साहब ने अपने दिमाग को चलाना चाहा और बटन को घुमाना चाहा बटन नदारद थी तो पूरा दिमाग बटन में उलझ कर रह गया और जो प्वाइण्ट था वह उनके दिमाग में नहीं आया ।

नतीजा यह निकला कि विरोधी व्यक्ति केस हार गया , गौर साहब केस जीत गये । यह आदत का प्रभाव है । केवल बटन घुमाने की आदत से दिमाग कितना घूम गया । ये तो केवल एक उदाहरण है ।

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