घर करती अनुरोध की भाषा। आध्यात्मिक ज्ञान।
घर करती अनुरोध की भाषा। बाण से गहरा वाणी का घाव।
घर करती अनुरोध की भाषा।
कुछ खास सूत्र जो आज मैं आप सबसे कहना चाहता हूँ सार के रूप में जिसे आप यहां से लेकर के जाना चाहते हैं कि अपने घर में प्रेम और अपनत्व की नींव डालिये अन्यथा घर बिखर जायेगा । प्रेम ओर अपनत्व ही घर की नींव है इसी के बल पर घर टिकता है ।
इसको डालने की कोशिश कीजिये । दूसरी बात परिवार के सदस्यों से है । स्नेह और निवेदन की भाषा में बात करिये । हम लोग जब व्याकरण पढ़ा करते थे तो हमारे गुरु महाराज हम लोगों को कहा करते थे कि व्याकरण में एक सूत्र आता है उसमें आगम और आदेश दोनों होता है ।
किसी की जगह कुछ बीच में घुसा दो उसको बोलते हैं आगम और किसी को हटा दो उसको बोलते हैं आदेश । तो व्याकरण में एक सूत्र आता है मित्रवत आगमः शत्रुवत् आदेशः ।
आचार्य गुरुदेव हम लोगों को कहा करते थे कि अपने साथियों से कभी आदेश की भाषा में मत बोलना । रिक्वेस्ट की भाषा में बात करोगे तो मित्रता और प्रेम बढ़ेगा और आदेश की भाषा में बोलोगे तो अहम और उत्तेजना बढ़ेगी इसलिये निवेदन की भाषा बोलिये ।
ऐसा कर लो की जगह कर लीजिये कहें तो कैसा लगता है ? आपसे ही कोई रिक्वेस्ट पूर्वक कहे कि ऐसा कर लीजिये न तो कितना अच्छा लगता है ? ऐ ! ऐसा करो , कदाचित दबाव वश कर भी लोगे लेकिन मन से नहीं होगा इसलिये आदेश की भाषा की जगह
अधिकार की भाषा की जगह स्नेह और निवेदन की भाषा का प्रयोग कीजिये आपके घर में प्रेम बढ़ेगा ।
बाण से गहरा वाणी का घाव।
निवेदन और स्नेह की भाषा बोलिए व्यंगात्मक वचनों से बचिये । एक – दूसरे के ऊपर व्यंग मत मारिये । आजकल व्यंग बाण बहुत छूटते हैं ये बहुत खतरनाक होते हैं । बाण का घाव तो सूख जाता है , वाणी का घाव नहीं सूखता ।
अतः इस बात का ध्यान रखना बाण से भी ज्यादा खतरनाक वाणी का घाव है । कौन से शब्द किसको चुभ जायें कोई भरोसा नहीं इसलिये व्यंगात्मक शब्दों का प्रयोग कतई मत करें । चौथी बात है बहू को चाहिये ससुराल की निंदा न करे ।
होता उल्टा है बहू मायके के गीत गाती है और यहां ससुराल के गीत गाये जाते हैं । रहना तुमको यहां है , मायके और ससुराल से सम्बन्ध जोड़ने से मतलब क्या है ? उसका कोई मतलब नहीं उसका कोई प्रयोजन नहीं उससे अपने आप को बचाकर रखने की जरूरत है ।
पिता अपने बच्चे के बड़े हो जा के बाद पुत्र को पुत्र मानने की जगह मित्र मानना शुरू कर दें । लेकिन ये मैं पिता के लिये बोल रहा हूँ पुत्र के लिये नहीं । पिता पुत्र को पुत्र मानने के साथ मित्र माने और पुत्र पिता को पिता ही नहीं परमपिता मानने की कोशिश करे तब घर में शांति का वातावरण बनेगा साथ ही सारा काम ठीक ढंग से चल पायेगा ।
जिस घर में प्रेम होता है शांति होती है उस घर में सब कुछ होता है । दूसरों के दोषों की अनदेखी कीजिये । यदि किसी से दोष हो जाये तो उसे सजा नहीं सीख दीजिये , उसे समझाइये । ये गलती हो गयी इस गलती की पुरनावृत्ति नहीं होनी चाहिये ।
सीख दीजिये सीखपाने वाला सुधर जाता है सजा पाने वाला नहीं । आप ध्यान रखिये आप अपने बेटे के पिता हो पुलिस नहीं । पुलिस का काम है दण्ड देना और पिता का काम है बच्चे को सुधार देना । अहम् और उत्तेजना की भाषा की जगह प्रेम और आत्मीयता की भाषा का प्रयोग करना शुरू करें तो आपके घर में भी सुख शांति फैलेगी ।
कभी न बिखरे हमारा प्रेम ।
एक सेठ था रात्रि में उसने सपना देखा कि लक्ष्मी सपने में आयी और लक्ष्मी ने सेठ से कहा मैं तुम्हारे घर बहुत दिन रह ली अब मैं तुम्हारे यहां से जाना चाहती हूँ । सेठ ने लक्ष्मी की बात सुनी और उसने कहा ठीक है आप रहीं इसका धन्यवाद , आप जाना चाहती हो तो मैं रोक तो सकता नहीं पर मेरी इच्छा है कि आप यहां रहो तो बहुत अच्छा ।
लक्ष्मी ने कहा कल मैं तुम्हारे पास आऊँगी तो तुम मुझसे कोई एक वरदान मांग सकते हो क्योंकि तुमने मुझे बहुत अच्छे से रखा है मेरी बहुत सेवा की है मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ । सेठ ने कहा ठीक है ।
अगले दिन सेठ की जैसे ही सुबह आँख खुली उसने तीनों बहुओं को बुलाया और पूछा कि रात में ऐसा – ऐसा सपना आया क्या करूँ ? पहली बहू ने कहा पिता जी अपने पास वैसे तो सब कुछ ठीक है पर एक बंगला मांग लो तो बहुत अच्छा रहे । ससुर को बात कम समझ में आयी ।
दूसरी ने कहा बाकी सारी बात तो ठीक हैं एक कार मंगवा लें तो अच्छा रहेगा । लक्ष्मी जा तो रही है कम से कम एक कार तो होगी हमारे पास । तीसरी और छोटी बहू जो बहुत समझदार थी उसने कहा पिता जी अपने पास सब कुछ तो है , घर है , बंगला है , गाड़ी है , घोड़ा है , किसी चीज का अभाव तो है नहीं और हम लोग बड़े प्रेम से रह रहे हैं ।
मेरा आपसे एक निवेदन है कि लक्ष्मी से इतना मंगिये तुम्हें जाना है तो जाओ पर हमें बस इतना वरदान दे दो कि हमारे परिवार के सारे सदस्य एक दूसरे के साथ प्रेम से रह सकें इसके अलावा हमें कुछ नहीं चाहिये ।
अगले दिन सपने में लक्ष्मी फिर से आयी और लक्ष्मी ने पूछा सेठ जी मांगिये वरदान क्या मांगना है ? तो सेठ ने तीसरी बहू की बात को दोहराते हुए कहा कि माते हमें आप से कुछ नहीं चाहिये आपकी बहुत कृपा है ।
आपको जाना है तो जाओ लेकिन बस एक वरदान दे जाओ कि जिस तरह आज हम प्रेम से रह रहे हैं हमारा पूरा परिवार इसी तरह प्रेम के साथ रह सके । लक्ष्मी एक दम चौंक पड़ी और कहा सेठ तुमने तो बहुत ऊँचा वरदान मांग लिया ।
तुमने तो मुझे विवश कर दिया , अब तो मैं तुम्हारे घर से जा ही नहीं सकती क्योंकि जिस घर में प्रेम होता है वहीं लक्ष्मी का वास होता है अन्यत्र कहीं नहीं । कहते हैं लक्ष्मी उस घर में वहीं टिक गयी ।
वस्तुतः बाहर की लक्ष्मी हो या न हो शांति की लक्ष्मी से बड़ी और कोई लक्ष्मी नहीं । शांति की दौलत ही सबसे बड़ी दौलत है । वह दौलत अर्थहीन है जो होने के बाद लोग एक दूसरे से बातें न करते हों , एक दूसरे का मुँह देखना पसंद न करते हों , उनका जीवन घोर अशान्तमय होता है ।
शांति चाहिये तो प्रेम हो , उदारता हो , हमारे मन में एक दूसरे के प्रति सहिष्णुता हो , आदर का भाव हो , एक दूसरे के गुणों को प्रोत्साहित करने की प्रवृत्ति हो तो निश्चित रूप से व हमारे जीवन की एक सार्थक उपलब्धि होगी ।